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नुष्य जैसा है वैसा एक झूठ है, एक गहरा असत्य, एक मिथ्यात्व, एक वंचना; पर्त दर पर्त झूठ और झूठ। जैसे प्याज को कोई छीले, और हर पर्त के बाद नयी पर्त निकलती आए, ऐसे मनुष्य का झूठ है। गहरी झूठ की आदत है। सत्य अपने आप में न तो कर्ण-मधुर है और न कठोर; न तो मीठा है न कड़वा। लेकिन मनुष्य इतना असत्य है; इस कारण सत्य के शब्द सदा ही कठोर मालूम पड़ेंगे। तुम्हारे असत्य के कारण। सत्य तो निष्पक्ष है। सत्य का कोई स्वाद नहीं है। सत्य तो स्वादातीत है। लेकिन तुम्हें स्वाद आएगा, तुम पर निर्भर करेगा। अगर तुम सच्चे हो तो सत्य से ज्यादा कर्ण-मधुर
और कुछ भी नहीं। अगर तुम झूठ हो, जैसे कि तुम बड़ी मात्रा में हो, तो
सत्य हर जगह से चोट करेगा, चुभेगा, कांटे जैसा मालूम पड़ेगा। इसे ठीक से समझ लेना, तो ही लाओत्से के वचन समझ में आ सकेंगे। अन्यथा भूल हो सकती है।
जिस व्यक्ति ने अपने व्यक्तित्व के झूठ का परित्याग कर दिया, जो सहज और सरल हो गया, उसके लिए सत्य तो अमृत जैसा मालूम होगा। उसके लिए बस सत्य ही पीने जैसा लगेगा। वह वर्षों प्यासा रह सकता है। जैसे चातक की कथा है कि स्वाति की बूंद की प्रतीक्षा करता है। सरोवर भरा है जल से, लेकिन स्वाति की बूंद की प्रतीक्षा करता है। ऐसे ही बहुत ज्ञान भरा रहे सब तरफ, लेकिन सत्य का खोजी, सत्य की बूंद की प्रतीक्षा करता है। वही है अमृत, वही बूंद बनेगी मोती उसके हृदय में जाकर, उसी बूंद से उसके मोक्ष का द्वार खुलेगा।
सत्य अपने आप में न तो मीठा है न कड़वा। जो सत्य को उपलब्ध हो गया है, जो सत्य हो गया है, उसे न तो सत्य मीठा मालूम पड़ेगा न कड़वा। सत्य तो उसके होने के ढंग में एक हो जाएगा। उसका कोई स्वाद ही न आएगा। स्वाद तो उसका आता है जो हमसे विजातीय हो, हमसे भिन्न हो। तुम्हें अपना ही स्वाद आता है? अपना क्या स्वाद! सत्य को जो उपलब्ध हो गया है उसे सत्य का कोई भी स्वाद न आएगा; उसे पता ही न रहेगा कि सत्य क्या है, असत्य क्या है। वह तो भूल ही जाएगा, संसार क्या है, मोक्ष क्या है। ये तो सब सपने हो जाएंगे, जो टूट गए। वह नींद तो मिट गई। जो सत्य में जाग गया है, सपनों के स्वाद उसके खो ही जाएंगे।
लेकिन तुम जागे नहीं, तुम गहन निद्रा में हो। इसलिए जो भी जगाएगा वह कड़वा मालूम पड़ेगा। जो भी जगाएगा! क्योंकि नींद को तुमने बड़ा मधुर मान रखा है। तो जो भी तुम्हारी नींद तोड़ेगा वही दुश्मन मालूम पड़ेगा। सुबह कभी तुम्हें उठना हो पांच बजे तो तुम कह कर सोते हो कि मुझे उठा देना। तुम ही कह कर सोते हो कि उठा देना, और सुबह पांच बजे जब तुम्हें कोई उठाने लगता है तो शत्रु जैसा मालूम पड़ता है। नींद बड़ी मधुर लग रही है तुम्हें, और झूठ बड़े प्यारे लग रहे हैं। झूठ को ही तुमने अपने चारों तरफ बसाया है। वही तुम्हारा घर है। वही तुम्हारी दुनिया है। उसके टूटने में लगता है तुम ही टूट जाओगे। नींद टूटने में ऐसा लगता है तुम टूट रहे हो।
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