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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ जीवन बड़ा जटिल है। और बड़ी से बड़ी जटिलता यह है कि तुम जो पाने निकले हो, अगर वह तुम्हें मिला ही हुआ था तो तुम्हारे पाने की हर कोशिश उसके मिलने में बाधा होगी। कैसे तुम उसे पा सकोगे जो मिला ही हुआ है? उसे पाने का तो एक ही उपाय है कि तुम पाने की सब दौड़ छोड़ कर थोड़ी देर शांत होकर बैठ कर अपने को पहचान लो तुम कौन हो। उसी पहचान से तुम्हारा पद तुम्हें मिल जाएगा। तुम सिंहासन पर विराजमान ही हो। अब तुम किस और सिंहासन की खोज कर रहे हो? इसलिए जीसस कहते हैं कि जो अंतिम है वह मेरे प्रभु के राज्य में प्रथम है। है ही। कोई ऐसा नहीं कि परमात्मा अंतिम को बड़ा प्रेम करता है, इसलिए उठा कर उसको सिंहासन पर रख देता है। परमात्मा हो या न हो, अंतिम सिंहासन पर पहुंच ही जाएगा। अंतिम सिंहासन पर है ही। अंतिम होने में ही मिल जाता है सिंहासन। क्योंकि जब तुम सबके पीछे खड़े हो जाते हो, कतार में बिलकुल आखिरी, तुम्हें कोई धक्का-मुक्का नहीं देता। क्यू में खड़े होकर देख लो। अगर तुम बिलकुल आखिर में हो, तुम्हें बिलकुल धक्के-मुक्के न लगेंगे। अगर तुम बीच में हो, धक्के-मुक्के खाओगे। अगर प्रथम हो तो पिटाई भी हो सकती है। अगर तुम आखिर में खड़े हो तो तुम्हारा कोई भी दुश्मन नहीं है; सभी तुम्हारे मित्र हैं। तुम सभी की मैत्री पाओगे। अगर तुम प्रथम खड़े हो तो सभी तुम्हारे दुश्मन हैं। जो मित्र की तरह दिखाई पड़ते हैं वे भी दुश्मन हैं। क्योंकि भीतर तो उनके भी वही आकांक्षा लगी है कि कब तुम हटो, कब तुम विदा हो जाओ, ताकि वे तुम्हारी जगह पर आरूढ़ हो जाएं। अंतिम खड़ा होना दो तरह से हो सकता है। एक तो कि तुमने कोशिश तो की थी प्रथम खड़े होने की, लेकिन तुम्हारे पैर न टिक पाए, धक्का-मुक्की भारी थी, तुम कमजोर सिद्ध हुए; लोग ज्यादा मजबूत थे, और उन्होंने तुम्हें पीछे कर दिया। यह अंतिम होने से तुम यह मत सोचना कि परमात्मा के राज्य में तुम प्रथम हो जाओगे। क्योंकि भला तुम पीछे खड़े हो, लेकिन आकांक्षा तो तुम्हारी पहले ही खड़े होने की है। भला तुम कमजोर हो इसलिए असहाय हो। इस असहाय अवस्था में तुम्हें स्वभाव का पता न चलेगा। इसलिए एक बात जो जीसस ने नहीं कही है, मैं उसमें जोड़ देता हूं कि जो सभी अंतिम खड़े हैं वे सभी परमात्मा के राज्य में प्रथम न हो जाएंगे। क्योंकि हजार अंतिम खड़े लोगों में नौ सौ निन्यानबे तो मजबूरी में खड़े हैं। मजबूरी कोई मुक्ति नहीं है। वे वहां खड़े इसलिए हैं कि लोगों ने जबरदस्ती वहां उन्हें खड़ा कर दिया है, मजबूर कर दिया है। मगर उनके प्राण तड़प रहे हैं। सपना तो वे प्रथम खड़े होने का ही देख रहे हैं। नहीं, ये लोग प्रथम न हो पाएंगे। असलियत में प्रथम पहुंचो, असलियत में प्रथम पहुंचने की कोशिश करो, या तुम्हारे सपनों में तुम प्रथम होने की कोशिश करो; कोई भेद नहीं है। कभी खाली कुर्सी पर बैठे-बैठे खयाल आ जाता है कि प्रधानमंत्री हो गए। तब तुम थोड़ी देर को रसलीन हो जाते हो। तब तुम योजनाएं भी बनाने लगते हो कि क्या करोगे, क्या करवा दोगे दुनिया में। कोई भेद नहीं है, सपना देखो या सच्चाई में पहुंच जाओ; लेकिन तुम्हारी भीतर की आकांक्षा प्रथम होने के लिए दौड़ कर रही है। अंतिम तो वही है जो स्वेच्छा से अंतिम है; जिसे किसी ने पीछे नहीं कर दिया है; जो खुद पीछे हो गया। किसी कमजोरी के कारण नहीं, किसी गहरी समझ के कारण; किसी असहाय अवस्था के कारण नहीं, बोधपूर्वक। और स्वेच्छा शब्द भी ठीक नहीं है। क्योंकि उसमें भी लगता है कि जैसे थोड़ी सी तकलीफ रही, समझा लिया, सांत्वना कर ली और हट गए। नहीं, स्वेच्छा शब्द भी कमजोर है। अगर ठीक ही कहना हो, तो जो उत्सवपूर्वक अंतिम खड़ा है, अहोभाव से, आनंद से अंतिम खड़ा है, अंतिम होने में जिसने जीवन की कृतार्थता जानी है, जो अंतिम होकर परमात्मा को धन्यवाद दे रहा है, जो अंतिम होकर यह कह रहा है, पा लिया! यही तो पाना था। सांत्वना नहीं है, बड़ा परितोष है, बड़ी गहन तृप्ति है। आनंद से नाच रहा है, क्योंकि अंतिम है। गीत गा रहा है, 308
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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