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________________ ताओ उपनिषद भाग६ हर आदमी करीब-करीब पागलपन के करीब है, मगर पता किसी को भी नहीं। मजे से तुम जीए चले जाते हो; अपने पागलपन को भीतर दबाए रखते हो, बाहर एक चेहरा बनाए रखते हो। इस चेहरे के पीछे झांकना जरूरी है। अन्यथा खतरा है कि तुम कभी पागल हो जाओगे। या तो मनुष्य विक्षिप्त हो सकता है या विमुक्त हो सकता है, दो उपाय हैं। जो विमुक्त न होगा वह विक्षिप्त हो जाएगा। और जिसे विक्षिप्त होने से बचना हो उसे विमुक्त होने की चेष्टा करनी चाहिए। और विमुक्त होने का पहला लक्षण कि तुम अपने पागलपन को ठीक-ठीक पहचान लो, सब तरफ से उसका निरीक्षण कर लो। इस निरीक्षण में ही तुम पाओगे कि तुम मालिक होने लगे। मन का ठीक-ठीक निरीक्षण तुम्हें मन का मालिक बना देगा। और अगर तुम अपने रोग को जान लो, जैसा रोग है, तो एक बड़ी सूत्र की बात है। शरीर की चिकित्सा में निदान के बाद औषधि की जरूरत पड़ती है, डायग्नोसिस पहले। और जो लोग शरीर की चिकित्सा करते हैं उन्हें पता है कि असली चीज डायग्नोसिस है; निदान बड़ी से बड़ी चीज है; औषधि तो कोई भी बता देगा, एक दफा निदान हो जाए बीमारी का। तो ठीक से समझा जाए तो नब्बे प्रतिशत तो निदान और दस प्रतिशत औषधि-शरीर की चिकित्सा में। मन की चिकित्सा में सूत्र और भी गहन है। वहां तो सौ प्रतिशत निदान। क्योंकि निदान ही वहां चिकित्सा है। तम अगर ठीक से जान लो कि तुम्हारी बीमारी क्या है, बात समाप्त हो गई। तुम सचेतन हो जाओ बीमारी के प्रति, तुम्हारी सचेतना की अग्नि में ही बीमारी राख हो जाती है। इसलिए ज्ञानियों ने एक ही बात कही है बार-बार, हजार बार, कि तुम जाग जाओ तो मन समाप्त हो जाता है; तुम होश से भर जाओ, बस इतना ही काफी है। बुद्ध ने कहा है, सम्यक स्मृति, राइट माइंडफुलनेस। कृष्णमूर्ति चिल्लाए चले जाते हैं, अवेयरनेस, जागो, होश सम्हाल लो। कबीर कहते हैं, सुरति, होश। महावीर से किसी ने पूछा, साधु कौन? तो महावीर ने कहा, असुत्ता मुनि। जो सोया हुआ नहीं, वह साधु, वह मुनि। और असाधु कौन? तो महावीर ने कहा, सुत्ता अमुनि। जो सोया हुआ है, जो जागा हुआ नहीं, वह असाधु। महावीर ने यह नहीं कहा कि जो बुरा करता है वह असाधु; महावीर ने यह नहीं कहा कि जो भला करता है वह साधु। महावीर ने कहा, जो जागा हुआ है वह साधु, और जो सोया हुआ है वह असाधु। तुम्हारे सोए होने में ही सारा रोग है। तम्हारे जागने में ही निदान है। आज इतना ही। 180
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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