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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ 396 चलते थे। लोग उनके चरणों पर गिरते थे कि बड़ा कठिन कार्य कर रहे हैं। मगर जूतों पर खीलें ठोंकने से कोई मोक्ष कालेना-देना है? कभी तो थोड़ा सोचो कि इससे लेना-देना क्या है? तुम सिर्फ बुद्धिहीन हो, यह तो पता चलता है। जड़ हो, यह भी पता चलता है। तुम्हारी संवेदनशीलता को तुम मार रहे हो, यह भी पता चलता है। लेकिन इससे मोक्षजा रहे हो, यह तो पता नहीं चलता। बहुत से फकीर हुए हैं दुनिया में जो कोड़े मारते हैं अपने को। आज भी उनके संप्रदाय हैं। तो जो फकीर जितने ज्यादा को मारता है उतना ही बड़ा फकीर समझा जाता है। लोग गिनती रखते हैं, कौन सौ मारता है सुबह, कौन डेढ़ माता है। चमड़ी उधड़ जाती है। और लोग देखने पहुंचते हैं। ये लोग भी हद्द नालायक हैं ! ये लोग तो मूढ़ हैं ही जो मार रहे हैं; लेकिन जो देखने पहुंचते हैं ये भी बड़ी दुष्ट प्रकृति के लोग हैं। मेरा अपना अनुभव यह है कि जहां-जहां कोई अपने को सता रहा है, किसी भी रूप में उपवास से, कोड़े मार कर, खीलों पर सोकर, कांटों पर लेट कर - जहां-जहां कोई अपने को सता रहा है, और जो लोग उनको पूज रहे हैं, ये पूजने वाले लोग दुष्ट हैं, ये भयंकर हिंसात्मक लोग हैं, इन्होंने बड़ी तरकीब निकाल ली है : ये पूजा देकर इन नासमझों को आत्महिंसा करने के लिए उकसा रहे हैं। दो तरह के लोग हैं दुनिया में। तीसरे तरह के लोग नहीं पाए जाते, क्योंकि वे संत हैं। एक तरह के लोग हैं जिनको मनोवैज्ञानिक मैसोचिस्ट कहते हैं, जो अपने को सताने में मजा लेते हैं। यह भयंकर हिंसात्मक... यह रोग है । और दूसरे तरह के लोग हैं, जिनको मनोवैज्ञानिक सैडिस्ट कहते हैं; ये दूसरों को सताने में मजा लेते हैं। यह भी रोग है । और तीसरे तरह का आदमी संत है-न तो खुद को सताता, न किसी दूसरे को सताता। सताने में उसका कोई रस ही नहीं है। सतना भी कोई बात है ? जो सीधा-सरल है। जैन मुनियों को मैं देखता हूं तो पाता हूं, ये मैसोचिस्ट हैं। अगर ये पश्चिम में हों तो इनका इलाज हो। पूरब में इनको पूजा मिल रही है। ये दुष्ट हैं, ये अपने को सता रहे हैं। और इनके आस-पास जो लोग, कतार देखता हूं मैं बैंड-बाजे बजाने वालों की, ये भी दुष्ट हैं। ये इनके सताए जाने में मजा ले रहे हैं। ये रस ले रहे हैं कि धन्यभाग कि आपने तीस दिन का उपवास किया! इसमें धन्यभाग क्या है ? इस आदमी ने अपने को सताया। इस आदमी ने शरीर के साथ दुष्टता की । इसने शरीर के रोएं - रोएं को तड़फाया । और यह तड़फाना आसान हो जाता है अगर पूजा मिल रही हो । आदमी का अहंकार ऐसा है कि तुम उससे कोई भी मूढ़ता करवा सकते हो अगर पूजा मिले। अगर तुम पूजने लगो उस आदमी को जो नाक कटाएगा, तुम पाओगे कई नाक कटाने वाले तैयार हो गए। क्योंकि पूजा मिलती हो नाक कटाने से...। तुम पूजा देने को राजी हो जाओ, और कोई न कोई तत्क्षण वही काम करने को राजी हो जाएगा जिसको तुम पूजा देते हो। क्योंकि इतनी सस्ती पूजा मिलती हो, सिर्फ नाक कटाने से, तो कटा लो; एक दफा कटाई, सदा के लिए पूजा मिल गई। संत न तो सताता है अपने को, न दूसरे को। संत कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों को मूल्य ही नहीं देता । क्योंकि कठिनता का सारा मूल्य अहंकार में है। एवरेस्ट पर चढ़ने का मजा यही है कि कोई दूसरा नहीं चढ़ पाया और मैं चढ़ कर बता दिया। हिलेरी को कौन सा मजा मिला ? यही मजा मिला कि मनुष्य जाति में मैं पहला हूं जो एवरेस्ट पर चढ़ गया। एक अहंकार की तृप्ति हुई। किसी ने हिलेरी से पूछा कि आखिर एवरेस्ट पर चढ़ने का इतना आकर्षण क्या है? फायदा क्या है ? वहां पहुंच कर होगा क्या? हिलेरी भी कुछ किया नहीं, पहुंच कर वापस लौट आया। करने को वहां कुछ है भी नहीं । हिलेरी ने कहा, यह सवाल ही नहीं है। जब तक एवरेस्ट है, तब तक मनुष्य को चुनौती थी; उसे पार करना ही होगा ।
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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