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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ आरिवरी प्रश्न : आपने कहा था, परमात्मा सामने मौजूद हो तो सोचो कि क्या मांगोगे? आप हमारे सामने मौजूद हैं और कहते हैं कि पूछना हो तो पूछो। मैं कागज और कलम लेकर बैठता हूं और मेरी मांगें और प्रश्न लिनवना चाहता हूं। घंटे निकल जाते हैं तो पाता हूं कि कागज कोरा का कोरा ही रह जाता है, लेकिन कागज और कलम हाथ से गिरते नहीं क्यों? महत्वपूर्ण है। समझना जरूरी है। तीन दशाएं हैं। एक तो तुम कागज-कलम लेकर बैठो कि क्या मांगना है, क्या पूछना है, और तत्क्षण हजारों प्रश्न उठ आएं, हजारों मांगें उठ आएं, जैसा कि सौ में निन्यानबे लोगों के लिए घटेगा। तुम यह तय न कर पाओगे कि अब क्या छोड़ें और क्या मांगें। हजार-हजार मांगें उठ आएंगी। तुम बड़ी बिगूचन में पड़ जाओगे कि क्या चुनें और क्या छोड़ें। कागज छोटा मालूम पड़ेगा, मांगें ज्यादा मालूम पड़ेंगी। कलम की स्याही पर्याप्त न मालूम पड़ेगी। प्रश्न बहुत उठेंगे, अनंत उठेंगे। एक तो यह दशा है। साधारणतः जिस व्यक्ति ने जीवन में कभी ध्यान, का कोई अनुभव नहीं किया है, उसकी यह दशा है। अगर . जीवन में ध्यान की थोड़ी झलक आनी शुरू हुई तो यह स्थिति पैदा होगी कि तुम कागज-कलम लेकर बैठोगे, हाथ रुके रहेंगे; कुछ भी सूझेगा न क्या पूछे! कुछ पूछने योग्य न लगेगा। कुछ मांगने योग्य न लगेगा। मन खाली रहेगा और मन की तरह ही कोरा कागज कोरा रह जाएगा। लेकिन हाथ से कलम-कागज गिरेंगे भी नहीं। फिर एक तीसरी दशा है जो समाधिस्थ की दशा है। उसके हाथ से कागज-कलम भी गिर जाएंगे। क्योंकि ध्यान की अवस्था मध्य में है। तुम सोच भी नहीं पाते, क्या पूछे। कुछ उठे भी पूछने योग्य तो लगता नहीं पूछने योग्य, व्यर्थ मालूम पड़ता है, कूड़ा-कर्कट मालूम पड़ता है। ध्यान की थोड़ी सी झलक ने सब प्रश्न व्यर्थ कर दिए; ध्यान की थोड़ी सी झलक ने सब मांगें व्यर्थ कर दीं। लेकिन अचेतन में ऐसा लगता है कि शायद कुछ पूछने जैसा बाकी हो; शायद कोई प्रश्न जो खयाल में न आ रहा हो, अभी बाकी हो। इसलिए हाथ में कागज-कलम पकड़े रह जाते हो। संदेह है। ध्यान अभी समाधि नहीं बनी। अभी असंदिग्ध नहीं हो कि सच में ही कोई सवाल नहीं रहा; हो सकता है यह सवाल ठीक न हो, लेकिन कोई सवाल भीतर छिपा हो और पीछे आता हो। माना कि ये मांगें व्यर्थ हो गईं, लेकिन शायद कोई मांग हो अंतरतम में छिपी, जो कतार में बहुत पीछे खड़ी हो और आ रही हो पास। इसलिए छोड़ भी नहीं पाते कागज-कलम; शायद कोई ठीक-ठीक प्रश्न, कोई ठीक-ठीक मांग उठ ही आए। प्रतीक्षा करते हो! तीसरी अवस्था है समाधिस्थ की, जिसका चेतन और अचेतन एक हो गया। अब वह सब तरफ देख पाता है। अचेतन छिपा नहीं है अंधेरे में प्रतीक्षा की कोई जरूरत नहीं है; रोशनी है भीतर। कोई प्रश्न नहीं है, कोई मांग नहीं है; कागज-कलम गिर जाते हैं। ये तीन दशाएं हैं। साधारण चित्त की दशाः प्रश्न ही प्रश्न, इतने कि कहां सम्हालो! मांगें ही मांगें, इतनी कि अंत नहीं मालूम होता! फिर ध्यान की मध्यस्थ अवस्था है: जब विचार थोड़े शांत हो गए; मन थोड़ा तल्लीन होने लगा; उखड़ा वृक्ष थोड़ा-थोड़ा जमने लगा, जड़ें पकड़ने लगा। अभी पकड़ ही नहीं ली पूरी जड़ें, आश्वस्त नहीं है, लेकिन अब चंचल भी नहीं है। अभी बिलकुल मिट नहीं गया, लेकिन शांत हुआ। विक्षिप्तता चली गई है; विमुक्ति आने को है। जो व्यर्थ था वह जा चुका है; सार्थक के आने की प्रतीक्षा है। घर अभी खाली है। संसार हटने लगा पीछे मन से; परमात्मा अभी विराजमान नहीं हो गया है। सिंहासन संसार से तो खाली हो गया है। लेकिन प्रभु के पदार्पण की थोड़ी देर है। 418
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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