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ताओ उपनिषद भाग ६
दुश्मन सबसे दूर है। बीच में मित्र हैं। फिर तुम हो। दुश्मन तुम्हारा अड्डा है जहां तुम सीखोगे क्या करना कठोर होना? दुश्मन के साथ कठोर हुए तो मित्र के साथ भी कठोरता जारी रहेगी। और तुम जो विनम्रता दिखलाओगे वह चेहरे पर होगी, वह असली में भीतर नहीं होगी। और अपने साथ-जो कि आखिरी मित्रता है-वहां भी तुम वही व्यवहार करोगे। बुद्ध ने कहा है, तुम ही हो अपने मित्र और तुम ही हो अपने शत्र। अगर तुम कठोर होने का अभ्यास कर लेते हो-घृणा का, ईर्ष्या का, मत्सर का-तो तुम अपने दुश्मन हो जाओगे। और अपने तुम ही हो मित्र, अगर तुमने प्रेम का, करुणा का, तरलता का अभ्यास किया, अगर तुमने बहने का अभ्यास किया।
तुमने कभी सोचा! हर चीज, छोटी-छोटी चीज बहुत विचार और विमर्श करने जैसी है। जब तुम घृणा से भरे होते हो तब तुम्हारे भीतर सब बहाव बंद हो जाता है। और जब मैं कह रहा हूं बहाव बंद हो जाता है, तो मैं शाब्दिक रूप से कह रहा हूँ; ऐसा निश्चित हो जाता है, शब्दशः हो जाता है। यह कोई प्रतीक नहीं है। जब तुम घृणा से भरे होते हो तब तुम बंद हो जाते हो, तुम्हारी जीवन-ऊर्जा बाहर की तरफ बहती नहीं। जब तुम प्रेम और करुणा से भरे होते हो तब? तब तुम्हारी ऊर्जा बहती है, तब तुम्हारे चारों तरफ झरने निकल पड़ते हैं। जब तुम प्रेमपूर्ण होते हो तब तुम अनायास बंटने को आतुर होते हो, बांटना चाहते हो, दूसरे को साझीदार बनाना चाहते हो, सहभागी बनाना चाहते हो। तुम्हारा हाथ फैलता है और दूसरे के हाथ को अपने हाथ में लेना चाहता है। तुम अपने द्वार खोलना चाहते हो। तुम चाहते हो कोई तुम्हारे भीतर अंतरतम में प्रवेश करे और तुम्हारे खजाने में साझी हो जाए। जब तुम घृणा से भरे होते हो, तत्क्षण सब द्वार-दरवाजे बंद हो जाते हैं। तुम अपने भीतर रुक जाते हो, बहाव रुक जाता है।
न केवल इतना, बल्कि घृणा से भरे हुए आदमी के पास जाकर तुम अनुभव करोगे कि जैसे तुम किसी पत्थर के पास से गुजर रहे हो जिसमें कोई संवेदन नहीं है। जहां से कोई रिस्पांस, जहां से कोई प्रत्युत्तर नहीं आता, जहां से कोई प्रतिध्वनि भी नहीं गूंजती। मुर्दा घाटियां भी प्रतिध्वनि से भर जाती हैं, लेकिन घृणा में बंद आदमी, कठोर हुआ आदमी, घाटियों से बदतर हो जाता है। तुम गीत गाओ, उसके भीतर कोई गूंज पैदा नहीं होती। तुम हाथ बढ़ाओ, उसके भीतर से कोई तुम्हारी तरफ नहीं बढ़ता। तुम उसके पास जाओ, वह तुमसे हटता है। चाहे वस्तुतः शरीर से न हटा हो, लेकिन भीतर हटता है।
जब तुम प्रेम से भरे आदमी के पास जाते हो तब तुम पाते हो एक आमंत्रण, एक बुलावा। तुम कभी भी बिना बुलाए मेहमान नहीं हो वहां। प्रेम से भरे आदमी को पाकर तुम अनुभव करोगे जैसे वह तुम्हारी ही जन्मों-जन्मों से प्रतीक्षा कर रहा था, तुम्हारे लिए ही द्वार खोल कर बैठा था, पता नहीं तुम कब आ जाओगे। तुम वहां बिना बुलाए मेहमान नहीं हो। वहां द्वार पर ही स्वागतम लिखा है। तुम पाओगे, वह बांटने को राजी है। जो भी है उसके पास वह तुम्हारे साथ साझीदार हो जाना चाहता है। उसके हाथ बढ़े हैं। वह आलिंगन को तत्पर है।
हेनरी थारो अमरीका में एक बहुत बड़ा विचारक और एक बड़ा साधक हुआ। उसने धीरे-धीरे अनुभव किया...। उसकी जीवन-धारा बड़ी प्रवाहमान थी। उसने अनुभव किया-अमरीका में तो जैसे हाथ मिलाने की विधि है, पद्धति है-तो उसने अनुभव किया कि सभी लोगों से हाथ मिलाते वक्त एक सी प्रतीति नहीं होती। किसी के हाथ में से कुछ बहता हुआ आता है। किसी के हाथ में से कुछ बहता हुआ नहीं आता। किसी का हाथ तो शोषक मालूम पड़ता है कि उसने तुम्हें चूस लिया, लेकिन दिया कुछ भी नहीं। और किसी का हाथ तुम्हें आपूर कर देता है, भर देता है और लेता कुछ भी नहीं, मांगता कुछ भी नहीं।
तुम भी खयाल करना, जब तुम लोगों से हाथ मिलाओ तब खयाल करना, दूसरे हाथ से कोई जीवन-ऊर्जा आती है दौड़ कर तुम्हारे स्वागत को? शरीर तो विद्युत प्रवाह है। वैज्ञानिक कहते हैं, बायो-इनर्जी। दौड़ रही है जीवन-ऊर्जा, एक वर्तुल में दौड़ रही है। तुम्हारे चारों तरफ एक वर्तुल में जीवन-ऊर्जा दौड़ रही है।
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