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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ चंबल की घाटी के डाक हैं। जब जयप्रकाश ने उन डाकुओं को मुक्त किया तो किसी मित्र ने मुझे आकर कहा। मैंने कहा कि दोनों एक ही तरह के लोग हैं। जरा भी फर्क नहीं है। जयप्रकाश और डाकुओं का मिलन एक जैसा है; दोनों की जीवन-ऊर्जा एक जैसी है। जयप्रकाश सुसंस्कृत आदमी हैं; डाकू असंस्कृत हैं। देवीसिंह और दूसरे असंस्कृत लोग हैं। बाकी उनके भी जीवन का आधार यही है कि समाज ने जो भी कहा है न करो, उसे वे तोड़ रहे हैं, मिटा रहे हैं। निर्भीक लोग हैं; पूरे राज्य के खिलाफ एक छोटी सी बंदूक के सहारे खड़े हैं। और जयप्रकाश, जयप्रकाश की भी वृत्ति वही है। ऐसा समझो कि डाकू शीर्षासन कर रहा हो। तो अराजकता, पूर्ण क्रांति की बातें। अच्छे शब्दों के पीछे भी बगावत है; अच्छे शब्दों के पीछे भी आकर्षण तोड़ने का है, मिटाने का है; बनाने का नहीं है। और जयप्रकाश ज्यादा लोगों को नुकसान पहुंचा पाएंगे। देवीसिंह कितने लोगों को नुकसान पहुंचा पाएगा? देवीसिंह बहुत से बहुत धन छीन लेगा कुछ लोगों का। लेकिन जयप्रकाश पूरी जीवन की व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट कर सकते हैं। और फिर भी लोग सम्मान करेंगे। तो निर्भीक आदमी के दो वर्ग हैं। अगर वह सुसंस्कृत हो तो वह क्रांतिकारी हो जाता है। क्रांति भी अपराध का एक ढंग है। अगर असफल हो जाए तो लोग उसको बगावती गिनते हैं; अगर सफल हो जाए तो वह महा नेता हो जाता है। लेनिन, माओ, कैस्त्रो, स्टैलिन, हो ची मिन्ह, इनके जीवन में और डाकुओं के जीवन में कोई बुनियादी भेद नहीं है। भेद इतना ही है कि डाकू छोटे पैमाने पर उपद्रव करता है, ये बड़े पैमाने पर उपद्रव करते हैं। और इनके उपद्रव के पीछे एक दर्शनशास्त्र है। डाकू के पास कोई दर्शनशास्त्र नहीं है। इनके उपद्रव के पीछे एक फलसफा है और उस फलसफे की आड़ में सभी चीजें सुंदर हो जाती हैं। इसे थोड़ा समझने की कोशिश करो। चोर क्या कह रहा है? चोर की चोरी क्या कहती है? चोर इतना ही कह रहा है कि हम व्यक्तिगत संपत्ति के नियम को नहीं मानते। बिना जाने। डाकू क्या कह रहा है? डाकू यह कह रहा है कि हम तुम्हारी व्यक्तिगत संपत्ति की नियम की व्यवस्था को नहीं मानते। भला उसे पता भी न हो, भला इतने शब्दों में वह कह भी न सके, उसे भी साफ न हो। वह कर क्या रहा है? व्यक्तिगत संपत्ति के नियम को तोड़ रहा है। वह कहता है, हम इसको वर्जना नहीं मानते। कोई चीज किसी की नहीं है, जिसके हाथ में बल है उसकी है। इतना ही कह रहा है समाजवाद, साम्यवाद क्या कह रहा है? लेनिन, माओ, स्टैलिन, हो ची मिन्ह क्या कह रहे हैं? वे इसको बड़ा विस्तीर्ण शास्त्र बना रहे हैं। वे कह रहे हैं, व्यक्तिगत संपत्ति को न बचने देंगे। लेकिन मजा यह है कि व्यक्तिगत संपत्ति को मिटा डालो, कोई फर्क नहीं पड़ता। जिन लोगों के हाथ में सत्ता होती है वे पूरी संपत्ति के उसी तरह मालिक हो जाते हैं जैसा कि राकफेलर, फोर्ड या बिड़ला कभी भी नहीं हो पाते। स्टैलिन तो पूरे मुल्क की संपत्ति का मालिक हो गया। मालकियत जाती नहीं, क्योंकि जो भी राज्यसत्ता में होता है उसके ऊपर फिर कोई भी नहीं। स्टैलिन बड़े से बड़ा डाकू है जिसके हाथ में बीस करोड़ का मुल्क पड़ गया। डाकुओं ने कितने लोग मारे हैं? स्टैलिन ने अपने जीवन में अंदाजन एक करोड़ लोग मारे। जिसने भी ना-नुच की उसी को खत्म किया। जितने साथी थे क्रांति में, धीरे-धीरे सबको मार डाला, क्योंकि उनसे खतरा था। सबको साफ कर दिया और सारे मुल्क की संपत्ति का मालिक बन बैठा। अगर तुम असंस्कृत हो तो किसी पर डाका डाल दोगे; अगर तुम सुसंस्कृत हो, तुम पूर्ण क्रांति का नारा दोगे। और तुम ज्यादा खतरनाक हो, और तुम्हें कोई भी पकड़ न पाएगा। क्योंकि तुम बड़ी कुशलता से शब्दों के जाल में सारी व्यवस्था जमाओगे। मैंने सुना एक दिन कि मुल्ला नसरुद्दीन साम्यवादी हो गया। तो मैं उसके घर गया। उससे पूछा मैंने कि क्या हो गया? उसने कहा कि मैं साम्यवादी हो गया। मैंने कहा, तुम्हें पता है साम्यवाद का मतलब क्या होता है? 228
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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