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जीवन और मृत्यु के पान
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प्रयोग के लिए कह रहा है। वह तुम्हें कोई सिद्धांत नहीं दे रहा है; न तुम्हें किसी शास्त्र में बांधने का आयोजन है; न तुम्हें कोई रूढ़ अनुशासन दे रहा है। तुम्हें सिर्फ एक बोध दे रहा है। उस बोध की सुवास को तुम पकड़ो अपने भीतर तो ही लाओत्से की सही-सही व्याख्या तुम्हारी समझ में आएगी। अपने ही भीतर तुम जब जागोगे तब तुम पाओगे कि लाओत्से ने जो कहा है वह कैसा अनूठा है।
लेकिन बिना जागे, मैं कितना ही तुम्हें समझाऊं और कितना ही तुम्हें लगे कि समझ रहे हो, समझ पैदा न होगी। लिखा-लिखी की है नहीं, देखा-देखी बात । तुम देखोगे अपनी ही आंख से तो ही जानोगे। लोगे स्वाद तो ही जानोगे। गूंगे केरी सरकरा, खाय और मुस्काय । तब एक मुस्कुराहट तुम्हारे तन प्राण को भर लेगी। तब तुम्हारा रोआं-रोआं मुस्काएगा। क्योंकि तुमने एक स्वाद ले लिया। स्वाद से ही समझ होगी।
जो मैं तुम्हें समझा रहा हूं, यह स्वाद की तरफ इशारा है। यह असली समझ नहीं है, इससे असली समझ न होगी। इसे तुम असली समझ मत समझ लेना। नहीं तो रुक जाओगे। इससे तो तुम पंडित बन जाओगे। इसको पांडित्य मत बनाना। इसको तो सिर्फ इशारा समझना - मील का एक पत्थर जिस पर लगा है तीर । उधर बैठ मत जाना। थोड़ी देर विश्राम कर लेना विश्राम करना हो तो । मेरे शब्दों के साथ थोड़ा विश्राम कर लेना करना हो तो । लेकिन यात्रा करनी है। यह सारा समझाना इसलिए है, ताकि तुम स्वाद ले सको। और स्वाद मिल जाए, तभी असली समझ आएगी। उसके पहले, उसके पहले न कभी आई है, न आ सकती है।
आज इतना ही।