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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 200 तुम तो इस बात को क्राइटेरियन समझ लो, मापदंड, कि जो आदमी भी शक्ति की खोज में है वह भीरु है। नहीं तो शक्ति की खोज क्यों करता ? जो आदमी भय से मुक्त हो गया, अभय हो गया, उसकी शक्ति की आकांक्षा खो जाती है । वह शक्ति की कोई आकांक्षा नहीं करता - न धन में, न पद में, न प्रतिष्ठा में। शक्ति की आकांक्षा ही खो जाती है। और जहां शक्ति की आकांक्षा खो जाती है वहीं विशिष्टता है। लाओत्से कहता है, वही कुलीन है। तुम्हारे किस कुल में तुम पैदा हुए उससे तुम कुलीन नहीं होते। जिस दिन तुम विनम्रता के कुल में पैदा होते हो उसी दिन कुलीन होते हो। जिस दिन तुम्हारी शक्ति की आकांक्षा छूट जाती, अहंकार विलीन हो जाता, भय चला जाता, निंदा खो जाती और तुम अपने भीतर तृप्त संतुष्ट हो जाते हो, एक गहन परितोष तुम्हारे भीतर उठता है जैसे सुबह का सूरज उगता हो, उस परितोष के प्रकाश में तुम वस्तुतः कुलीन हुए। बुद्ध ने कहा है बुद्ध के पिता से । क्योंकि बुद्ध के पिता ने जब बुद्ध वापस लौटे तो कहा कि तू हमारे कुल में पैदा हुआ ! और हमारे कुल में कभी भिखारी नहीं हुए और तू भीख मांगता है, हमें शर्म आती है ! तू सम्राट है; भीख मांगने की कोई जरूरत नहीं । और मैं तेरा पिता हूं, मैं तुझे अभी भी क्षमा कर सकता हूं; तू वापस लौट आ । बुद्ध ने कहा, आप अपनी तरफ से ठीक ही कहते हैं। लेकिन अब मैं दूसरे कुल में पैदा हो गया हूं। वह कुल आपका था जहां यह शरीर पैदा हुआ । और अब तो मैं बुद्धों के कुल में पैदा हो गया हूं। वहां आपके शरीर का, आपके कुल का, आपके साम्राज्य का, आपके सम्राट होने का कुछ भी लेना-देना नहीं। और जहां तक मैं जानता हूं, जिस कुल में मैं वैसे व्यक्ति सदा ही रास्ते के भिखारी रहे हैं । कुलीन तुम तभी होते हो जब तुम जाग आते हो अंधेरे से। तब तुम बुद्धों के कुल में पैदा हुए। संन्यास उस यात्रा का पहला कदम है जिसके अंत में व्यक्ति बुद्धों के कुल में पैदा होता है। आज इतना ही।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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