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________________ ताओ उपनिषद भाग ६ बड़ी पुरानी कहानी है कि एक सिंहनी एक पहाड़ी से छलांग लगाई दूसरी पहाड़ी पर। गर्भिणी थी; छलांग की चोट में बच्चा नीचे गिर गया। नीचे भेड़ों का एक झुंड गुजरता था। भेड़ों ने बच्चे को बड़ा कर लिया। भेड़ों के साथ बड़ा हुआ सिंह, लेकिन उसको याद तो यही रही कि मैं भेड़ है। वह भेड़ों जैसा ही मिमियाता। बड़ा हो गया, भेड़ों से बड़ा ऊंचा हो गया। न तो भेड़ें उससे डरतीं, न वह भेड़ों को खाता। उसे याद ही नहीं थी कि वह सिंह है। एक दिन एक सिंह ने हमला किया भेड़ों के इस झुंड पर। देख कर सिंह चकित हुआ कि एक सिंह भी भेड़ों में घसर-पसर करता हुआ भाग रहा है! न तो भेड़ें उससे डरी हैं; न वह भेड़ों पर हमला कर रहा है। यह चमत्कार था! उसे भरोसा ही न आया। वह भागा; बामुश्किल इस सिंह को पकड़ पाया। पकड़ा तो वह मिमियाता था, रोता था, जैसे भेड़ें रोती हैं। और उस सिंह ने उसको बहुत डांटा-डपटा कि तू यह क्या कर रहा है? तुझे पता है तू कौन है? लेकिन वह मिमियाता ही रहा। वह भागना चाहता था। किसी तरह पकड़ कर सिंह उसे नदी के किनारे लाया। शांत जल में उसने कहा, झांक! दोनों ने सिर जल में किए। क्षण भर में क्रांति हो गई। वह जो सिंह अपने को भेड़ समझता था, अचानक सिंहनाद निकल गया उसके मुंह से। सब बदल गया। बात ही बदल गई। उसकी आंखें और हो गईं। उसकी चाल और हो गई। कुछ करना न पड़ा। एक दूसरे सिंह के साथ पानी के दर्पण में अपनी छवि को पहचान लिया। बस संत के पास होने से इतना ही हो सकता है। संत कुछ सिखाता नहीं; तुम जो हो, वही तुम्हें बता देता है। आज इतना ही।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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