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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ व्यवहार करने लगता है। तो उसका बायां हाथ किसी चीज को उठाता है, लेकिन दाएं हाथ को पता नहीं चलता। दायां उसको फिर उठा कर वहीं के वहीं रख देता है। जैसे दो आदमी। और बड़ी बेबूझ स्थिति पैदा हो जाती है। वह एक हाथ से खाना खाता है, क्योंकि एक मस्तिष्क अनुभव कर रहा है भूख का; और दूसरे हाथ से वह हाथ धो रहा है और भोजन से उठ रहा है, और एक हाथ अभी भोजन जारी रखे है। करीब-करीब जीवन की अवस्था में तुम्हारी स्थिति ऐसी ही है। तुम एक हाथ से बनाते हो, दूसरे से मिटाते हो; एक हाथ से मांगते हो, दूसरे से इनकार करते हो; एक हाथ से द्वार खोलते हो, दूसरे से बंद करते हो।। इसी से तो इतनी चिंता तुम्हारे जीवन में पैदा हो गई है। चिंता का अर्थ है, तुम कुछ ऐसा कर रहे हो जो स्व-विरोधी है। एंग्जायटी का इतना ही अर्थ होता है, चिंता का, कि तुम अपने ही विपरीत कुछ करने में लगे हो। तुम्हें पता न होगा। और सबसे बड़ी विपरीतता यह-कौन आदमी है जो मरना चाहता! कोई नहीं मरना चाहता है; लेकिन हर आदमी सख्त हो जाता है, अनम्य हो जाता है, अकड़ जाता है, और अभ्यास करता है जीवन भर अनम्य होने का। फिर मौत तो स्वाभाविक है। अगर नहीं मरना है और अमृत को जानना है, तो नम्यता को मत खोना। साक्रेटीज मर रहा था। जब वह मर रहा है तब भी उसकी नम्यता कायम है। ठीक मरते वक्त सब साथी, मित्र, . शिष्य रो रहे हैं। साक्रेटीज ने कहा, चुप रहो। अभी रोने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि अभी तो मैं जिंदा हूं। और दूसरी बात, अभी पक्का कहां है कि मैं मर ही जाऊंगा! एक शिष्य ने कहा कि कितनी देर लगेगी, सूरज ढलने के करीब आ गया है। सूरज ढलते वक्त ही आपको जहर दिया जाना है। जहर बाहर पीसा जा रहा है। उसकी आवाज सुनाई पड़ रही है। आपको घबराहट नहीं लग रही है? एक शिष्य ने पूछा। सुकरात ने कहा कि दो ही संभावनाएं हैं। एक तो कि मैं मर ही जाऊंगा। अगर मर ही गए तो डरने का क्या कारण? जब बचे ही नहीं, तो डरे भी कौन? अगर मर ही गए बिलकुल, जैसा कि नास्तिक कहते हैं, तो भय किस बात का है ? जन्म के पहले नहीं थे, उससे कोई चिंता पैदा होती है? मृत्यु के बाद फिर वैसे ही हो जाएंगे जैसे जन्म के पहले नहीं थे। चिंता का क्या कारण है? तुमने कभी चिंता की कि जन्म के पहले नहीं थे, तो बैठे हैं चिंता में कि कितना दुख पाया, जन्म के पहले नहीं थे। नहीं होने से कोई दुख होता है? जब थे ही नहीं तो दुख किसको होगा? सुकरात ने कहा कि हो सकता है नास्तिक सही हों और मैं बिलकुल ही मर जाऊं, तो भय किस बात का? जितनी देर जीया, ठीक। फिर मर गए, बात खतम हो गई। रहे ही न, तो अब बात कौन चलाए? और हो सकता है आस्तिक सही हों कि मैं मरने के बाद बच जाऊं। और अगर बच ही गए तो मरना हुआ ही नहीं; चिंता क्यों करना? यह खुले हुए आदमी का लक्षण है; इतना नम्य कि मरते क्षण में भी! भय के कारण भी आदमी मरते वक्त आस्तिक हो जाता है; सोचने लगता है कि शायद परमात्मा हो ही; प्रार्थना कर लो। मरते-मरते अधिक नास्तिक आस्तिक हो जाते हैं। मरने के पहले ही, जवान आदमी अधिक नास्तिक होते हैं, जैसे-जैसे बुढ़ापा आता है आस्तिक होने लगते हैं। इसलिए मंदिरों-मस्जिदों में, गिरजाघरों में तुम बूढ़ों को बैठे पाओगे। जवान आदमी मधुशाला में मिलेंगे, क्लबघर में मिलेंगे, वेश्यागृह में मिलेंगे बूढ़े मंदिर में मिलेंगे। अभी जवान को फिक्र नहीं है, अभी पक्का भरोसा है। जैसे पैर डगमगाएंगे, भरोसा कम होगा। जैसे ही भरोसा कम होगा, घबराहट पकड़ेगी, मंदिर की तरफ चलने लगेगा, भगवान का सहारा लेगा। साक्रेटीज न तो भयभीत है, न कोई सहारा ले रहा है। वह कहता है, मुझे पता ही नहीं है कि बचूंगा या नहीं बचूंगा, तो पता तो चल जाने दो। तभी कुछ निर्णय किया जा सकता है। यह लोचपूर्णता है। तुम्हें कुछ भी पता नहीं है, और तुमने कितने निर्णय कर लिए हैं! तुम्हें कुछ भी पता नहीं है, और तुमने कितने सिद्धांत मान लिए हैं! तुम्हें कुछ भी पता नहीं है, और तुम कितने ज्ञानी होकर बैठे हो। गहन अज्ञान पर पांडित्य को 296
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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