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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ सारी दुनिया एक हृदय का सम्मिलन बन जाती है—ऐसे संत के माध्यम से, जो अपनी भीतरी शांति और लयबद्धता में जीता है। जब तुम्हारे भीतर श्रद्धा रही, अश्रद्धा न रही, तो लयबद्धता आ गई। जब तुम्हारे भीतर प्रेम ही रहा, घृणा न रही, क्योंकि घृणा करने योग्य कोई न रहा; जब तुम्हारे भीतर भरोसा ही रहा, संदेह न रहा; क्योंकि अब संदेह करने योग्य कोई नहीं, तुमने बुरे पर भी भरोसा कर लिया, अब संदेह की तुमने जड़ें काट दी, तो तुम्हारे भीतर एक परम लयबद्धता और शांति का जन्म होता है। इस महासंगीत का नाम ही संतत्व है। और जब भी किसी एक व्यक्ति के भीतर ऐसी घटना घटती है, वह व्यक्ति इस जगत का हृदय हो जाता है। उस व्यक्ति के आर-पार हजारों हृदय डोलते हैं, गुजरते हैं उस हृदय से, और उन हजारों हृदयों की एक कम्युनिटी, एक परिवार निर्मित हो जाता है। बुद्ध के पास ऐसा परिवार बना, लाओत्से के पास ऐसा परिवार बना, जीसस के पास ऐसा परिवार बना। वही परिवार जब भ्रष्ट होता है तो संप्रदाय बनता है। परिवार तो तुम्हारी श्रद्धा से बनता है; संप्रदाय तुम्हारे जन्म से। संप्रदाय तुम खून से लेकर आते हो; परिवार तुम्हें अपना खून देकर बनाना पड़ता है। परिवार के लिए तुम्हें बलिदान होना पड़ता है। जब तुम किसी संत पर ऐसा भरोसा ले आओगे, ऐसा भरोसा जो असंत को भी अपने बाहर नहीं छोड़ता है, निरपवाद, तभी तुम संत के हृदय से गुजरोगे। अन्यथा तुम बाहर-बाहर भटक सकते हो, उसके शरीर को छ सकते हो, लेकिन उसकी अंतरात्मा से वंचित रह जाओगे। और जब तुम उसके अंतरात्मा से गुजरते हो तो संत सदगुरु हो जाता है। उसके आस-पास प्रेम का एक परिवार बनता है। वही परिवार इस जगत में श्रेष्ठतम घटना है। उससे ऊंची कोई घटना इस पृथ्वी पर नहीं घटती। और जो उस घटना से गुजर गया, वह दुबारा इस पृथ्वी पर वापस नहीं लौटता है। जो एक बार संत के हृदय में बस गया, उसके लिए बस अब एक हृदय और बसने को रहा, वह परमात्मा का है। संत के द्वार से वह परमात्मा में विलीन हो जाता है। आज इतना ही। 34
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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