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धर्म की राठ ही उसकी मंजिल है
और बुद्ध ने कहा है, उसी दिन मेरे भीतर क्रांति घट गई। उसी दिन मेरा संबंध उससे टूट गया जो मैं था, और मेरा संबंध उससे हो गया जो मैं हो सकता हूं। विरोचन ने पैर छुए हैं! अब विरोचन ने जो इतनी आस्था दी है इसको तोड़ा भी तो नहीं जा सकता। और विरोचन ने जो इतना भरोसा किया है इस भरोसे को पूरा करना ही पड़ेगा। बुद्ध ने कहा है, मेरे भीतर विरोचन ने एक दीया जला दिया। अब कुछ भी हो, विरोचन के वचन को सिद्ध करना ही होगा। विरोचन ने पैर छू लिए हैं। दीया झुका है, अंधेरे के पैर छु लिए हैं। अब अंधेरा कितनी देर अंधेरा रह सकता है?
संत बदलता है। उसके बदलने के ढंग बड़े अनूठे हैं। विरोचन ने जन्म दे दिया बुद्ध को उसी दिन। पैर छूकर विरोचन ने सोए आदमी को जगा दिया। बुद्ध की पूरी जीवन-यात्रा में इससे बड़ी कोई घटना नहीं है। सब बाकी साधारण है। यह विरोचन है क्रांति का सूत्र। इस विरोचन ने बुद्ध को तत्काल क्षण भर में कुछ का कुछ कर दिया–सिर्फ पैर छूकर। जरा सा स्पर्श, मिट्टी सोना हो गई।
संत स्पर्श से ही मिट्टी को सोना बना देते हैं। और जब सूई से काम चल जाए तो तलवार नासमझ उठाते हैं। जब बिना किए ही हो जाता हो तो करने की बात ही पागलपन है।
आज इतना ही।
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