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________________ संत संसार भर को देता है, और बेशर्त वे सब, कोई झाड़ के नीचे बैठा प्रार्थना कर रहा है, कोई सड़क के किनारे बैठे घुटने टेक कर हाथ जोड़े है। वह बिलकुल हैरान हुआ। उसने कहा कि हमने तो सोचा था कम से कम स्वर्ग में जाकर तो यह छुटकारा मिलेगा प्रार्थना से। प्रार्थना तो स्वर्ग आने के लिए ही करते थे; अब ये लोग किसलिए प्रार्थना कर रहे हैं? और सारा स्वर्ग प्रार्थना और पूजा से गूंज रहा है। बात तो ठीक हैक्योंकि यह अगर यहां भी जारी है तो छुटकारा फिर कहां होगा? तो उसने पूछा किसी देवदूत को कि यह क्या हो रहा है? यह स्वर्ग है कि नरक? क्योंकि हमने तो सोचा था आदमी जब दुखी होता है तो प्रार्थना करता है, पूजा करता है। यहां तो सुख ही सुख है। तो ये सब लोग पूजा क्यों कर रहे हैं? उस देवदूत ने कहा, संत की प्रार्थना में स्वर्ग है। स्वर्ग यहां है नहीं। इन सब की प्रार्थनाओं के कारण स्वर्ग है; संत के हृदय में स्वर्ग है। उस देवदूत ने कहा कि तुम यह भ्रांति छोड़ दो कि संत स्वर्ग में जाता है; संत जहां जाता है वहां स्वर्ग जाता है। स्वर्ग कोई भौगोलिक स्थिति नहीं है कि उठे और टिकट खरीदी, पहुंच गए। तुम्हारे धर्मगुरुओं ने ऐसी ही हालत बना दी है कि स्वर्ग जैसे कोई भौगोलिक स्थिति है। इधर दो दान, उधर नाम लिख दिया, कि इनका पक्का हो गया, रिजर्वेशन हो गया। अब तुम्हें कोई भी रोकेगा नहीं। कोई दरवाजा थोड़े ही है वहां। न कोई द्वारपाल हैं। सब दरवाजे, सब द्वारपाल कथाएं हैं। स्वर्ग तो भाव-दशा है। प्रार्थना के क्षण में स्वर्ग में तुम होते हो। या ज्यादा अच्छा होगा : स्वर्ग तुम में होता है। संत स्वर्ग से ऊपर है। स्वर्ग तो केवल संतुलन कर पाता है। संतुलन ठीक है, लेकिन काफी नहीं। संतुलन बिलकुल ठीक है। संतुलन ऐसा है, जैसे कोई आदमी जो बीमार नहीं है, बिलकुल ठीक है, स्वस्थ है। अगर डाक्टर के पास ले जाओ तो कोई बीमारी पकड़ में नहीं आती, और डाक्टर कह देता है कि बिलकुल ठीक है। लेकिन तुम्हें पता है कि डाक्टर के बिलकुल ठीक कह देने से काफी नहीं है, पर्याप्त नहीं है। जितना होना चाहिए उतना नहीं है। स्वास्थ्य तो एक अहोभाव है, एक पुलक है। स्वास्थ्य केवल बीमारी का अभाव नहीं है। स्वास्थ्य का अपना एक भाव है, एक अपनी पाजिटिविटी है, अपनी विधायकता है। कभी-कभी तुम पाते हो कि एक वेल-बीइंग, एक प्रसन्नता रोएं-रोएं में भरी है। किसी सुबह, अचानक, अकारण कभी तुम पाते हो, सब पुलकित है, सब आह्लादित है। इस आह्लाद को डाक्टर पकड़ न पाएगा। अगर तुम उसके पास जाओगे कि बताओ मैं आह्लादित क्यों हूं? या कहां कारण है? वह न पकड़ पाएगा। डाक्टर तो केवल बीमारी पकड़ सकता है; ज्यादा से ज्यादा बीमारी का अभाव बता सकता है कि कोई बीमारी नहीं, तुम ठीक हो। मेडिकली फिट का अर्थ नहीं होता कि तुम परम स्वस्थ हो। मेडिकली फिट का इतना ही अर्थ होता है कि कोई बीमारी नहीं है; संतुलित हो। स्वास्थ्य तो एक बाढ़ है, ऐसा पूर कि किनारे तोड़ कर बह जाता है। प्रकृति तो संतुलन से जीती है; संत समाधि से जीता है। इसलिए लाओत्से कहता है कि कौन है जिसके पास पर्याप्त है? इतना पर्याप्त है कि सारे संसार को दे दे? 'केवल ताओ का व्यक्ति।' संत किसी से छीनता नहीं। क्योंकि उसकी संपदा छीनने वाली संपदा नहीं है। उसके पास अपनी संपदा है जो वह देता है। जो भी लेने को राजी हो उसे दे देता है। और उसके पास इतना भरपूर है! एक अलग सूत्र काम करता है संत के लिए। जैसे मनुष्य का सूत्र है : उससे छीन लो जिसके पास नहीं है, उसको दे दो जिसके पास है। स्वर्ग का या प्रकृति का सूत्र है : जिसके पास है उससे ले लो और उसे दे दो जिसके पास नहीं है, ताकि संतुलन हो जाए। संत का तीसरा सूत्र है। उसका सूत्र यह है कि जो भी तुम्हारे पास है तुम बांटते जाओ। जितना तुम बांटते हो उतना वह बढ़ता है। तुम दो। किसी से छीन कर किसी को देना नहीं है। संत के पास खुद है। उसे अपने हृदय को उलीचना है। 317
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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