SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ 142 हटने की कला को ही मैं जागरण कहता हूं। जाग कर देखते रहो। जागते-जागते, जागते-जागते, तुम्हारे भीतर तीसरी स्थिति खड़ी हो जाएगी। दो बाहर रह जाएंगे, तीसरा भीतर हो जाएगा। वह तीसरा दो के पार है। उस पार का अनुभव होने लगे, फिर कोई कठिनाई नहीं है। फिर कोई गाली दे, निंदा करे, स्तुति करे, सब बराबर है। फिर कोई अंतर नहीं पड़ता है। फिर एक विराट अभिनय है, बड़ा मंच है, चल रहा है। तुम्हें दिया गया पात्र तुम्हें पूरा कर देना है, तुम्हारा अभिनय तुम्हें पूरा कर देना है। तब तुम बदलना भी नहीं चाहते। ऐसी कथा है कि जापान में एक फकीर हुआ, जो कि हत्यारा था। पहले सैनिक था, तब भी लोगों को लगता था कि वह मारता जरूर है, लेकिन मारता नहीं । उसकी झलक उसके निकट के लोगों को पता चलती थी। फिर वह एक ही काम सीखा था। मुक्त हो गया सेना से, तो उसने बधिक का धंधा कर लिया, बूचर बन गया। कहते हैं, वह जिंदगी भर पशुओं को ही काटता रहा । सम्राट भी उसके पास शिक्षा लेने आते थे। अनेक बार उसके शिष्यों ने कहा कि यह बात शोभा नहीं देती कि तुम और पशुओं को काटो । वह हंसता और कहता, जो परमात्मा ने काम पकड़ा दिया वह कर रहे हैं, न हमने चुना, न हमारी कोई जिम्मेवारी । उसकी मर्जी है कि हम बधिक रहें, हम बधिक हैं। न कोई वैमनस्य है इन पशुओं से, न कोई शत्रुता है । न इन्हें बचाने का कोई अपना आग्रह है, न मिटाने का कोई अपना आग्रह है। जो मिल गया है अभिनय वह पूरा किए दे रहे हैं। कहते हैं, वह परम मुक्ति को उपलब्ध हुआ। तुम अहिंसा साध-साध कर भी न हो पाओगे, और कभी-कभी हत्यारे भी मुक्त हो गए हैं। असली राज न तो अहिंसा में है और न हिंसा में है; असली राज तो जीवन को अभिनय बना लेने में है। तुम कर्ता न रह जाओ। अब तुमने अगर एक मक्खी को नहीं मारा या एक चींटी को नहीं मारा तो तुम हिसाब लिख लेते हो कि आज एक चींटी बचाई। मगर तुम कर्ता हो, तुम कुछ कर रहे हो। कर्तृत्व बंधन है; साक्षित्व मुक्ति है। तुम कर्ता न रहो; धीरे-धीरे साक्षी हो जाओ। कर्ता में द्वंद्व है, साक्षी अद्वैत अवस्था है। जिस दिन यह घट जाएगा उस दिन सब ठीक है, उस दिन कोई फर्क नहीं पड़ता। क्या करते हो, क्या नहीं करते हो, सब बराबर है। यह जगत स्वप्न से ज्यादा नहीं। यह तुम्हें सत्य मालूम पड़ता है, क्योंकि तुम सोए हो। तुम जागोगे तो पाओगे, सब सपना खो गया। साधु भी सपने में साधु है और असाधु भी सपने में असाधु है। जागा हुआ न तो साधु है न असाधु । जागे हुए को हम संत कहते हैं, सिद्ध कहते हैं। वह न अच्छा है न बुरा; वह सिर्फ जाग गया। सपना खो गया। न उसे कुछ अच्छा बचा, न कुछ बुरा; न शुभ, न अशुभ, न पाप, न पुण्य । इसलिए संतत्व आखिरी शिखर है। लेकिन उस तक बड़ी यात्रा करनी है। और एक-एक कदम चलोगे तो पहुंच जाओगे। क्योंकि हजारों मील की यात्रा भी एक कदम से शुरू होती है। आज इतना ही।
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy