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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ अपने पास तो तुम्हारी भीड़ को इकट्ठा करके क्या करूंगा? तुम्हारी भीड़ नहीं चाहिए, तुम्हारा निरहंकार भाव चाहिए। एक भी व्यक्ति मेरे पास हो, लेकिन निरहंकार की भाव-दशा में हो, तो जो मैं चाहता हूं-जो परम फूल मुक्ति का-वह उसमें खिल सकता है। दूसरी तरह के लोग हैं जो इस आशा में मेरे पास आते हैं, उनकी कोई मान्यताएं नहीं हैं, वे मान्यताओं की तलाश में आते हैं, कि कुछ भरोसे के लिए मिल जाए, कुछ विश्वास करने को सहारा मिल जाए। वे डगमगा रहे हैं। शायद शिक्षा ने, आधुनिक जगत ने उन्हें ठीक-ठीक आधार नहीं दिए मान्यताओं के, धर्म की ठीक-ठीक शिक्षा नहीं हो पाई बचपन में, तो उनका अहंकार थोड़ा डांवाडोल है, संदिग्ध है। वे आते हैं इस तलाश में कि मैं उनके अहंकार को असंदिग्ध कर दूं, उन्हें कुछ मान्यताएं दे दूं। उनके पास मान्यताएं नहीं हैं, वे मेरे पास मान्यता लेने आते हैं। वे भी गलत लोग हैं। क्योंकि मैं किसी को मान्यता देना नहीं चाहता। मैं तुम्हें ज्ञान देना चाहता हूं, मान्यता नहीं। मान्यता तो झूठ है। मान्यता का तो अर्थ है : जो तुम नहीं जानते उसे मान लिया; जिसे नहीं देखा उसे स्वीकार कर लिया; जिसका कोई स्वाद नहीं लिया उस पर उधार भरोसा कर लिया। किसी और की आंख से देखने का नाम मान्यता है। वे चाहते हैं कि मेरी आंख से देखना हो जाए। मेरी आंख से तुम कैसे देख सकोगे? तुम अपनी ही आंख से देख सकोगे। और मेरी आंख से अगर देखा तुमने तो तुम्हारी आंख अंधी हो जाएगी। और तुम्हें मैं अंधा नहीं बनाना चाहता, मैं तुम्हें तुम्हारी आंख देना चाहता हूं। विश्वास नहीं, मान्यता नहीं, बोध! दूसरी तरह का व्यक्ति उतना कठिन नहीं जितना पहली तरह का व्यक्ति। लेकिन वह भी हैरान होता है। वह आया था अपनी मान्यताओं को मजबूत करने, और उसके पास जो थोड़ी-बहुत संदिग्ध मान्यताएं थीं वे भी मैं तोड़ डालता हूं। फिर एक तीसरी तरह का व्यक्ति है, जिसकी न कोई मान्यता है, न जो किसी मान्यता की तलाश में आया है। वही सत्य का खोजी है। उसके लिए सत्य बिलकुल कर्ण-मधुर होगा। उस पर माधुर्य की वर्षा हो जाएगी। उसके चारों तरफ काव्य की धुन बजने लगेगी। उसे मैं एक गीत की तरह लपेट लूंगा चारों तरफ से। तत्क्षण उसके भीतर नये का आविर्भाव होने लगेगा। उसके भीतर के मंदिर की घंटियां बजने लगेंगी, अर्चना के दीये जल जाएंगे, धूप से सुगंध उठने लगेगी। अगर तुम शून्य होकर आए हो तो सत्य मधुर लगेगा, अति मधुर लगेगा। उससे मीठा कहीं कुछ है? तुम पर निर्भर है, कैसे तुम आए हो। तीसरी तरह का आदमी तो बहुत मुश्किल कभी-कभी आता है। दूसरी तरह के लोगों को थोड़ी कम मेहनत से तीसरी तरह का आदमी बनाया जा सकता है। पहली तरह के लोगों को बड़ी मुश्किल से तीसरी तरह का आदमी बनाया जा सकता है। पहले तो वे रुकते ही नहीं, बनाने का मौका नहीं देते; भाग जाते हैं। उनकी मान्यता को जरा चोट लगी कि वे भागे। वे छुईमुई हैं। तुमने एक पौधा देखा होगा, लजनू। उसको छू दो, बस उसकी पंखुड़ी बंद हो जाती हैं एकदम, सब पत्ते बंद हो जाते हैं। वह बिलकुल मुर्दे की तरह हो जाता है। ऐसे ही पहली तरह के लोग हैं-छुईमुई। उनकी मान्यता को छु दो कि बस समाप्त; वे बंद हो गए। फिर तुमसे उनका कोई लेना-देना न रहा। फिर वे कभी तुम्हारी तरफ आंख उठा कर न देखेंगे। उनकी आंख बंद हो गई। तुम उनके लिए रहे नहीं, वे तुम्हारे लिए न रहे। सब सेतु टूट गए। इस तरह का आदमी सबसे ज्यादा अधार्मिक आदमी है। और इसी तरह के लोग मंदिर-मस्जिदों में अड्डा जमा कर बैठे हैं। तो बड़ी दुर्घटना घट गई है। अधार्मिक धार्मिक स्थलों में अड्डा जमा लिए हैं। दूसरी तरह का आदमी मध्य बिंदु में है। वह धार्मिक भी हो सकता है, अधार्मिक भी हो सकता है। अगर कोई उसकी मान्यताएं मजबूत कर दे और नयी मान्यताएं दे दे, तो वह मंदिरों में सम्मिलित हो जाएगा। वह भी अधार्मिक हो 388
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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