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________________ वे वही सीनवते हैं जो अनसीनया है 'संत कामनारहित होने की कामना करते हैं। और कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों को मूल्य नहीं देते।' लेकिन तुम जिन साधुओं को जानते हो वे सब कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों को मूल्य देते हैं। वे कहते हैं, तप करो, तपश्चर्या करो, यह बड़ी कठिन है; उपवास करो, भूखे मरो, यह बड़ी कठिन है। क्योंकि कोई मोक्ष सस्ता थोड़े ही है? बहुत मंहगी चीज है; अपना सब कुछ नष्ट करो तब मिलेगा। संत कठिनता से प्राप्त होने वाली चीजों को मूल्य ही नहीं देते, क्योंकि वे कहते हैं, कठिनता से जो भी चीज प्राप्त होती है वह अहंकार का आभूषण है। अहंकार कठिन से आकर्षित होता है। जितना कठिन हो उतनी आकांक्षा पैदा होती है पाने की। कोहिनूर की कीमत है, क्योंकि वह अकेला है। उसको पाना कठिन है। कोहिनूर अगर सब तरफ पड़े हों कंकड़-पत्थरों की तरह गांव-गांव, राह-राह, कौन फिक्र करेगा? सरल को कोई फिक्र ही नहीं करता, कठिन की लोग फिक्र करते हैं। कोहिनूर की कीमत यही है कि वह न्यून है, न के बराबर है। संन्यास सरल होना चाहिए, कठिन नहीं। नहीं तो वह कोहिनूर बन जाएगा। इसलिए तो मैं संन्यास ऐसे बांटता हूं। उसमें कठिनता रखने की जरूरत ही नहीं। क्या उत्सव मनाना? कोई संन्यास लेता है तो बड़ा उत्सव मनाया जाता है, बैंड-बाजे बजाए जाते हैं, जुलूस, शोभा-यात्रा निकलती है; जैसे कोई खास बात हो रही है। तुम संन्यास को भी बाजार में ला देते हो। और ध्यान रखना, जो बैंड-बाजे बजा कर तुम्हें संन्यास दिलवा रहे हैं, अगर तुम संन्यास से हटे तो जूते भी मारेंगे। क्योंकि इनके बैंड-बाजे तुमने बेकार कर दिए। फिर तुमको मंच पर न बैठने देंगे। फिर कहेंगे, यह आदमी पापी है। क्योंकि यह तो ठीक है, यह तो सीधा-साफ सौदा है। गणित में कोई अड़चन नहीं है। इनसे सावधान रहना जो बैंड-बाजे बजाएं, ये बड़े खतरनाक हैं। ये पूंछ भी काटे ले रहे हैं और पीछे लौटने का रास्ता भी बंद किए दे रहे हैं। संन्यास तो सरल बात है; भाव-दशा है। इसमें कोई बैंड-बाजे की जरूरत है? लोग मुझसे पूछते हैं, आप ऐसे ही दीक्षा दे देते हैं? कोई समारोह नहीं! समारोह में जो दीक्षा मिलती है वह अहंकार की है। यह तो चुपचाप का नाता है, इसमें क्या समारोह ? किसको बताना है? यह तुम्हारी बात है। इसका कोई बाजार से लेना-देना नहीं है। चुपचाप। सरल का मूल्य है संत के सामने; साधुओं के सामने कठिन का मूल्य है। साधु को तुम ऊपर क्यों बिठाते हो? तुम पैर क्यों छूते हो? क्योंकि साधु ने कुछ ऐसी कठिन चीजें कर दिखाई हैं जो तुम नहीं कर सकते। बस और तो कोई कारण नहीं है। साधु कांटे पर लेटा है। चाहे जड़बुद्धि हो, लेकिन कांटे पर लेटा है। तुम नहीं लेट सकते। और ध्यान रखना, जड़बुद्धि आसानी से लेट सकते हैं, क्योंकि उनकी संवेदनशीलता कम होती है। उनमें बुद्धि ही नहीं जिसको पता चले कि कांटा चुभ रहा है। मोटी चमड़ी के लोग हैं। तुम दर्शन करके कृतकृत्य हो जाते हो कि धन्यभाग, जो हम नहीं कर सकते। लेकिन बड़े आश्चर्य की बात यह है कि सिर्फ कठिन होने से कोई चीज मूल्यवान हो जाती है? माना कि यह कठिन है कांटों पर लेटना, लेकिन कठिन होने से मूल्य क्या है? सिर के बल खड़े होना कठिन है। तो जो आदमी सिर के बल खड़ा है मान लो तीन घंटे, चार घंटे, तुम चमत्कृत हो जाते हो, चरण छूने पहुंच जाते हो कि तुमने गजब कर दिया। क्योंकि तुम पांच मिनट भी नहीं खड़े रह सकते। उलटा-सीधा करना कठिन तो है, लेकिन उससे स्वभाव का क्या लेना-देना है? एक आदमी तीस दिन का उपवास कर लेता है। बस बड़ी महत्व की बात हो गई। माना कि भूखा मरना कठिन है, लेकिन कठिन होने का मूल्य क्या है? ईसाई फकीर हुए हैं जो कि पैर में कांटे, जूतों में खीलें ठोंके रहते थे अंदर। जरा सा जूता काटता हो तो कितनी तकलीफ होती है! वे दस-पंद्रह खीलें अंदर लगाए रखते थे। उनके पैरों में घाव हो जाते थे, और उन्हीं जूतों पर वे - 395
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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