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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ सिर्फ समय की बात है: सबह उगा है, सांझ अपने से ही गिर जाएगा। लेकिन फूल के पास जीवन है। और फूल के पास एक सौंदर्य है। माना घड़ी भर को है, लेकिन है। और इसीलिए फूल कमजोर है, क्योंकि उसके पास कुछ है जो खो सकता है। चट्टान के पास कुछ भी नहीं है जो खो सके। ध्यान रखना, जिसके पास कुछ है वह कमजोर होगा, और जिसके पास कुछ भी नहीं है वह मजबूत होगा। और जितनी तुम्हारी भीतर की संपदा बढ़ती जाएगी, तुम उतने कमजोर होते जाओगे। क्योंकि उस संपदा के खोने की उतनी ही संभावना बढ़ती जाएगी। बुद्ध से ज्यादा कमजोर आदमी तुम न पा सकोगे। लाओत्से से कमजोर आदमी तुम न पा सकोगे। क्योंकि वे कोमल हैं, और जीवन की महा संपदा के मालिक हैं। एक फूल नहीं खिला है बुद्ध और लाओत्से में, हजारों फूल खिले हैं। जिसके पास है, उसके पास ही तो खोने की संभावना होती है। जिसके पास है ही नहीं, वह खोएगा क्या? मैंने सुना है। जापान में एक फकीर हुआ। पुरानी कहानी है कि सम्राट जब गांव के चक्कर लगाते थे रात में। सम्राट चक्कर लगा रहा था राजधानी का, कई बार उसने देखा कि वह फकीर हमेशा उसे जागा मिला। वह एक वृक्ष के नीचे या तो बैठा रहता, या खड़ा रहता, या चलता रहता। लेकिन जागा मिला। कभी गया-आधी रात गया, सुबह गया, सांझ गया-जब भी जाकर देखा, सारी बस्ती भला सो गई हो, वह फकीर जागा हुआ था। सम्राट बड़ा हैरान हुआ। उसने एक दिन, उसकी उत्सुकता न रुक सकी तो उसने पूछा कि मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं। बहुत बार यहां से निकलता हूं, तुम पहरा किस चीज का दे रहे हो? क्योंकि सूखे रोटियों के टुकड़े पड़े देखे मैंने। टूटा-फूटा बरतन है। कोई चुरा कर ले जाने की भी चेष्टा न करेगा। फटी गुदड़ी है। जराजीर्ण वस्त्र हैं। तुम्हारे पास कुछ दिखाई नहीं पड़ता, जिस पर तुम पहरा दे रहे हो। तुम पहरा किस चीज का दे रहे हो? वह फकीर हंसने लगा। उसने कहा, कुछ है जो भीतर है। और जब से वह पैदा हुआ है तब से खोने का डर भी पैदा हो गया। मैं बड़ा कमजोर और कोमल हूं। भीतर कोई चीज खिल रही है, जैसे एक कली खिल रही हो। अब तक तो बंजर था तुम्हारे जैसा ही; मजे से सोता था। कुछ था ही नहीं; खोने को कोई डर ही न था; एक रेगिस्तान था। अब एक छोटा सा मरूद्यान पैदा हो रहा है। अब भय लगता है। अब हाथ-पैर कंपते हैं। अब डर लगता है कि जो हुआ है कहीं वह न न हो जाए। और घटना इतनी कोमल है और इतनी सूक्ष्म है कि जरा भी चूक गया तो खो जाएगी, यह पक्का है। फूल अभी पक्का हाथ में आया भी नहीं है, सिर्फ आभास मिलने शुरू हुए हैं। जब तुम ध्यान करने उतरोगे तब तुम्हें पता लगेगा कि भीतर एक फूल खिलना शुरू होता है। तब तुम्हारा एक-एक कदम सम्हल कर पड़ने लगेगा। तब तुम एक-एक शब्द होश से बोलोगे; क्योंकि तुम डरोगे, तुम्हारा ही कोई शब्द तुम्हारे ही प्राणों में उठती हुई नयी संभावना को नष्ट न कर दे। तब तुम क्रोध न कर सकोगे; इसलिए नहीं कि तुम दूसरों पर करुणावान हो गए हो, बल्कि अब तुम्हारे पास एक संपत्ति है जो क्रोध की आग में जल सकती है, झुलस सकती है। तुम झगड़ा न करोगे। तुम विवाद में न पड़ोगे। क्योंकि तुम जानते हो, तुम्हारे पास कुछ बचाने योग्य है जो विवाद में चूक सकता है, नष्ट हो सकता है। कुछ बहुमूल्य जब पैदा होता है तो तुम कमजोर हो जाते हो, इसको ध्यान में रखना। जैसे कि स्त्री जब गर्भवती होती है और एक नया जीवन उसके गर्भ में होता है तब कमजोर हो जाती है। लेकिन गर्भवती स्त्री से ज्यादा सुंदर स्त्री कहीं होती ही नहीं। और गर्भवती स्त्री के चेहरे पर जैसे सौंदर्य की आभा प्रकट होती है वैसी आभा इस स्त्री के चेहरे पर भी पहले न थी। क्योंकि गर्भवती स्त्री मरूद्यान हो रही है। पहले मरुस्थल थी। अब जीवन का उसमें फूल लग रहा है। लेकिन तब वह कोमल हो जाती है। तब वह पैर भी सम्हाल कर चलती है; उठती है तो सम्हाल कर उठती है। कुछ है जो बचाने योग्य है। उससे भी ज्यादा मूल्यवान उसमें कुछ है। अपने जीवन को खोकर भी, एक नये जीवन का सूत्रपात हो रहा है, उसे बचाना है। एक फूल खिल रहा है जो किसी भी क्षण मुा सकता है। 288
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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