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________________ राजनीति को उतारो सिंहासन से तो लाओत्से कहता है, 'लोग मृत्यु से भयभीत नहीं हैं, क्योंकि वे जीविका कमाने के लिए चिंतित हैं।' उनका पेट भूखा है; भजन वे नहीं कर सकते। अभी मौत का बोध भी नहीं उठता उन्हें। बुद्ध को उठा मौत का बोध, क्योंकि शरीर की जरूरतें पूरी थीं, मन की जरूरतें पूरी थीं, अब जीवन में ऐसा कुछ भी न था जो जानने को बचा हो। जब जीवन में जानने को कुछ भी नहीं बचता, तभी तो आंख ऊपर उठती है; तभी तो याद आती है कि यह जीवन तो समाप्त हो जाएगा; क्या इसके पार भी कुछ है? क्या मृत्यु के पार भी कोई जीवन है? बुद्ध के समय में भारत में बड़ी धार्मिक घटना घटी। क्योंकि देश बड़ा संपन्न था; देश बड़ा सुखी था। लोगों के पेट भरे थे। उनके खलिहान खाली न थे। लोग प्रसन्न थे। बुद्ध के पीछे हजारों-लाखों लोग चल पड़े। महावीर के पीछे हजारों-लाखों लोग चल पड़े। देश निश्चित ही बड़ी अदभुत शांति की अवस्था में रहा होगा। भूख नहीं थी; भजन हो सका। तो बुद्ध के समय में भारत ने शिखर देखा अपनी संपन्नता का। लाओत्से कहता है, लोग मृत्यु से भयभीत नहीं, क्योंकि जीवन ही उनके पास नहीं। खोने को कुछ पास नहीं, मृत्यु छीनेगी क्या उनसे? वे आजीविका जुटाने में लगे हैं, किसी तरह रोटी-रोजी पूरी हो जाए। गरीब आदमी धार्मिक नहीं हो सकता। व्यक्तिगत अपवाद मिल जाएं, वह बात और। लेकिन नियम यही है कि धार्मिक आदमी होने के लिए शरीर की जरूरतें पूरी हो जानी कम से कम जरूरी हैं, अन्यथा आदमी वहीं उलझा रहेगा। मैं देखता हूं कि अगर मेरे पास धनी व्यक्ति आता है तो उसके सवाल कभी-कभी धार्मिक होते हैं; गरीब आदमी आता है, उसका सवाल धार्मिक होता ही नहीं। मुझसे लोग कहते हैं कि आप गरीबों के लिए क्यों नहीं कुछ करते? यहां आपके आश्रम में गरीब के लिए प्रवेश नहीं मिल पाता। - उसके पीछे कारण हैं। गरीब जब भी मेरे पास पहुंच जाता है तभी मैं अपने को असहाय पाता हूं; क्योंकि मैं जो कर सकता हूं, वह उसकी मांग नहीं है। जो वह चाहता है, उससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है। हमारे बीच सेत् निर्मित नहीं हो पाता। एक गरीब आदमी आता है। वह कहता है कि मुझे नौकरी नहीं है। वह ध्यान की बात ही नहीं पूछता। उसको प्रार्थना से कुछ लेना-देना नहीं है। वह मेरा आशीर्वाद चाहता है कि नौकरी मिल जाए। अब मेरे आशीर्वाद से अगर नौकरी मिलती होती तो मैं एक दफा सभी को आशीर्वाद दे देता। इसको बार-बार करने की क्या जरूरत थी? मेरे आशीर्वाद से कुछ मिल सकता है, लेकिन वह नौकरी नहीं है। वह तुम्हारी मांग नहीं है। तब मैं बड़े पेशोपस में पड़ जाता हूं। ___ कोई आ जाता है कि बीमार है, आशीर्वाद दे दें! - बीमार को अस्पताल जाना चाहिए। उसको मेरे पास आने का कोई कारण नहीं है; उसको इलाज की जरूरत है। जब भी गरीब आदमी आता है तो मैं पाता हूं कि उसकी कोई चिंतना धार्मिक है ही नहीं। वह मेरे पास आना भी चाहता है तो इसलिए आना चाहता है। कभी-कभी कोई धनी आदमी आता है तो उसकी चिंतना धार्मिक होती है। वह भी कभी-कभी। तब वह कभी पूछता है कि मन अशांत है, क्या करूं? गरीब आदमी पूछता ही नहीं कि मन अशांत है। मन का अशांत होना एक खास विकास के बाद होता है। अभी पेट अशांत है; अभी मन को अशांत होने का उपाय भी नहीं है। पेट भर जाए तो मन अशांत होगा। मन भर जाए तो आत्मा बेचैन होगी। असल में, जब आत्मा बेचैन हो तभी मेरे पास आने का कोई अर्थ है। आत्मा बेचैन हो तो मेरे आशीर्वाद से कुछ हो सकता है, मेरे निकट होने से कुछ हो सकता है। जो मैं तुम्हें दे सकता हूं, वह धन और है। जो धन तुम मांगते हो, वह मेरे पास नहीं। तो गरीब आदमी जैसे ही पास आता है, मुझे बड़े पेशोपस में डाल देता है कि करो क्या? उसकी पीड़ा मैं समझता हूं। उसकी कठिनाई मुझे साफ है; उससे भी ज्यादा साफ है जितनी उसे साफ है। क्योंकि मैं जानता हूं कि 253
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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