SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ ऐसा हुआ बुद्ध के जीवन में, पागल हाथी छोड़ दिया गया। अगर तुम मेरी बात समझ सको तो देलगादो ने जो यंत्र से किया है, वह बुद्ध ने सिर्फ भाव से किया। वह भी किया, यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि बुद्ध तो प्रेम से भरे हैं। पागल हाथी आया भागा हुआ। बुद्ध के भीतर से जो जीवन-ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है, वह तो प्रेम है तो वह उस पागल हाथी के प्रेम के केंद्र पर चोट कर रहा है, जैसे देलगादो बिजली का प्रवाह दे रहा है। प्रेम भी तो विद्युत है; प्रेम भी तो बड़ी सूक्ष्म ऊर्जा है। बुद्ध का हृदय प्रेम से भरा है; उनके आस-पास प्रेम बरस रहा है। वह हाथी अचानक आकर ठिठक कर खड़ा हो गया। और न केवल खड़ा हुआ-क्योंकि यह कोई यंत्र के द्वारा खड़ा नहीं किया गया था-वह झुका और बुद्ध के चरणों में सिर टेक दिया। किसने बचाया? प्रेम कवच है। लेकिन आदमी हाथियों से ज्यादा खतरनाक है। हाथी पागल भी आदमी जितना पागल नहीं, स्वस्थ आदमी जितना भी पागल नहीं। क्योंकि जीसस प्रेम से भरे रहे और लोगों ने सूली लगा दी। आदमी के अंधेपन का मुकाबला नहीं है। आदमी बेजोड़ है। कोई जानवर आदमी के जानवरपन से मुकाबला नहीं कर सकता। जिसने भेजा था पागल हाथी, देवदत्त, वह बुद्ध का चचेरा भाई था। उस पर बुद्धका प्रेम काम न कर पाया। पागल हाथी ठहर गया। देवदत्त नये आयोजनों में लग गया; वह जीवन भर बुद्ध को मारने की चेष्टा करता रहा। कभी पहाड़ से चट्टान सरका दी उसने। शायद चट्टान भी बुद्ध को छोड़ कर मार्ग से हट कर गिर गई हो, क्योंकि बुद्ध उससे मरे नहीं। चट्टानें भी आदमी के हृदय जैसी चट्टानें नहीं। आदमी एक अनूठी बात है। आदमी उठे तो परमात्मा जैसा है; गिरे तो पाषाण भी काफी नहीं; उनसे भी नीचे गिर जाता है। आदमी गिरे तो ठीक नर्क निर्मित कर लेता है; उठे तो उसके चारों तरफ स्वर्ग है। आदमी इस छोर से उस छोर तक फैला हुआ है। आखिरी पशुता और आखिरी परमात्मा, आदमी में दोनों संभव हैं। आदमी एक सीढ़ी है, जिसका एक छोर आखिरी जमीन में लगा है, नर्क में टिका है, और दूसरा छोर आकाश में। 'यदि कोई प्रेम और अभय को छोड़ दे, कोई मिताचार और आरक्षित शक्ति को छोड़ दे, कोई पीछे चलना छोड़ कर आगे दौड़ जाए, तो उसका विनाश सुनिश्चित है। क्योंकि प्रेम आक्रमण में जीतता है।' अगर तुम्हारे पास प्रेम ही न रहा तो तुम्हारे पास कोई सुरक्षा न रही। तुम बिलकुल असहाय हो फिर। और तुम उलटा ही कर रहे हो। तुम सुरक्षा के दूसरे इंतजाम जमा रहे हो जिनके कारण प्रेम भीतर न आ सकेगा। और प्रेम एकमात्र सुरक्षा है। तुम्हारे भय के कारण तुम अपनी एकमात्र सुरक्षा को बाहर कर दिए हो। छोड़ो भय को! साहसी बनो! उठाओ कदम प्रेम में! खोने को कुछ भी नहीं है। पाने को सब कुछ है। 'और सुरक्षा में वह अभेद्य है।' जिसके पास प्रेम है, उसकी सुरक्षा अभेद्य है। माना कि जीसस को लोगों ने सूली पर लटका दिया, मिटा दिया शरीर उनका; लेकिन जीसस के अंतर्माण में वे प्रवेश न कर पाए। जीसस अभेद्य ही रहे, क्योंकि आखिरी क्षण में भी जीसस ने कहा कि परमात्मा, इन्हें क्षमा कर देना, क्योंकि ये जानते नहीं ये क्या कर रहे हैं। जीसस का प्रेम अखंड रहा। जीसस का हृदय जरा भी डगमगाया न, जरा भी क्रोध न उठा, जरा भी जहर की संभावना न बनी। ठीक हत्या की जा रही है, उस क्षण में भी जीसस की करुणा अपराजित, अजेय रही, अभेद्य रही। इसलिए लाओत्से कहता है, 'जिन्हें स्वर्ग नष्ट होने से बचाना चाहता है, उन्हें प्रेम के कवच से सुसज्जित करता है।' यह तो कहने की बात है। यह तो सिर्फ कहने का ढंग है। अच्छा तो यही हो कि तुम यह समझो कि जो बचना चाहते हैं, वे अपने को प्रेम से सुसज्जित कर लेते हैं। स्वर्ग तो सिर्फ साथ देता है; तुम जो करना चाहते हो, उसी में 40
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy