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________________ बिर्बल के बल राम रही है। उसका तुम्हें पता नहीं है। जब तुम दूसरे के लिए पत्थर जैसे होते हो तब तुम अपने लिए भी पत्थर जैसे हो जाते हो। क्योंकि जो तुम्हारा व्यवहार दूसरे के लिए है वही अंततः तुम्हारा व्यवहार अपने लिए हो जाता है। जो अभ्यास तुम दूसरे के साथ करते हो वही अभ्यास तुम्हारा कारागृह हो जाएगा; उसी अभ्यास में तुम बंद हो जाओगे। अगर तुम दूसरे के लिए पत्थर जैसे होना चाहते हो तो चौबीस घंटे दूसरे मौजूद हैं। घर आओ तो पत्नी है, बेटे .. हैं, बच्चे हैं, नौकर-चाकर हैं। बाहर जाओ तो बाजार है, भीड़ है, सब तरफ दुश्मन हैं। कठोर आदमी के लिए मित्र तो कहीं भी नहीं हैं, प्रतियोगी हैं, प्रतिस्पर्धी हैं। बाहर जाओ तो, घर आओ तो, चौबीस घंटे तुम्हें दूसरे से संघर्ष करना पड़ रहा है। तुम्हारे सपने तक में तुम दूसरों से लड़ते रहते हो। अगर चौबीस घंटे तुमने यह अभ्यास किया कठोरता का, तो तुम सोचते हो तुम अपने प्रति पत्थर होने से बच जाओगे? यह अभ्यास इतना मजबूत हो जाएगा कि तुम अपने प्रति भी पथरीले हो जाओगे। मैं बहुत मुश्किल से ऐसे आदमी के करीब आ पाता हूं कभी। हजारों लोग मेरे करीब आते हैं। इतने करीब आते हैं जितने वे करीब किसी आदमी के न आते होंगे। मेरे सामने अपना हृदय खोल कर रख देते हैं। न भी रखें तो मुझसे बचने का कोई उपाय नहीं है। लेकिन कभी-कभी ऐसा घटता है कि ऐसा आदमी मुझे दिखाई पड़ता है जो अपने को प्रेम करता हो-कभी! जितने लोग आते हैं, उनमें से अधिक लोग खुद को घृणा करते हैं। उन्हें पता भी नहीं है, लेकिन दूसरे को घृणा करते-करते, दूसरे के प्रति पथरीले होते-होते, चलते-चलते अभ्यास के, वे अपने प्रति भी पथरीले हो गए हैं। अब पत्थर होना उनकी सहज आदत हो गई है, वह उनका दूसरा स्वभाव हो गया है। अब वे अकेले में भी बैठे हैं जहां कोई दूसरा नहीं है तो भी पत्थर की तरह बैठे हैं। इस पत्थर होने से छुट्टी लेना आसान नहीं है। यह उनके रग-रेशे में समा गया है। वे खुद को भी निंदा करते हैं, घृणा करते हैं। दूसरे के प्रति तुम्हारा जो व्यवहार है, ध्यान रखना, अंततः वही तुम्हारा अपने प्रति व्यवहार हो जाएगा। जीसस का बहुत प्रसिद्ध वचन है : जो तुम चाहते हो कि तुम्हारे साथ हो, वही तुम दूसरे के साथ करना। और इस वचन का इतना ही अर्थ नहीं है कि जो तुम चाहते हो दूसरे तुम्हारे साथ करें, वही तुम उनके साथ करना; इस वचन का गहरे से गहरा अर्थ यह है कि तुम जो दूसरों के साथ करोगे, अंततः तुम अपने साथ भी करोगे। वह तुम्हारे जीवन की शैली और पद्धति हो जाएगी। . इसलिए भूल कर भी पत्थर जैसे होने की सुविधा मत बनाना। कठिन से कठिन समय भी हो तो भी तुम कठोर मत बनना। तुम तरल रहना। अगर तुम्हें कभी जीवन की गहरी अनुभूतियों में उतरना है तो तुम्हें पिघलना ही होगा। तो दूसरा जब गालियों की वर्षा भी कर रहा हो तब भी तुम भीतर तरल रहना। जीसस के बड़े प्यारे वचन हैं। जीसस और लाओत्से में बड़ा तालमेल है। जीसस का वचन है कि तुम्हारा कोई कोट छीने तो तुम कमीज भी दे देना; और कोई तुम्हें दो मील चलने को कहे बोझ ढोने को तो तुम चार मील चले जाना; और कोई तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो तुम देर मत करना, दूसरा गाल उसके सामने कर देना। इन सारी बातों का क्या अर्थ है? इन सारी बातों का इतना ही अर्थ है कि तुम कठोर मत होना, तुम तरल रहना, तुम पानी की भांति रहना। वह कहे दो मील, तुम कहना हम चार मील तैयार। तुम बहने को तत्पर रहना। तुम साथ जाने को राजी रहना। तुम सहयोग करना दुश्मन के साथ भी। और अगर तुमने दुश्मन के साथ सहयोग किया तो तुम पाओगे कि दुश्मन दुश्मन न रहा; क्योंकि सहयोग करने की कला दुश्मन को रूपांतरित कर देती है। और अगर तुमने दुश्मन के साथ भी सहयोग किया तो मित्रों के साथ तो तुम कितना न कर पाओगे। और मित्रों के साथ जब तुम इतना कर पाओगे तो तुम उसका तो कोई हिसाब ही नहीं लगा सकते कितना तुम अपने साथ न कर पाओगे। 331
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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