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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ इस बात की बहुत संभावना है कि ऐसा वक्त आ जाएगा पचास साल के भीतर, जब केवल शासक ही खुले आकाश में हवा ले सकेंगे, क्योंकि उनके पास ही सुविधा होगी। बाकी लोग तो अपनी-अपनी थैली लटका कर, जैसे अभी टिफिन लटका कर दफ्तर जाते हैं, ऐसे ही अपनी-अपनी आक्सीजन की थैली लटका कर दफ्तर जाने लगेंगे। हवा भी कम पड़ जाएगी, ऐसा मालूम पड़ता है। भोजन कम पड़ गया है, पानी कम पड़ गया है, हवा भी कम पड़ जाएगी। ऐसा लगता है कि जीवन कम पड़ता जाता है। कौन इस जीवन को चूस लिए जा रहा है? यह कहां जीवन की इतनी ऊर्जा विलीन हो जाती है? कौन इसे हड़प जाता है? कहीं भी तुम जी रहे हो, राज्य का हाथ तुम्हारे खीसे में है। तुम कुछ भी करो, तुम कुछ भी बनाओ, तुम कुछ भी कमाओ, अधिक हिस्सा राज्य के पास चला जाता है। तुम्हें तो उतना ही छोड़ा जाता है जितने में तुम जिंदा रहो और काम करते रहो, मर न जाओ। मुल्ला नसरुद्दीन ने एक गधा खरीदा था। जिससे खरीदा था, उसने कहा कि इस गधे से मेरा बड़ा लगाव है; मजबूरी में बेच रहा हूं। बड़ा प्यारा जानवर है। इसको इतना भोजन नियम से देना, इतना पानी, इतनी व्यवस्था, तो सदा तुम्हारी सेवा करेगा। बेचने वाला बड़ा दुख में था, गधे से बिछुड़ रहा था। नसरुद्दीन ने कहा, तू फिक्र मत कर। घर आकर लेकिन उसने हिसाब लगाया कि जितना खाने का उसने बताया है, यह तो बहुत ज्यादा है। पहले मैं कोशिश करूं कि इससे आधे में काम चल जाएगा कि नहीं। तो उसने गधे को आधा भोजन देना शुरू किया। काम चल गया; गधा यद्यपि थोड़ा दुबला हो गया। पर नसरुद्दीन ने कहा कि अब जरा ठीक ही लगते हो, थोड़े सुडौल हो गए। फिर उसने कहा जब आधे से चल जाता है तो और आधे से क्यों न चल जाएगा! तो और आधा कर दिया। उतने में भी काम चल गया, लेकिन गधा थोड़ा दुबला होता गया। लेकिन दुबलापन तो धीरे-धीरे आया, नसरुद्दीन को दिखाई भी न पड़ा। जब, उसने कहा, इतने से ही काम चलने लगा तो बिलकुल बिना भोजन के भी चल सकता है; थोड़ा दुबला ही होगा, और क्या होगा! उसने भोजन ही बंद कर दिया। जिस दिन उसने भोजन बंद किया, उसके दूसरे दिन ही गधा मर गया। तो नसरुद्दीन ने कहा, अगर थोड़े दिन और जी जाता तो बिना ही भोजन का अभ्यासी हो जाता। वक्त के पहले मर गया। वक्त के पहले मर गया! भोजन न देने से मर गया, ऐसा नहीं। इसकी मौत आ गई बेचारे की। थोड़े दिन की बात थी कि अभ्यास पक्का हो जाता, बिना ही भोजन के जी जाता! जनता मरती चली जाती है। राज्य बहाने खोजता चला जाता है। क्यों ऐसा हो रहा है? कभी कहता है, जनसंख्या बढ़ गई, इसलिए ऐसा हो रहा है। कभी कहता है, युद्ध हो गया, उसमें ज्यादा खर्च हो गया, इसलिए ऐसा हो रहा है। कभी प्रकृति पर थोपता है कि बादल न बरसे; कभी धूप ज्यादा आ गई; कभी बाढ़ आ गई। लेकिन एक बात पर कभी राज्य ध्यान नहीं देता कि तुम भोजन खींचे चले जा रहे हो, और तुम्हारी विराट देह और विराट होती चली जा रही है, और लोग उसके नीचे दबते जा रहे हैं, मरते जा रहे हैं। बादलों पर दोष देते हो, नदियों पर दोष देते हो, संख्या पर दोष देते हो, सब चीजों पर दोष देते हो; सिर्फ एक अपने पर कभी दोष नहीं देते-और जो कि नब्बे प्रतिशत कारण है। राज्य नब्बे प्रतिशत कारण है लोगों की भूख, बीमारी, गरीबी, उपद्रव का। लेकिन राज्य अपने को कैसे दोष दे? कोई अपने को दोष नहीं देता। लाओत्से कहता है, '...शासकों के हस्तक्षेप से पैदा होता है। इसी कारण वे उपद्रवी हैं।' तुम उन्हें दंड मत दो; तुम उनके पेट को भरो। और उनका उपद्रव खो जाएगा। तुम उन्हें जेलखानों में मत भेजो। उन्हें कपड़े और मकान की जरूरत है। उनकी जीवन की न्यूनतम आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो रही हैं, इसलिए वे उपद्रवी हैं। 250
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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