SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवन कोमल हैं और मृत्यु कठोर __इस दुनिया में तुम चट्टानों को ताकतवर पाओगे, फूलों को कमजोर। इससे एक बड़ी भयंकर स्थिति पैदा होती है। वह स्थिति यह है कि कहीं तुम चट्टान न होने की आकांक्षा कर लो। माना कि चट्टान मजबूत है, लेकिन मुर्दा है। उसकी मजबूती को क्या करोगे? उसका मुर्दापन तुम्हें भी मार डालेगा। उस चट्टान को तोड़ने न तो शैतान बच्चे आएंगे, उस चट्टान को मिटाने न तो पशु-पक्षी आएंगे, उस चट्टान को न तो तोड़ने माली आएगा, उस चट्टान को तोड़ने कोई भी नहीं आएगा। बड़ी सुरक्षित है चट्टान। लेकिन उस सुरक्षा का तुम करोगे क्या? वह कब्र की सुरक्षा है। जीवन तो कोमल है, और जीवन कमजोर है। और जब तक तुम कोमल और कमजोर होने को राजी हो तभी तक तुम जीवन के धनी रहोगे। जिस दिन तुम सख्त और ताकतवर हुए उसी दिन तुम्हारे हाथ से जीवन की धारा सूखनी शुरू हो गई। क्योंकि केवल मृत्यु ही सख्त और शक्तिशाली हो सकती है। और तुम सब शक्तिशाली होना चाहते हो। इसलिए तुम कब्र बन गए हो। धार्मिक व्यक्ति कमजोर होना चाहता है। यह कमजोर शब्द तुम्हारे मन में तो बड़ी निंदा से भरा है। लेकिन धार्मिक व्यक्ति के लिए यही जीवन की सबसे बड़ी गहरी संपदा है कि वह कमजोर होना चाहता है। जब वह घुटने टेकता है और प्रार्थना के लिए आकाश की तरफ सिर उठाता है तब वह एक छोटे बच्चे से भी ज्यादा कमजोर है। वह कंपता है। उसके शब्द तुतला कर निकलते हैं। परमात्मा से क्या बोले? रोता है। घुटने टेक कर झुका हुआ बैठा व्यक्ति जो प्रार्थना में लीन है वह फिर से छोटा बच्चा हो गया है। उसके भीतर एक नये बच्चे का जन्म हो रहा है। उसको ही हम द्विज कहते हैं; जब तुम्हारे भीतर ऐसे कमजोर नये कोमल बच्चे का जन्म फिर से हो जाए तो तुम्हारा दूसरा जन्म हुआ। तब तक तुम मरुस्थल थे, अब तुम अपने को ही जन्म देने की संभावना से भरे। अब तुम्हारे भीतर एक गर्भ का सूत्रपात हुआ जिससे तुम्हारा शाश्वत रूप, सनातन रूप प्रकट होगा। लाओत्से ने बात पकड़ ली है। कोमलता तो तुम भी चाहोगे, लेकिन कमजोरी नहीं चाहते। इसी से उपद्रव है। और कोमलता हमेशा कमजोर होगी। कोमलता कहीं सख्त हो सकती है? तो तुम हर हालत में जब भी शक्ति चाहते हो और तुम शक्ति चाहते हो। नीत्शे कहता है कि आदमी के भीतर एक ही आकांक्षा, दि विल टु पावर, शक्ति की आकांक्षा है। नीत्शे और लाओत्से दो विरोधी छोर हैं। दोनों को साथ-साथ पढ़ना बड़ा उपयोगी है। क्योंकि तब तुम चीजों को ठीक उनकी अति में पाओगे। नीत्शे कहता है, शक्ति की आकांक्षा एकमात्र आत्मा है। और नीत्शे कहता है, मैंने फूल देखे, चांद-तारे देखे, झरने देखे, जल-प्रपात देखे, लेकिन मुझे सौंदर्य न मिला। सौंदर्य तो मुझे तब दिखाई पड़ा जब मैंने सैनिकों की एक टुकड़ी को कवायद करते देखा, और उनकी संगीनों पर चमकता हुआ सूरज देखा, और उनके पैरों की ताकत देखी, और जो छंद पैदा हो रहा था उनके चलने से, और उनकी संगीनों पर आई हुई सूरज की किरणों की चमक से जो रूप पैदा हो रहा था, उस क्षण मैंने सौंदर्य जाना। यह सौंदर्य बड़ा सख्त सौंदर्य है। असल में, इसको जानने के लिए बड़ा पथरीला हृदय चाहिए। कोई आश्चर्य नहीं कि नीत्शे पागल होकर मरा। और कोई आश्चर्य नहीं है कि लाओत्से परम ज्ञानी होकर मरा। शक्ति की आकांक्षा विक्षिप्तता में ले जाएगी। और तुम सब तरफ से शक्ति चाहते हो। धन इकट्ठा करते हो तो इसीलिए क्योंकि धन शक्ति का माध्यम है। जितना ज्यादा धन होगा उतनी शक्ति होगी। अगर तुम्हारी जेब में लाखों रुपये हैं तो इन लाखों रुपयों के कारण तुम बड़े शक्तिशाली हो। तुम जो चाहो करो। स्त्रियों को खरीदना हो खरीदो। नौकरों को खरीदना हो खरीदो। धन ने बड़ी सुविधा बना दी है। बिना धन के आदमी बहुत शक्तिशाली नहीं हो सकता। जब दुनिया में धन नहीं था और विनिमय की मुद्रा नहीं थी, तो लोग इतने शक्तिशाली नहीं हो सकते थे जितने धन के द्वारा हो गए। इसीलिए तो धन का इतना मूल्य हो गया लोगों के मन में। सब कुछ धन मालूम होता है। 289|
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy