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बिर्बल के बल राम
क्षण में उसने गाली दिलवाई है; जरूर कोई राज होगा, कोई रहस्य होगा, कोई छिपी बात होगी। हम जल्दी न करें। हम स्वीकार कर लें। तब तुम पाओगे दुख में भी सुख की सुवास आने लगी। और क्रोध से भी करुणा जन्मने लगी। और तुम्हारे भीतर हर कांटा फूल बन जाता है। फेंके जाते हैं अंगारे और तुम्हारे भीतर सब शीतल हो जाते हैं।
'जो संसार की गालियों को अपने में समाहित कर लेता है, वह राज्य का संरक्षक है। जो संसार के पाप अपने ऊपर ले लेता है, वह संसार का सम्राट है।'
कहीं भी कुछ बुरा हो रहा है, कहीं भी कोई पाप हो रहा है, जो अपने को जिम्मेवार मानता है, जो समझता है कि मेरा उसमें हाथ है, और जो उसे अपने ऊपर ले लेता है, वही सुरक्षा बन जाता है, वही सम्राट है। सम्राट वे नहीं हैं जो सिंहासनों पर बैठे हैं। सम्राट वे हैं जिन्हें तुम शायद खोज भी न पाओगे। सम्राट वे हैं जिन्होंने तुम्हारे सारे पाप को अपने ऊपर ले लिया है, जिन्होंने तुम्हारे सारे पापों की अग्नि को अपने भीतर शीतल करने की व्यवस्था कर ली है, जो तुम्हें शुद्ध करने की प्रक्रिया हैं।
जीसस के संबंध में ईसाइयों का विश्वास है कि उन्होंने सारे संसार के पाप अपने ऊपर ले लिए। सारे संसार का पाप उन्होंने अपनी सूली में समाहित कर लिया। सारे संसार को जो दुख मिलना चाहिए पापों के कारण, वह उन्होंने सूली पर झेल लिया उस एक क्षण में।
यह बात बड़ी महत्वपूर्ण है। संत का अर्थ ही यही है। इसके कारण बहुत से प्रतीक संसार में फैल गए। और प्रतीक धीरे-धीरे अर्थहीन हो जाते हैं।
तुम पाप करते हो, तुम जाकर गंगा में स्नान कर आते हो। प्रतीक तो बड़ा कीमती है, क्योंकि तीर्थ का अर्थ ही वह होता है जहां तुम्हारे सब पाप ले लिए जाएं। मूलतः तो गंगा में लोग तीर्थ के लिए स्नान के लिए नहीं जाते थे, क्योंकि गंगा के किनारे संतों का वास था। गंगा तो बाद में धीरे-धीरे-धीरे-धीरे प्रतीक की तरह महत्वपूर्ण हो गई। संत रहे न रहे, गंगा महत्वपूर्ण हो गई। लेकिन गंगा के किनारे संतों का वास था; उनके कारण गंगा तीर्थ बन गई।
संतों के पास जाने का अर्थ ही यह है कि कोई, जो तुम्हारे लोहे को सोने में बदल देगा, जो पारस की तरह है। उसका स्पर्श तुम्हें रूपांतरित कर देगा, तुम्हारी विकृति को जो सुकृति में बदल देगा। तुम्हारी निम्नता को जो रूपांतरित करेगा। तुम्हारी अधोगामी ऊर्जा को जो ऊर्ध्वगामी कर देगा। संत के संस्पर्श का इतना ही अर्थ है, जो तुम्हारे दुख, तुम्हारी पीड़ाएं, तुम्हारा पाप, तुम्हारा अंधकार ले लेगा, और तुम्हें प्रकाश दे देगा। संत ले सकता है तुम्हारा पाप, क्योंकि पाप को संत पुण्य में बदलने की कला जानता है। तुम सोचते हो कि तुम पाप दे आए; संत तो हर चीज से पुण्य निकाल लेने की कला जानता है। तुम्हारा पाप भी संत के पास पुण्य हो जाता है। लेकिन तुम हलके हो जाते हो और संत तुम्हें पुण्य से भर देता है।
इसका क्या अर्थ है ? इसका गूढ़ अर्थ केवल इतना ही है जैसे चुंबक के पास लोहा खिंचा चला जाता है; और चुंबक के पास अगर लोहा बहुत देर रह जाए तो लोहे में भी चुंबक का गुण आ जाता है। बस इतना ही अर्थ है। सत्संग का इतना ही अर्थ है, संतों के पास होने का इतना ही अर्थ है कि तुम अगर उनके पास थोड़ी देर रह गए...।
रहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि पाप की लत तुम्हें दूर जाने को कहेगी। रहना मुश्किल है, क्योंकि संत तुम्हें रूपांतरित करेगा और तुम्हारा अहंकार बाधा डालेगा। रहना मुश्किल है, क्योंकि तुम्हारी बुद्धि बड़े सिद्धांतों को माने बैठी है; संत तुम्हारे सब सिद्धांतों को तोड़ेगा। तुम्हें बड़ी नाराजगी आएगी। तुम्हें बड़ा क्रोध होगा। तुम्हारी मान्यताएं खंडित होंगी। तुम्हारे आदर्श गिरेंगे। तुमने जिन मूर्तियों को परमात्मा की समझा है, वह पत्थर कहेगा। तुम्हें बड़ी बेचैनी होगी। तुम्हारी बुद्धि राजी न होना चाहेगी। तुम्हारा अहंकार इनकार करेगा। तुम्हारा समग्र व्यक्तित्व पाप की मांग करेगा। और तुम्हारा जो जीवन का पुराना ढांचा है, तुम उसमें वापस लौट जाना चाहोगे।
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