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ताओ उपनिषद भाग ६
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हमेशां स्मरण रखो : जीवन को बदलना हो तो पत्तों को मत काटो, शाखाओं से मत उलझो; जड़ की तरफ जाओ। जड़ कहां है? जड़ यहां है; दूसरे को दोषी ठहराना जड़ है। उसकी आड़ में तुम्हारा अहंकार खड़ा होता है। बस फिर जाल शुरू हो गया। फिर अहंकार और भी दूसरे को दोषी ठहराएगा। जितना दूसरे को दोषी ठहराएगा उतना अहंकार बड़ा होता जाएगा। अब तुम एक ऐसे उपद्रव में पड़े जिससे बाहर आना मुश्किल मालूम होगा।
लेकिन मुश्किल नहीं है, समझ के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। नासमझ के लिए बहुत मुश्किल है; क्योंकि नासमझ पत्तियां काटने लगेगा। अहंकार की जड़ तो न गिराएगा, अहंकार को सजाने में लग जाएगा। वह कहेगा,
हाथी है, कुत्ते भौंकते रहते हैं।
तुम्हारे नीति के बहुत से वचन सिवाय अहंकार के अलंकरण के और कुछ भी नहीं हैं । तुम्हारे हितोपदेशों में सिवाय अहंकार को सजाने के और कुछ भी नहीं है। छोटे-छोटे बच्चों को तुम अहंकार देते हो। छोटे-छोटे बच्चों से तुम कहते हो कि देखो, इस तरह झगड़ना ठीक नहीं; तुम कुलीन हो ! याद रखो, किस कुल में पैदा हुए हो ! हाथियों के कुल में पैदा हुए हो और कुत्तों के भौंकने से नाराज हो रहे हो। छोटे-छोटे बच्चों को तुम अहंकार दे रहे हो कि यह तुम्हारे योग्य नहीं है कि तुम क्रोध करो। तुम जड़ नहीं काट रहे, तुम जड़ को बढ़ा रहे हो, पानी दे रहे हो। तुम बच्चे से कह रहे हो, यह तुम्हारे योग्य नहीं । तुम बच्चे को कह रहे हो, तुम्हारा अहंकार इतना बड़ा है, तुम ऐसे बड़े कुल में पैदा हुए हो। देखो, तुम्हारे पिता, उनके पिता, कभी क्रोध नहीं किए, और तुम क्रोध कर रहे तुम बच्चे को अहंकार दे रहे हो। और अहंकार जड़ है सारे उपद्रवों की, और तुम सोचते हो कि तुम उपद्रवों से बचा रहे हो बच्चे को ।
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लेकिन सारा जीवन ऐसा चल रहा है; इसलिए तो सारा जीवन एक कलह हो गया है। वहां शांति नहीं है। और अगर कभी शांति होती भी है तो बस थेगड़े वाली शांति होती है। भीतर कुछ और ही छिपा होता है; ऊपर-ऊपर थेगड़े हैं। तुम गौर से देखोगे तो अपने को पाओगे कि तुम भिखारी की गुदड़ी जैसे हो जिसमें थेगड़े ही थेगड़े लगे हैं। तुम्हारे भीतर कुछ भी साबित नहीं है; छेद और थेगड़े। इससे तुम आत्मवान कैसे बनोगे !
लाओत्से के सूत्र को समझने की कोशिश करो।
'भारी वैर में सुलह के बाद भी थोड़ा वैर शेष रह जाता है। पैचिंग अप ए ग्रेट हेट्रेड इज़ श्योर टु लीव सम ट्रेड बिहाइंड । '
अगर घृणा में तुमने थेगड़े लगाए तो कुछ न कुछ घृणा पीछे शेष रह जाएगी। रह ही जाएगी। थेगड़े में छिप जाएगा फटा हुआ कपड़ा; मिट तो न जाएगा। अगर तुमने दुश्मन से सुलह करने की कोशिश की तो सुलह के भीतर सुलगती आग सदा ही बनी रहेगी। सुलह का मतलब ही होता है कामचलाऊ । सुलह का मतलब यह होता है कि अभी लड़ने का ठीक समय नहीं। सुलह का मतलब यह होता है कि अभी परिस्थिति इस योग्य नहीं कि लड़ो। सुलह का मतलब होता है लड़ाई को कल पर टालना । ठीक अवसर पर, ठीक मौके पर, जब तुम्हारा हाथ ऊपर होगा तब तुम देख लोगे। इसलिए दुनिया में कितनी शांति संधियों पर हस्ताक्षर होते हैं ! और सब शांति संधियां युद्धों में नष्ट होती हैं। जब शांति-संधियों पर हस्ताक्षर होते हैं तभी साफ रहता है कि युद्ध होने के करीब है । थेगड़े लगाए जाते हैं; राष्ट्र भी लगाते हैं, व्यक्ति भी लगाते हैं । सब अपना-अपना चेहरा बचाने की कोशिश में होते हैं। जब तुम ताकतवर हो जाते हो तब तुम फिक्र छोड़ देते हो; फिर चेहरा बचाने की कोई जरूरत नहीं ।
जर्मनी ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किए पहले महायुद्ध के बाद, सिर्फ इसलिए किए कि कमजोर पड़ गया, युद्ध ने जराजीर्ण कर दिया। लेकिन वह सिर्फ तैयारी के लिए था। बीस साल लगे तैयार होने में; फिर दूसरा युद्ध खड़ा हो गया। यह उसी दिन जाहिर था, क्योंकि सुलह के भीतर सुलगती हुई आग थी।