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________________ ताओ उपनिषद भाग६ कितना ही तुम गीत गुनगुना रहे हो, गीत ऊपर-ऊपर है; नीचे क्रोध चल रहा है, भभक रहा है। जरा सी गाली! बारूद मौजूद है, कोई चिनगारी फेंक दे जरा सी, बस विस्फोट हो जाता है। चिनगारियों से विस्फोट नहीं होते, जो बारूद तुम अपने भीतर लेकर चलते हो उससे ही विस्फोट होते हैं। तुम बड़ी बारूद लिए चल रहे हो। कारण वहां है। तो जब कोई तुम्हें गाली दे तो दो उपाय हैं। या तो तुम जिम्मेवार उसे समझो कि इस आदमी ने क्रोधित करवा दिया! या तुम अपने को जिम्मेवार समझो कि मेरे भीतर क्रोध था, इस आदमी की बड़ी कृपा कि गाली देकर भीतर का दर्शन करवा दिया। तब तुम शत्रु को धन्यवाद दे सकोगे। और जिस दिन तुम शत्रु को धन्यवाद दे सकोगे कि तुम्हारी बड़ी कृपा है, मुझे तो पता ही नहीं था, मैं गीत गुनगुना रहा था-इस गीत की गुनगुनाहट में हम भूले ही रह जाते-तुमने भीतर की आग दिखा दी, धन्यवाद! जैसे ही तुम अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेते हो, पहली दफे तुम्हारे भीतर व्यक्तित्व का जन्म होता है। तुम स्वतंत्र हुए। तुमने यह कहा कि मैं कारण हूं। तुमने मालकियत अपने हाथ में ले ली; मालिक दूसरा न रहा। इस बात को ठीक से समझ लेना। जब भी तुम दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हो, तुम दूसरे को मालिक बना रहे हो। दूसरा गाली देता है तो तुम क्रोधित हो जाते हो दूसरा स्वागत करता है तो तुम प्रसन्न हो जाते हो। दूसरा फूलमाला चढ़ाता है तो तुम्हारे आनंद का अंत नहीं है, और दूसरा जरा सा हंस देता है व्यंग्य में, और तुम्हारे सब भवन गिर जाते हैं। तो दूसरा मालिक है। फ्रायड और मार्क्स और वे सारे लोग जो कहते हैं दूसरा जिम्मेवार है, वे तुम्हारी मालकियत छीने ले रहे हैं, वे तुम्हें गुलाम बना रहे हैं। फ्रायड और मार्क्स की सारी धारणा मनुष्य को गुलाम और गहरा गुलाम बनाएगी, आत्मवान नहीं। मालकियत तुम्हारे हाथ में होगी कैसे? जब सब चीजों के लिए दूसरा जिम्मेवार है तो तुम कौन हो? तुम तो लहरों पर हवा के झोंकों में भटकते हुए एक लकड़ी के टुकड़े हो। जब लहर पूरब जाती, तुम पूरब जाते; हवा दक्षिण जाती, तुम दक्षिण जाते; हवा नहीं चलती, तुम वहीं पड़े रह जाते हो जहां हवा छोड़ देती है। तुम कौन हो? तुम्हारा होना कहां है? तुम्हारे अस्तित्व की अभी पहली खबर भी तुम्हें नहीं मिली, और तुम्हारी आत्मा ने मालकियत का अभी तक कोई दावा नहीं किया, कोई उदघोषणा नहीं की। जिस क्षण तुम कहते हो कि जिम्मेवार मैं हूं, तुम मालिक बनने शुरू हो गए, तुम्हारे भीतर रूपांतरण शुरू हुआ। अब न केवल सुख में, न केवल दुख में, हर हालत में, कोई भी मनोदशा हो, तुम ही अपने को कारण समझोगे। उपनिषदों में ऋषि कहते हैं कि कोई अपनी पत्नी को प्रेम नहीं करता; पत्नी के द्वारा अपने को ही प्रेम करता है। कोई पुत्रों को प्रेम नहीं करता; पुत्रों के द्वारा अपने को ही प्रेम करता है। प्रेम हो, घृणा हो; सुख हो, दुख हो; क्रोध हो, करुणा हो; हर हालत में तुम अपने पर ही लौट आते हो।। यह पूरब की गहनतम खोज है। तुमसे ही तुम्हारा प्रारंभ है, और तुम पर ही तुम्हारा अंत है। जिस दिन तुम यह जान लोगे, पहचान लोगे...। और कोई कठिनाई नहीं है, सारा जीवन इसका शास्त्र है। थोड़ा पढ़ना सीखो। थोड़े शब्दों के अर्थ सीखो। थोड़े जीवन के संकेत को पहचानो। और तुम जान लोगे कि तुम ही मालिक हो। फिर तुम्हारी मर्जी, तुम्हें क्रोधित होना हो क्रोधित हो जाना, लेकिन जिम्मेवार दूसरे को भूल कर मत ठहराना। और तब तुम पाओगे तुम क्रोधित भी नहीं हो सकते। क्योंकि क्रोध तभी संभव है जब दूसरा जिम्मेवार हो। नहीं तो क्रोध किस पर करना? किस कारण करना? धीरे-धीरे तुम पाओगे कि तुम्हारे जीवन का वैमनस्य गिरने लगा। तुम समझौता नहीं करते, न ही तुम किन्हीं शर्तों पर किसी तरह की शांति की व्यवस्था करते हो; तुम बेशर्त अपने मालिक हो जाते हो, और दूसरे पर से सारी जिम्मेवारी हटा लेते हो। तुम अपने संसार खुद हो जाते हो। तुम्हारे जीवन |3500
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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