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________________ ताओ उपनिषद भाग६ 'सज्जन विवाद नहीं करता।' वह कुछ भी सिद्ध करने के लिए उत्सुक नहीं है। अगर उसका होना ही काफी प्रमाण नहीं है तो वह चिंता नहीं करता। क्योंकि जब उसका होना ही प्रमाणित नहीं कर सकता तो और क्या प्रमाणित करेगा? 'बुद्धिमान व्यक्ति बहुत बातें नहीं जानता; जो बहुत बातें जानता है वह बुद्धिमान नहीं है।' बुद्धिमान व्यक्ति एक ही बात जानता है; उसका सारा जानना एक का ही जानना है। वह हजार ढंग से वही कहता है, वह एक ही कहता है। उसका स्वर एक है। वाद्य वह कोई भी चुने, कभी वीणा पर बजाए, कभी बांसुरी पर, कभी सितार को छेड़े, कभी तबले पर, मृदंग पर। लेकिन उसका स्वर एक है, उसका गीत एक है। वह गाता एक ही बात है। मैं तुमसे रोज बोलता हूं, और ऐसा रोज बोलता रह सकता हूं अनंत काल तक। मगर मैंने तुमसें एक बात छोड़ कर दूसरी बात नहीं कही है। बहुत-बहुत द्वारों से मैं तुम्हें एक ही द्वार पर ले आया हूं। बहुत-बहुत शब्दों से एक निशब्द की तरफ ही इशारा किया है। लाओत्से कहता है, बुद्धिमान आदमी बहुत बातें नहीं जानता। वह एक को ही जान लेता है; क्योंकि उस एक को ही जान लेने से सब जान लिया जाता है। उद्दालक का बेटा श्वेतकेतु घर लौटा तो उसके पिता ने पूछा, तू क्या-क्या जान कर लौटा है ? तो उसने कहा, सब जान कर लौटा हूं। ज्योतिष, गणित, व्याकरण, भाषा, भूगोल, इतिहास, पुराण, वेद, स्मृतियां, श्रुतियां; सभी जान कर लौटा हूं। बाप ने कहा, तूने वह एक जाना या नहीं जिसको जान लेने से सब जान लिया जाता है? श्वेतकेतु बहुत अकड़ से आया था, सब जान कर आया था, प्रमाणपत्र लेकर आया था गुरुकुल से। गुरुओं ने बड़ी प्रशंसा की थी, क्योंकि बड़ा प्रतिभाशाली व्यक्ति था। स्मृति उसकी अपार थी; वेद कंठस्थ हो गए थे। सोचा था बाप बहुत प्रभावित होगा। और बाप ने एक अजीब सा सवाल पहले ही क्षण में पूछ लिया कि बेटा जमीन पर गिर गया, अहंकार टूट गया। कहा कि नहीं, उस एक को तो जान कर नहीं आया जिसको जानने से सब जान लिया जाता है। सब जान कर आया है; एक का मुझे कोई भी पता नहीं है। गुरुओं ने उसकी बात ही नहीं की। यह सवाल ही वहां नहीं उठा। तो बाप ने कहा, वापस जा। सब जानने से क्या होगा? यह तो सब असार है। तू तो एक को ही जान कर लौट। उस एक को ही जान लेने से सब जान लिया जाता है। वापस लौट गया श्वेतकेतु एक को जानने। लाओत्से कहता है, 'बुद्धिमान व्यक्ति बहुत बातें नहीं जानता है; जो बहुत बातें जानता है वह बुद्धिमान नहीं है।' बहुत के जानने का आग्रह ही इसलिए होता है कि तुम एक से चूक रहे हो। एक को पा लोगे, तप्त हो जाओगे; जानने की प्यास ही बुझ जाएगी। इसलिए बहुत बातें जानते हो, जानने की चेष्टा करते हो, और जान लें, और जान लें, क्योंकि प्यास मिटती नहीं। तुम्हारा ज्ञान, जिसको तुम ज्ञान कहते हो, कितना ही पीए चले जाओ, कंठ सूखता ही चला जाता है; प्यास मिटती नहीं। प्यास नहीं मिटती तो मन होता है और पीयो, और पीयो। शायद पर्याप्त नहीं पी रहे हैं। इसलिए आदमी ज्ञान को इकट्ठा करता चला जाता है। वह ज्ञान का सागर हो सकता है, लेकिन प्यास न मिटेगी। क्योंकि सागर से कहीं प्यास मिटी है? प्यास के लिए तो छोटा सा एक का झरना चाहिए। बड़े से बड़ा सागर भी प्यास न बुझा सकेगा। वह बहुत खारा है। तुम सब जान लो, सागर जैसा तुम्हारा ज्ञान हो जाए विस्तीर्ण, फिर भी तुम प्यासे रहोगे। तृप्ति तो उसके झरने से मिटती है, तृप्ति तो उसके झरने से होती है; वह एक का झरना है। उस एक को ही उपनिषद ब्रह्म कहते हैं, उस एक को ही लाओत्से ताओ कहता है। उस एक को तुम जो भी नाम देना चाहो दे दो, परमात्मा कहो, निर्वाण कहो, सत्य कहो, पर वह एक है। और वह एक तुमसे दूर नहीं; तुम्हारे भीतर है। 394
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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