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________________ संत संसार भर को देता है, और बेशर्त क्योंकि अंतिम है। अब गीत गा सकता है, क्योंकि अंतिम है, अब कोई प्रथम होने की दौड़ न रही। अब नाच सकता है, क्योंकि अब अंतिम है। अब धन्यवाद दे सकता है, अब प्रार्थना कर सकता है। अब घुटने टेक कर आकाश के सामने झुक सकता है। अब पैरों के लिए और कोई काम न रहा, अब पैर प्रार्थना में झुक सकते हैं। अब हृदय के लिए और कोई उलझन न रही; अब हृदय रस-विभोर हो सकता है। जो रस-विभोर होकर अंतिम है वही जीसस के अर्थों में पहुंच सकेगा। इसलिए सभी अंतिम न पहुंच जाएंगे, क्योंकि सभी अंतिम ही नहीं हैं। अंतिम तो वही है जो प्रसन्नता से अंतिम है, जो हार्दिकता से अंतिम है, जो संपूर्णता से अंतिम है। इसी को मैं संन्यासी कहता हूं। संन्यास का अर्थ है: अहोभावपूर्वक अंतिम खड़े हो जाने की दशा; जिसने सब प्रतिस्पर्धा छोड़ दी। प्रतिस्पर्धा यानी राजनीति। प्रतिस्पर्धा यानी दूसरे के गले काटने की चेष्टा। प्रतिस्पर्धा अहंकार की दौड़ है। जो अंतिम है वह विनम्र हो जाता है, अहंकार की दौड़ समाप्त हो गई। यह जो अंतिम खड़ा आदमी है, इसने दूसरे की तरफ देखना ही बंद कर दिया; जैसे दूसरा है ही नहीं। यह अकेला ही है। यह सारा विराट आकाश, ये अनंत-अनंत चांद-तारे इस अकेले के लिए हैं। दूसरा खो गया; क्योंकि दूसरा तभी तक है जब तक तुम उसके लिए सोच रहे हो। इसे तुम समझ लेना। दूसरा तभी तक है जब तक तुम उसके विचार में पड़े हो। जब विचार ही न दूसरे का रहा तो दूसरा खो गया। होगा न होगा, कोई अर्थ न रहा। तुम्हारे लिए आकाश अकेले का हो गया; तुम परम स्वतंत्र हो उड़ने को अब। अब तुम्हारे पंख बंधे नहीं हैं। संसार में जिसने दौड़ छोड़ दी उसके पास सारी ऊर्जा बच जाती है। वही ऊर्जा तो पंख बनती है परमात्मा की तरफ जाने का। अब तुम्हारी उड़ान मुक्त है। और ध्यान रखना, परमात्मा की तरफ यात्रा में कोई स्पर्धा नहीं है कोई स्पर्धा कर भी नहीं रहा है। मैंने सुना है, एक नया दुकानदार मुल्ला नसरुद्दीन के गांव में आया। वह वहां दुकान खोलना चाहता था। नसरुद्दीन पुराना दुकानदार है तो उसने सलाह ली, गांव-बाजार के संबंध में जानकारी ली। और बातचीत में उसने कहा कि मैं एक ईमानदार आदमी हूं; और ईमान से ही काम करना चाहता हूं। ईमानदारी ही मेरी दुकानदारी है। नसरुद्दीन ने कहा, तुम बेफिक्र रहो; तब तो तुम बिलकुल निश्चित, आ सकते हो। क्योंकि तुम्हारा कोई प्रतिस्पर्धी इस गांव में नहीं है। ईमानदारी में कौन प्रतिस्पर्धा कर रहा है? अगर बेईमान होते तो मुश्किल में पड़ते। ईमानदारी? मजे से आओ। अकेले ही हो। और किसी को कोई झगड़ा नहीं है, तुम मजे से अपनी ईमानदारी करो। ___ ईमानदारी में कौन स्पर्धा कर रहा है? और धर्म तो वहां कोई तुम्हारे साथ दौड़ ही नहीं रहा। तुम अकेले ही दौड़ रहे हो। जहां भी खड़े हो जाओ वहीं प्रथम हो। न दौड़ो तो भी प्रथम, दौड़ो तो भी प्रथम। वहां कोई तुम्हारे साथ दौड़ ही नहीं रहा। और बात कुछ ऐसी है कि धर्म के जगत में प्रतिस्पर्धी हो ही नहीं सकता। क्योंकि धर्म के जगत में प्रवेश ही तब होता है जब प्रतिस्पर्धा गिर जाती है। नहीं तो कोई धर्म के जगत में प्रवेश नहीं करता। अगर तुम मुझसे परिभाषा पूछो तो यह परिभाषा हुई : संसार का अर्थ है प्रतिस्पर्धा का जगत, और परमात्मा का अर्थ है गैर-प्रतिस्पर्धा का जगत। वहां तुम नितांत अकेले हो। महावीर ने तो उस स्थिति को कैवल्य कहा है; बिलकुल अकेले, इतने अकेले कि केवल तुम हो, और कोई भी नहीं बचता। कहीं कोई दीवार नहीं। कहीं कोई रोकने वाला नहीं। कहीं कोई जंजीर नहीं। स्वभावतः, तुम प्रथम हो जाओगे। जहां तुम अकेले हो वहां तुम्हारे द्वितीय होने का उपाय भी कहां? कौन तुम्हें द्वितीय करेगा? तुम चाहो तो क्यू में खड़े हो जाओ, तो भी तुम प्रथम ही रहोगे। जार्ज माइक्स ने इंग्लैंड के संबंध में एक किताब लिखी है। और उसने लिखा है कि इंग्लैंड अकेला मुल्क है जहां एक आदमी भी बस-स्टैंड पर हो तो क्यू में खड़ा होता है। सारी दुनिया में अकेला ही मुल्क है। एक आदमी भी, जहां कोई है ही नहीं, वह भी क्यू में ही खड़ा रहता है। 309
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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