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________________ मंत को पहचानना महा कठिन है या ज्यादा उचित होगा कोई निकट का उदाहरण जो तुम्हें समझ में आ जाए। महात्मा गांधी ठीक कनफ्यूशियस जैसे आदमी हैं-साफ-सुथरे, गणित बिलकुल चौकस, रत्ती भर भूल तुम न खोज सकोगे। महात्मा हैं, आदर्श व्यक्ति हैं; चौबीस घंटे हिसाब रखते हैं नियम से जीने का। और एक आदमी था इस मुल्क में उसी समय, अरुणाचल के पहाड़ पर बैठा हुआ, रमण। कोई हिसाब-किताब नहीं है, न कोई नियम-व्यवस्था है। दुनिया में बहुत कम लोग रमण को जान पाए। गांधी को न जानने वाला आदमी खोजना मुश्किल है; रमण को जानने वाला आदमी खोजना मुश्किल है। गांधी इतिहास-पुरुष होंगे, रमण भूल जाएंगे। संदेह उठना शुरू होगा किसी न किसी दिन कि यह आदमी हुआ कि नहीं हुआ। क्योंकि इस आदमी ने ऐसा कुछ भी तो नहीं किया है जिसका चिह्न घटनाओं पर छूट जाए। गांधी को तो मानना ही पड़ेगा। भारत की आजादी है; अछूतों का उद्धार है। हजार कृत्य हैं एक आदमी के पास; हजार कृत्यों पर इसके हस्ताक्षर हैं। घटनाओं की दुनिया में इसकी बड़ी पकड़ थी। अखबार पर इसकी छाप थी। जहां भी कुछ घट रहा था वहां यह आदमी मौजूद था। यह आदमी जहां मौजूद था वहां चीजें घटना शुरू हो जाती थीं। घटनाक्रम में इस आदमी की गति थी। वहां रमण थे, वे लाओत्से जैसे; कुछ भी कर नहीं रहे थे। कुछ किया ही नहीं तो इतिहास क्या बनेगा? अब न करने का कोई इतिहास तो होता नहीं। दुनिया में कोई ऐसी बड़ी क्रांति नहीं करी कि जिसको लिखा जाए। करोड़ों-करोड़ों लोगों का जीवन नहीं बदल डाला; उनके जीवन की व्यवस्था नहीं बदल डाली। कौन फिक्र करेगा? एक इटालियन विचारक लेंजा देलवास्तो रमण के आश्रम गया। तीन दिन रहा, और उसने कहा कि यह आदमी अपने काम का नहीं। फिर गांधी के आश्रम आया, और उसने कहा कि यह आदमी है। यह रमण भी कोई आदमी है? खाली बैठा है। कुछ सेवा करो! दुनिया में इतना कष्ट है, कष्ट को मिटाओ! इतने बीमार हैं ! इतनी पीड़ा है! यह किस तरह का अध्यात्म कि तुम खाली बैठे हो। इस अध्यात्म को पहचानना बहुत मुश्किल है। और यही एक मात्र अध्यात्म है। लेजा देलवास्तो गांधी से जाकर दीक्षित हुआ; रमण को छोड़ आया और गांधी से दीक्षित हुआ। लोगों के दुर्भाग्य का कोई हिसाब नहीं है। गांधी ने नाम दिया शांतिदास। लेजा देलवास्तो शांतिदास हो गए, लेकिन जहां शांति थी वहां से चूक गया। गांधी के पास तो भयंकर अशांति थी। लेकिन गांधी को करोड़ों लोग जानेंगे। रमण को कौन जानेगा? रमण को वे थोड़े से लोग जानेंगे जो गहन शांति में प्रवेश करेंगे, जो अस्तित्व को अनुभव करेंगे। वे रमण को जानेंगे। और तभी वे जान पाएंगे कि अक्रिया की भी एक क्रिया है। और अक्रिया की विराट ऊर्जा है। वह ऊपर से चोट नहीं करती, कहीं भीतर से काम करती है; प्रत्यक्ष आक्रमण नहीं करती, परोक्ष से प्रवेश करती है। लेकिन वह अदृश्य का खेल है। दृश्य के जगत में तो गांधी का मूल्य होगा। अदृश्य! लेकिन अदृश्य को कितने लोग जानते हैं? सूक्ष्म को कितने लोग जानते हैं? गांधी सतह पर हैं, जहां सारी दुनिया खड़ी है। रमण गहराई में हैं, जहां कोई गोताखोर ही पहुंच पाएगा। इसलिए लाओत्से कहता है, 'चूंकि बहुत कम लोग मुझे जानते हैं, मैं विशिष्ट हूं।' विशिष्ट को बहुत लोग जान ही कैसे सकते हैं? क्योंकि लोग तो उसी को जान सकते हैं जो उन जैसा हो, जो उनकी भाषा में आता हो। लोग तो उसी को जान सकते हैं जिनसे उनका कोई संबंध बनता हो। गांधी से संबंध बनता है। पीड़ा है, और गांधी कोढ़ी का पैर दाब रहे हैं। संबंध बनता है। गुलामी है, और गांधी गुलामी को तोड़ रहे हैं; जीवन को दांव पर लगा रहे हैं। संबंध बनता है। गांधी में ऐसा कुछ भी तो नहीं है जो तुम्हारे लिए बेबूझ हो। सब तो साफ-साफ है; गणित सीधा है। तुम्हारी भाषा में और गांधी की भाषा में कहीं रत्ती भर भी तो फर्क नहीं है। भला तुम गांधी न होओ, लेकिन होना तो तुम भी गांधी ही चाहते हो। आदर्श तो वही है। वे हो गए हैं; तुम कल हो जाओगे। तुम कोशिश करोगे; वे मंजिल पर पहुंच गए हैं, तुम रास्ते पर हो। लेकिन रास्ता एक ही है। वे दस कदम आगे होंगे; तुम दस कदम पीछे हो। या दस मील आगे होंगे; तुम दस मील पीछे हो। लेकिन तुम 159
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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