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________________ TRAINEMAMAL सन का आधिक्य मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी कठिनाई है। शासन जितना कम हो उतना श्रेष्ठ। शासन बिलकुल न हो तो वह श्रेष्ठता की पराकाष्ठा है। शासन जितना ज्यादा हो उतना निकृष्ट, और जब शासन ही शासन रह जाए तो वह शासन का अंतिम पतन है। शासन के आधिक्य का अर्थ है: स्वतंत्रता की कमी। और शासन के आधिक्य का यह भी अर्थ है कि व्यक्ति को व्यक्ति होने की अब कोई सुविधा नहीं है; जैसे व्यक्ति एक कलपुर्जा हो गया। वह इस बड़े समाज के यंत्र में उसका उपयोग है; उपयोग लिया जाएगा: लेकिन व्यक्ति की आत्मा को कोई स्वीकृति नहीं है। शासन का आधिक्य आत्मा का हनन है। मैंने एक छोटी सी कहानी सुनी है। अमरीका में एक कुत्तों की अखिल विश्व प्रदर्शनी थी। उसमें रूस से भी कुत्ते आए थे। एक अमरीकी कुत्ते ने पूछा रूसी कुत्तों से कि सब ठीक तो है? तुम्हारे देश में सब सुख-सुविधा तो है? उसने कहा, सब सुख-सुविधा है। ऐसा भोजन कभी हमें मिलता नहीं था जैसा मिलता है। रहने के लिए जगह जैसी हमें उपलब्ध है, कभी भी रूसी कुत्तों को पहले न थी। अब हम सड़कों पर भटकते नहीं और भोजन के लिए दर-दर ठोकर नहीं खाते। अब हम बड़े प्रसन्न हैं! लेकिन अमरीकी कुत्ते ने कहा कि तुम इतने प्रसन्न हो, लेकिन चेहरे पर प्रसन्नता मालूम नहीं होती। । उसने कहा, उसका एक कारण है; किसी को न बताओ तो कहूं। और सब तो ठीक है, भौंकने की आजादी नहीं है। और उस कुत्ते ने कहा कि भौंकने की आजादी का वही अर्थ होता है जो मनुष्य की भाषा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का। भौंक नहीं सकते। भोजन पूरा है; लेकिन व्यक्तित्व की कोई सुविधा नहीं है। शासन जब अधिक हो जाएगा तो व्यक्तित्व को पोंछ देता है; क्योंकि व्यक्तित्व खतरा है शासन में। शासन चाहता है समाज, व्यक्ति नहीं; समूह, व्यक्ति नहीं; क्योंकि व्यक्ति के होने में ही खतरा है। क्योंकि व्यक्ति स्वतंत्रता की मांग है। व्यक्तित्व की आखिरी गरिमा परिपूर्ण मुक्ति है; और शासन का अर्थ ही बंधन है।। दूसरी बात, जैसे ही शासन बढ़ता है वैसे ही शासन अपशोषित करता है समाज को। जैसे-जैसे शासन का बोझ बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे शासन के नीचे दबे लोग दुर्बल होते जाते हैं। शासन का पेट ही नहीं भर पाता; लोगों का पेट कैसे भरे? इसे हम चिकित्साशास्त्र से आसानी से समझ सकते हैं। चिकित्सक कहते हैं कि मनुष्य की हड्डियों पर थोड़ी सी चर्बी चाहिए; वह चर्बी हड़ियों की रक्षा करती है। वह चर्बी हड्डियों के आस-पास एक ऊष्मा, एक गरमी बनाए रखती है। वह चर्बी जरूरत-गैर-जरूरत के समय, संकट के समय आत्मरक्षा का उपाय है। अगर बहुत दिन भूखा रहना पड़े तो वह चर्बी तुम्हारा भोजन बन जाएगी। 243
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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