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________________ प्रेम को सम्छाल लो, सब सम्भल जाएगा बैठा है च्वांगत्सु एक तालाब के किनारे; मारता है मछली। सम्राट ने भेजे हैं अपने मंत्री और कहा कि सुनो, राजा चाहता है कि तुम आ जाओ और प्रधानमंत्री हो जाओ। बैठा रहा च्यांगत्सु। आंख भी मछली से न हटाई। अपनी बंसी को सम्हाले रहा। देखा भी नहीं वजीरों की तरफ। इतना ही कहा कि देखते हो उस किनारे कछुए को? कीचड़ में कछुआ अपनी पूंछ हिला कर मजा कर रहा है, आनंदित हो रहा है। कछुए का मजा कीचड़ में है। देखते हो उस कछुए को? उन्होंने देखा और उन्होंने कहा, हम कुछ समझे नहीं, कछुए से इसका क्या लेना-देना? तो च्यांगत्सु ने कहा, हमने सुना है कि सम्राट के महल में सोने में मढ़ा एक मरा हुआ कछुआ है तीन हजार साल पुराना। उसकी पूजा की जाती है। वह राज्य चिह्न है। मैं तुमसे यह पूछता हूं कि अगर इस कछुए को तुम कहो कि चल राजमहल, सोने में मढ़ देंगे; तेरी पूजा होगी हजारों-हजारों साल तक; सम्राट झुकेंगे तेरे सामने। तो यह कछुआ वहां जाना पसंद करेगा या कीचड़ में अपनी पूंछ हिलाना ही पसंद करेगा? उन वजीरों ने कहा कि कछुआ तो कीचड़ में पूंछ हिलाना ही पसंद करेगा। क्या सार मरने में? और क्या सार सोने में मढ़े जाने में? और क्या सार पूजा-पत्री में? तो च्यांगत्सु ने कहा, जाओ। कह देना सम्राट से कि हम भी कीचड़ में ही पूंछ हिलाना पसंद करते हैं। जब कछुआ इतना समझदार है तो हम कोई उससे ज्यादा नासमझ हैं? हम मगन हैं अपने आनंद में! तुम्हारे महलों की, तुम्हारे सिंहासनों की, तुम्हारी पद-प्रतिष्ठा की हमें जरूरत नहीं। जो प्रेम में मगन है उसे किसी और चीज की जरूरत नहीं। प्रेम तृप्त कर जाता है; दौड़ छूट जाती है। और महत्वाकांक्षा जिसकी छूट गई, उसका मन गिर जाता है। मन महत्वाकांक्षा है। जिसकी महत्वाकांक्षा छूट गई, वह अ-मन हो जाता है, नो-माइंड हो जाता है। और उसी घड़ी में द्वार खुलते हैं जो सदा से बंद हैं, और तुम पाते हो, प्रभु द्वार पर खड़े हैं। प्रभु सदा से ही द्वार पर खड़े थे, लेकिन तुम्हारी नजर कहीं और थी। जब तुम प्रेम से भरे, संतुलन में डूबे, महत्वाकांक्षा-मुक्त खड़े हो जाते हो, तब कोई पर्दा न रहा, सब पर्दे उठ जाते हैं। बहुत दौड़ लिए सिंहासनों की दौड़ में, बहुत तरह के स्वर्ण से ढंके जा चुके। और हर बार स्वर्ण ने कब्र बनाई, जीवन का संगीत और जीवन की समाधि न दी। अब समय है, जाग जाना चाहिए। कबीर कहते हैं, जाग सके तो जाग। आज इतना ही।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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