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असंघर्षः सारा अस्तित्व सहोदर हैं
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'अच्छा लड़ाका क्रोध नहीं करता। बड़ा विजेता छोटी बातों के लिए नहीं लड़ता । मनुष्यों का अच्छा प्रयोक्ता अपने को दूसरों से नीचे रखता है। असंघर्ष का यही सदगुण है।'
असंघर्ष शब्द को ठीक से समझ लो ।
हमारे भीतर एक वृत्ति है जो हमें चौबीस घंटे लड़ाती है । उस वृत्ति के कारण हम हर घड़ी जैसे सचेत हैं कि कोई संघर्ष होने की तैयारी है। पति घर आता है, तैयार हो जाता है कि पत्नी क्या पूछेगी, वह क्या जवाब देगा; पत्नी क्या कहेगी, वह कैसे संघर्ष करेगा। आदमी बाजार जाता है तो संघर्ष की तैयारी है; घर आता है तो संघर्ष की तैयारी है। मित्रों से मिलता है तो भी तैयार होकर मिलता है, जैसे कि वहां भी कलह है। हमारे भीतर कोई सूत्र है - वह सूत्र अहंकार का है— जो हमसे कहता है कि सब तरफ लड़ाई चल रही है, सम्हल कर चलना, तैयार होकर चलना, इंतजाम करके चलना। क्योंकि जिन्होंने इंतजाम नहीं किया वे हार जाते हैं । और इसीलिए तो तुम्हारे जीवन में इतना तनाव है; तुम शांत नहीं हो सकते। क्योंकि संघर्ष जिसकी वृत्ति है वह शांत कैसे होगा ?
असंघर्ष को जो अपनी वृत्ति बना ले, जीवन की शैली बना ले, कि कोई लड़ाई नहीं हो रही है, कोई दुश्मन नहीं है, सारा संसार मित्र है, यह सारा अस्तित्व परिवार है, यहां कोई तुम्हें मिटाने को उत्सुक नहीं है; जिसके मन में ऐसा भाव आ जाए, और अद्वैत की जो खोज में लगा हो, उसके लिए तो यह भाव धारा की तरह है जो सागर में ले जाएगा । कोई दुश्मन नहीं है; फूल-पत्ते, वृक्ष, आकाश, चांद, तारे, सब तुम्हारे लिए हैं। इन सबने तुम्हें सम्हाला हुआ है।
और अगर कभी कहीं जीवन में कहीं कुछ कलह जैसी मालूम पड़ती है तो भी तुम उसे सर्जिकल जानना कि जैसे डाक्टर कभी तुम्हारे हाथ-पैर से फोड़े को काटता है, पीड़ा देता है, लेकिन पीड़ा देने के लिए नहीं, पीड़ा से छुटकारे के लिए। अगर जीवन में कहीं तुम्हें चोट पड़ती है, वह चोट भी तुम्हारे हित के लिए है, कल्याण के लिए है। बायजीद एक रास्ते से गुजर रहा था। पत्थर से चोट लग गई; पैर लहूलुहान हो गया। वहीं बैठ कर उसने परमात्मा से प्रार्थना की कि धन्यवाद ।
साथियों ने कहा, क्या पागलपन है ! पैर से खून बह रहा है; धन्यवाद किस बात का दे रहे हो ? इस परमात्मा का तुम पर कौन सा अनुग्रह है ? अगर परमात्मा इतना ही प्रेम करता था तो पत्थर राह से हटा देना था, या पत्थर को फूल कर देता, या तुम्हें खयाल दे देता कि नीचे पत्थर है और तुम बच कर निकल जाते ।
बायजीद ने कहा, तुम समझते नहीं; सूली भी हो सकती थी; सिर्फ इसी चोट से उसने बचा दिया। उसके अनुग्रह का कोई अंत नहीं है।
यह देखने का ढंग है। सूली भी हो सकती थी; और केवल पत्थर की चोट से बचा दिया। धन्यवाद देना जरूरी है। यह उस आदमी की दृष्टि है जिसने जीवन को एक परिवार की तरह देख लिया, जिसने जान लिया कि परमात्मा साथ दे रहा है। कभी अगर तोड़ता भी है तो इसीलिए कि उस तोड़ने से तुम्हें निखार सके। कभी अगर कष्ट भी देता है तो इसीलिए ताकि तुम्हें कष्ट के बीच भी शांत रहने की क्षमता की सुविधा दे सके। कभी अगर तुम्हें मारता भी है तो इसीलिए ताकि तुम मृत्यु में भी जीवन के उठते हुए रूप का दर्शन कर सको। असंघर्ष बड़े से बड़ा गुण है। लड़ने का भाव रोग है । असंघर्ष, किसी से कोई वैमनस्य नहीं ।
महावीर का बड़ा प्रसिद्ध वचन है : वैरं मज्झ न केणई। किसी से मेरी कोई शत्रुता नहीं, सभी से मेरी मित्रता है। किसी ने महावीर के कान में खीलें ठोंक दिए थे। और महावीर बिलकुल निर्दोष थे। महावीर खड़े थे मौन । वे बारह वर्ष मौन रहे ताकि मन बिलकुल शांत हो जाए; शब्द का उपयोग न किया । नग्न खड़े थे एक जंगल में। एक चरवाहा अपनी गायों को चरा रहा था। उसने महावीर से कहा कि अरे सुन - उसने सोचा खड़ा है कोई नंगा आदमी - जरा मेरी गाय देखते रहना; मैं जरा काम से गांव जा रहा हूं।