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________________ ताओ उपनिषद भाग६ छोटा करके मत मान लेना, नहीं तो तुम जो उपाय करोगे वे बहुत छोटे होंगे। और उन उपायों से तुम जो पाना चाहते हो वह बहुत बड़ा है। बहुत से लोग इसी तरह के उपाय कर रहे हैं। एक योगी को मैं जानता हूं, जो आएंगे तो वे पहले पूछते हैं कि इस जगह पर कोई स्त्री तो नहीं बैठी थी? मैं पूछा कि यह मामला क्या है? उन्होंने कहा, दस मिनट तक उस स्थान पर स्त्री की शक्ति, स्त्रैण-शक्ति की तरंगें रहती हैं, और उनसे ब्रह्मचर्य में खंडन हो जाता है। अब यह पागल है। स्त्री बैठी थी, उस जगह बैठने में इनको घबराहट और डर है। और यह पूरी पृथ्वी स्त्री है। जहां बैठोगे वहीं स्त्री है। इसीलिए तो हम पृथ्वी को माता कहते हैं। और कैसे बचोगे तुम स्त्री से? स्त्री से पैदा हुए हो। तुम्हारे रोएं-रोएं में स्त्री है। जब एक बच्चे का जन्म होता है तो आधा तो दान बाप का होता है, आधा मां का होता है। तो तुम्हारा आधा शरीर स्त्री है, आधा पुरुष है। एक-एक कण में स्त्री और पुरुष छिपे हैं। और तुम कुर्सी पर बैठने में डर रहे हो और आधी स्त्री भीतर लिए चल रहे हो। जिसको तुम हिमालय चले जाओ, कैलाश, तो भी कोई उपाय नहीं है। वह तुम्हारे साथ ही रहेगी। तुम्हारे शरीर का कण-कण स्त्री-पुरुष के मेल से बना है। और इतने अगर डरे हुए हो कि दस मिनट पहले बैठी हुई स्त्री की तरंगें तुम्हें दिक्कत देंगी, तब तुम बच न पाओगे। सब तरफ स्त्रियां घूम रही हैं, तरंगें ही तरंगें हैं। जहां जाओगे वहीं स्त्रियां हैं, पुरुषों से थोड़ी ज्यादा ही हैं। कहां जाओगे? बचोगे कहां? लेकिन तुमने शत्रु को छोटा करके मान लिया है। इसलिए तुम छोटे-छोटे उपाय कर रहे हो। तुम चम्मचों से सागर को खाली करने की कोशिश में लगे हो। यह कभी खाली न होगा। भीतर की शक्तियों को भी छोटा करके मत मानना। क्रोध भी बड़ी विराट शक्ति है। इसीलिए तो जिंदगी भर कोशिश करके भी मिटता नहीं। रोज तय करते हो कि अब न करेंगे, और जब आता है तब बिलकुल भूल जाते हो। जब आता है तब याद ही नहीं रहती। सब निर्णय, सब संकल्प मिट्टी हो जाते हैं। जब आता है तो झंझावात की तरह पकड़ लेता है। हां, जब चला जाता है तब तुम फिर बुद्धिमान हो जाते हो। फिर पछताने लगते हो कि यह गलती हो गई आज। अब दोबारा न करूंगा। और तुम यह भी नहीं सोचते कि यह बात तुम कितनी बार कह चुके हो कि दुबारा न करूंगा। कामवासना पकड़ती है तब तुम बिलकुल पागल हो जाते हो। हां, जब कामवासना जा चुकी तब तुम्हें सब ब्रह्मचर्य की बातें याद आने लगती हैं। तब तुम सोचने लगते हो कि ब्रह्मचर्य ही जीवन है। उठा लेते हो किताबें और ब्रह्मचर्य के शास्त्र पढ़ने लगते हो और निर्णय करते होः बस अब यह आखिरी हो गया। और तुम कभी यह पूछते भी नहीं कि कितनी बार तुमने कहा कि यह आखिरी हो गया। और इतने बार हार कर भी, तुम्हारी बेशर्मी की हद है, कि तुम फिर-फिर वही कहे चले जाते हो कि अब की बार आखिरी हो गया। शरम भी नहीं आती। यह भी नहीं देख पाते कि कितनी बार पराजित हो चुके। फिर अब किस मुंह से यह निर्णय कर रहे हो। कम से कम यह मुंह ही बंद कर दो, यह निर्णय ही छोड़ दो। एक बूढ़े आदमी ने कलकत्ते में मुझे कहा। वे एक बहुत अनूठे आदमी थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैंने चार बार ब्रह्मचर्य का निर्णय जीवन में लिया। एक मूरख सज्जन भी मेरे पास बैठे थे, वे बड़े प्रभावित हुए। मैंने कहा, तुम प्रभावित न होओ, पहले पूछो तो कि ब्रह्मचर्य का संकल्प भी चार बार लेना पड़ता है? तो पहली बार लिया उसका क्या हुआ? फिर दूसरी बार लिया उसका क्या हुआ? फिर तीसरी बार लिया उसका क्या हुआ? तुम इतने प्रभावित! वे चार बार से बहुत प्रभावित हुए, कि चार बार! मैंने कहा, यह चार बार का मतलब क्या होता है? और मैंने कहा कि तुम जल्दी मत करो, क्योंकि मेरा हिसाब कुछ और है। मैं यह पूछता हूं कि पांचवीं बार क्यों नहीं लिया? तो उन्होंने कहा, मैं इतना हार गया कि फिर मेरी हिम्मत ही न रही। वह आदमी ईमानदार है। फिर मेरी हिम्मत न रही। चार बार बहुत हो गया। जब बार-बार हारना है और पराजय बार-बार होनी है, तो अब निर्णय भी किस मुंह से लेना? क्या सार है लेने का? 122
SR No.002376
Book TitleTao Upnishad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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