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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ उस मनोचिकित्सक ने बड़ी नाराजगी से कहा कि सुनो, अगर तुम न आए होते पांच मिनट और तो मैंने तुम्हारे बिना ही शुरू कर दिया होता! आदमी इतना ज्यादा बताने को उत्सुक है कि तुम इसकी फिक्र ही नहीं करते कि दूसरा आदमी सुनने को मौजूद भी है! जब तुम लोगों से बात करते हो तब दूसरा अक्सर मौजूद नहीं होता, भागने की तैयारी में होता है। लेकिन तुम बताने के लिए पकड़े रखते हो उसको। और जिन चीजों का तुम्हें कोई भी पता नहीं है। क्या पता है? ईश्वर का पता है? मोक्ष का पता है ? स्वर्ग-नरक का पता है? पाप-पुण्य का पता है? शुभ-अशुभ का पता है? जीवन-मृत्यु का पता है? क्या पता है? लेकिन सबको तुम ऐसा मान कर चलते हो कि पता है। थोड़ी जांच-परख करो। गुरजिएफ के पास जब रूस का एक बहुत बड़ा विचारक ऑसपेंस्की गया। और ऑसपेस्की ने बड़ी ऊंची किताबें लिखी थीं। एक किताब तो उसकी अनूठी है मनुष्य-जाति के पूरे इतिहास में। अगर पांच किताबों के नाम मुझे लेने को कहा जाए तो एक उसकी किताब का नाम लूंगा। उसकी किताब है : टर्शियम आर्गानम। बड़ी अनूठी गणित और दर्शन की किताब है। कभी हजार साल में एकाध वैसी किताब पैदा होती है। तो वह आदमी जग-जाहिर था। और गुरजिएफ को कोई भी नहीं जानता था। गुरजिएफ एक साधारण फकीर था। जब ऑसस्की गया तब यह किताब प्रसिद्ध हो चुकी थी, छप चुकी थी। गुरजिएफ से ऑसपेस्की ने कहा कि मैं कुछ पूछने आया है। गुरजिएफ ने कहा, बताऊंगा। लेकिन पहले यह कोरा कागज हाथ में ले लो, बगल के कमरे में चले जाओ, और इस पर एक फेहरिस्त बना दो, एक तरफ लिख दो जो तुम जानते हो, और दूसरी तरफ लिख दो जो तुम नहीं जानते हो। क्योंकि तुम बड़े ज्ञानी हो, तुम्हारी किताब मैंने देखी है, तुम शब्दों के संबंध में बड़े कुशल हो। तो तुम साफ खुद ही लिख दो कि जो तुम जानते हो। उसकी हम कभी चर्चा न करेंगे। जब तुम जानते ही हो, बात खतम हो गई। और साफ-साफ लिख दो जो तुम नहीं जानते हो। बस उसकी मैं तुमसे चर्चा करूंगा। ऑसपेस्की ने लिखा है कि मेरी जिंदगी में इतना कठिन क्षण कभी आया ही न था। उस कागज को लेकर मैं कमरे में चला गया। और सर्दी के दिन थे, बरफ पड़ रही थी, और मेरे माथे से पसीना चूने लगा। कलम उठाऊं,' समझ में न आए कि क्या लिखू? क्या जानता हूं? इस गुरजिएफ ने तो मुसीबत में डाल दिया। बहुत बार कोशिश की कि हां, यह मैं जानता हूं। लेकिन जब लिखने गया तब मुझे साफ हो गया कि जानता तो यह भी मैं नहीं हूं। उधार है सब जानकारी, दूसरों से सीख ली है; अपना तो कोई भी अनुभव नहीं है। घड़ी भर बाद आकर कोरा कागज गुरजिएफ को दे दिया, और कहा, कुछ भी नहीं जानता हूं; आप शुरू कर सकते हैं। और गुरजिएफ ने ऑसपेंस्की को और ही ढंग का आदमी बना दिया, एक अनूठा ही आदमी बना दिया; उसका सारा जीवन रूपांतरित कर दिया। लेकिन उस रूपांतरण की बुनियाद रखी है ऑसपेस्की के स्वीकार में कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। और बड़ा कठिन रहा होगा ऑसस्की जैसे जग-जाहिर व्यक्ति को, जिसको लोग ज्ञानी समझते थे, उसे यह लिखना निश्चित ही मुश्किल पड़ा होगा, यह कहना मुश्किल पड़ा होगा कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। जिस दिन तुम कह सकते हो कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं, तुम कोरे कागज की तरह हो जाते हो। और अब इस कोरे कागज पर कुछ लिखा जा सकता है। ___ 'जो उसे भी जानने का ढोंग करता है जो वह नहीं जानता, वह मन से रुग्ण है।' वह बीमार है। उसके इलाज की जरूरत है। इस अर्थ में सभी लोग बीमार हैं। क्योंकि तमने सभी ने दावे किए हैं उन बातों को जानने के जिन्हें तुम बिलकुल नहीं जानते। 'और जो रुग्ण मानसिकता को रुग्ण मानसिकता की तरह पहचानता है, वह मन से रुग्ण नहीं है।' 178
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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