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ताओ उपनिषद भाग ६
इसलिए संत के पास रहना कठिन है। अगर कोई रह जाए—उस रहने के लिए बड़ा धीरज चाहिए, बड़ी क्षमता चाहिए, प्रतीक्षा की कला चाहिए, जल्दबाजी और निर्णय से बचने की क्षमता चाहिए-अगर कोई संत के पास रह जाए, धीरे-धीरे-धीरे-धीरे कुछ करे भी न, सिर्फ रह जाए, सिर्फ संत को अपने भीतर मिलने दे और निमज्जित होने दे, संत की ऊर्जा के साथ अपनी ऊर्जा को एक होने दे, थोड़ा सा भी संस्पर्श हो जाए, तो जैसे पारस की कथा है कि वह लोहे को सोने में बदल देता है, ऐसा पारस कहीं होता नहीं, कहानी है। लेकिन संत के पास ऐसा पारस है। संत ऐसा पारस है।
लाओत्से कहता है, वही संसार का सम्राट है।'
और फिर वह कहता है, 'ये सीधे-सादे शब्द टेढ़े-मेढ़े दिखते हैं।'
क्योंकि तुम सम्राट को सिंहासन पर खोजते हो; वहां नहीं है सम्राट, सिंहासन खाली है। वहां मुर्दे, पापी, हत्यारे बैठे हुए हैं। तुम राजधानियों में खोजते हो; वहां नहीं है। तुम सत्ताधिकारियों में खोजते हो; वहां नहीं है। तुम बलशालियों में खोजते हो; वहां नहीं है। संत तो तरल है, पानी की तरह तरल है। वाष्प की तरह अदृश्य है। बड़ी गहन तुम्हें खोज करनी पड़ेगी। और उन जगहों में खोजना पड़ेगा जहां तुम सोचते ही नहीं थे। हो सकता है तुम्हारे पड़ोस में हो, और वहां तुमने कभी नहीं खोजा। क्योंकि अपने पड़ोसी में कभी कोई संत देख सकता है? असंभव!
___मैं बहुत से गांवों में रहा हूं। दुनिया के दूर-दूर कोने से लोग आ जाते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं आता। यह नियम मैंने समझ लिया कि यह पक्का नियम है, इसमें कुछ हो ही नहीं सकता। एक मकान में मैं आठ साल रहा। मेरे ऊपर ही जो सज्जन रहते थे, वे कभी मुझसे मिलने नहीं आए। करीब-करीब रोज सीढ़ियों पर या रास्ते पर मिलना-जुलना हो जाता। नमस्कार हो जाती। वह भी मुझे ही करनी पड़ती। इतना खतरा भी उन्होंने कभी नहीं लिया कि अपनी तरफ से नमस्कार करें। फिर आठ साल बाद-वे किसी कालेज के प्रिंसिपल थे; बदली हो गई-जब मैं उनके गांव में बोलने गया, तब उन्होंने मुझे सुना। रोने लगे आकर मेरे पास कि मैं भी कैसा अभागा हूं कि आठ साल ठीक तुम्हारे सिर पर था! मैंने कहा, इसीलिए चरणों में आने में कठिनाई हुई। सिर पर थे, चरणों में आने में बहुत कठिनाई है। चलो देर-अबेर जब आ गए, कुछ देर नहीं हो गई। अभी भी आ गए तो ठीक।।
मुल्क के मैं बहुत से नगरों में रहा हूं। लेकिन देख कर चकित हुआ, इसको मैंने फिर मान लिया कि यह कोई सिद्धांत ही होना चाहिए कि पड़ोसी नहीं आएगा। आ ही नहीं सकता। क्योंकि पड़ोसी में, तुम्हारे पड़ोसी में और परमात्मा हो सकता है? असंभव! तुम्हारे रहते और तुम्हारे पड़ोसी में? यह संभव ही नहीं हो सकता।
सीधी-सीधी बातें भी तुम्हारे टेढ़े-मेढ़े मन के कारण टेढ़ी-मेढ़ी दिखाई पड़ती हैं। पड़ोसी में भी परमात्मा है। और ऐसा नहीं कि तुम में नहीं है। तुम में भी परमात्मा है। लेकिन तुम न तो अपने पड़ोसी में मान सकते हो, और न अपने में मान सकते हो। और परमात्मा कहीं बहुत दूर आकाश में छिपा नहीं है; यहां जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं में छिपा है। परमात्मा कोई ऐसा सत्य नहीं है जिसे तुम एक दिन आखिर में उघाड़ लोगे; हर तथ्य के भीतर छिपा है सत्य। तथ्य तो सिर्फ चूंघट है, जरा सा उठाओ और वहीं से तुम्हें सत्य मिलना शुरू हो जाएगा।
लाओत्से ने बहुत से तथ्यों पर से वस्त्र उठाए हैं। और यह एक गहनतम तथ्य है कि जीवन में कोमल होना, तो तुम जीवंत होओगे। सख्त हुए कि मरे। कमजोर होना, तो ही तुम बलशाली रहोगे। बलशाली हुए कि तुमने अपने को गंवा दिया। जो अपने को बचाएगा वह गंवाएगा। और जो अपने को बिलकुल गंवा कर एकदम निर्बल हो जाता है, निश्चित ही राम उसके हैं। निर्बल के बल राम!
आज इतना ही।
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