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________________ मेरे तीन खजानेः प्रेम और अब-अति और अंतिम होना पड़ती है। लगता है कहीं कोई प्रगाढ़ आकर्षण खींचे ले रहा है, कोई चुंबकीय शक्ति है। और कस्तूरी भीतर है। और कस्तूरी मृग की नाभि में छिपी है। पक गया है नाफा, गंध बाहर आ रही है। तुम परमात्मा को खोजते फिरते हो जगह-जगह-काशी, कैलाश, काबा-और कस्तूरी कुंडल बसे। जो गंध तुम्हें मिल रही है जीवन की, वह तुम्हारे भीतर से आ रही है। लेकिन बाहर की प्रतिध्वनि तुम्हें सुनाई पड़ती है। . यूनान में एक कथा है। एक बहुत सुंदर युवक हुआ, नार्सीसस। वह इतना सुंदर था कि वह अपने ही प्रेम में पड़ गया। उसने अपनी छांह देख ली एक सरोवर में। तब दर्पण न रहे होंगे। बहुत पुरानी कथा है। एक सरोवर में अपनी छांह देख ली; इतनी सुंदर थी! निश्चित ही युवक बहुत सुंदर था। फिर बहुत युवतियों ने उस पर अपने तीर फेंके, वे कारगर न हो सकीं। क्योंकि वह जो छांव में उसने देख लिया था वैसा सुंदर फिर उसने किसी को पाया नहीं। वह भटकता रहा, वह खोजता रहा उस व्यक्ति को, जो उसने देख लिया था सरोवर के भीतर छिपा हुआ। वह घंटों, और दिनों, और महीनों सरोवर के किनारे बैठा रहता और देखता रहता टकटकी लगा कर। पानी में छलांग लगाता, प्रतिबिंब खो जाता; डुबकी मारता, खोजता, कुछ भी न पाता। वहां कुछ था तो नहीं, वहां तो बस प्रतिफलन था, वहां तो सिर्फ प्रतिछाया थी। उसके कूदते ही खो जाती। कहते हैं, नार्सीसस पागल हो गया। सरोवर दर्पण, प्रतिफलन, छलांग लगाना, खोजना; खाना-पीना भूल गया। जंगल-जंगल खोजता फिरा। पहाड़-पहाड़ उसकी आवाज से गूंजने लगे। जो नार्सीसस की कथा है, वही तुम्हारी कथा है। तुम जिसे खोज रहे हो वह तुम्हारे भीतर छिपा है। हो सकता है किसी की आंख के सरोवर में तुम्हें दिखाई पड़ा हो अपना प्रतिबिंब। हो सकता है किसी के चेहरे पर तुम्हारा प्रतिबिंब दिखाई पड़ा हो। हो सकता है कभी संगीत के माधुर्य में झलक गई हो बात। किसी सुबह सूरज के उगते क्षण में, आकाश के मौन में, पक्षियों के कलरव में, खिलते हुए गुलाब के फूल में तुम्हें दर्पण मिल गया हो। लेकिन जो तुमने देखा है, जो तुमने सुना है, जो तुमने पाया है कहीं भी बाहर, सब खोजियों की खोज एक है कि वह तुम्हारे भीतर छिपा है। तो लाओत्से से पूछो, कहां खोजें? वह कहता है, कहीं भी खोजा तो मुश्किल में पड़ोगे। खोजो मत, रुक जाओ। बिलकुल रुक जाओ। और तुम पा लोगे। निष्क्रियता है राज पाने का। लाओत्से कहता है, मिट जाओ तो हो जाओगे। अगर बने रहे तो मिटोगे, बुरी तरह मिटोगे। लाओत्से कहता है, अगर सफल होना हो तो सफल होने की कामना ही छोड़ देना; अगर तृप्ति चाहिए हो तो तृप्त होने की वासना ही मत रखना। सब कामनाएं परिपूर्ण हो जाती हैं जैसे ही कामना छूट जाती है। निर्वासना से भरे मन में वह परम गुह्य उतर आता है, उस परम गुह्य का नर्तन शुरू हो जाता है। घिर जाते हैं मेघ आनंद के उसके पास, जिसकी कोई चाह नहीं। तुम्हारी मुसीबत यह है कि तुम कहते हो, चाह नहीं! हम तो लाओत्से के पास भी इसीलिए जाते हैं कि चाह है। लाओत्से की बात भी तुम इसीलिए सुनते हो कि सोचते हो शायद इसकी बात सुनने से आनंद मिल जाए। तुम ज्ञानियों के पास भी अपने लोभ के कारण जाते हो। और ज्ञानी यह कह रहा है, तुम हमारे पास आ सकोगे तभी जब तुम्हारे पास कोई लोभ न हो। बड़ी अड़चन है। गुरु और शिष्य के बीच बड़ा गहन संघर्ष है। उससे बड़ा कोई युद्ध संसार में नहीं। और अगर शिष्य जीत जाए तो वही उसकी हार होगी। और शिष्य अगर हार जाए तो वही उसकी जीत होगी। अब यह सब विरोधाभास है। और जब लाओत्से ने ये सब बातें कहीं, और अपना ताओ तेह किंग का पहला वचन कहा, कि जो कहा जा सके वह सत्य है ही नहीं, और फिर कहना शुरू किया तो अगर लोगों ने समझा कि इस लाओत्से का उपदेश मूढ़ता से बहुत मिलता-जुलता है, तो कुछ हैरानी की बात नहीं।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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