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ताओ उपनिषद भाग ५
मिश्रित कर लेता है। वह बड़ा कुशल कलाकार है। वह तुमसे कहता है कि ठीक है, जब परम ज्ञानियों ने कहा है कुछ न करो, तो तुम क्यों करने में लगे हो!
परम ज्ञानियों ने कहा है कि तुम्हारे भीतर करने की जो आकांक्षा है, वह खो जाए, करने की शक्ति नहीं। करने की आकांक्षा को भी इसलिए छोड़ने को कहा है, ताकि शक्ति बचे।
तो एक तो आलसी आदमी है जो बिस्तर में पड़ा है, कुछ नहीं कर रहा।
फिर तुमने देखा है, दौड़ के लिए तत्पर प्रतियोगी। दौड़ शुरू होने को है। सीटी बजेगी, संकेत मिलेगा, अभी दौड़ शुरू नहीं हुई है। खड़ा है लकीर पर पैर को रखे। अभी कुछ भी नहीं कर रहा है। लेकिन क्या तुम उसको आलसी कहोगे? बड़ी ऊर्जा से भरा है। इधर बजी नहीं सीटी, उधर वह दौड़ा नहीं। तत्पर है, रो-रोआं तत्पर है। श्वास-श्वास सजग है। क्योंकि एक-एक क्षण की कीमत है। एक क्षण भी चूक गया, एक क्षण भी पीछे हो गया, तो हार निश्चित है। कुछ भी नहीं कर रहा है; अभी इस क्षण तो खड़ा है मूर्ति की तरह, पत्थर की मूर्ति की तरह। लेकिन तुम उसे आलसी न कह सकोगे। निष्क्रिय है वह अभी। अभी क्रिया नहीं कर रहा है। ऊर्जा इकट्ठी है। ऊर्जा भीतर घनीभूत हो रही है। वह ऊर्जा का एक स्तंभ हो गया है।
मगर यह प्रतियोगी कुछ भी नहीं है। जिसने परमात्मा की तरफ जाना चाहा है उसे तो बहुत-बहुत अनंत ऊर्जा चाहिए। यह दौड़ तो बड़ी छोटी है; मील, आधा मील पर पूरी हो जाएगी। परमात्मा की दौड़ तो विराट है। उससे बड़ी कोई दौड़ नहीं; उससे बड़ी कोई मंजिल नहीं।
लाओत्से कहता है, निष्क्रिय हो रहो, ताकि शक्ति बचे। निष्क्रियता संयम है। व्यर्थ मत खोओ। यहां-वहां अकारण मत दौड़े फिरो। जो-जो दौड़ छोड़ी जा सकती हो, छोड़ दो। जो-जो चाह छोड़ी जा सकती हो, छोड़ दो। न्यूनतम आवश्यकताओं पर ठहर जाओ, ताकि सारी ऊर्जा एक ही दिशा में प्रवाहित होने लगे, उसकी एक ही धारा बन जाए। निष्क्रियता का अर्थ है : इस संसार से खींच ली ऊर्जा और उस संसार की तरफ यात्रा शुरू हो गई।
आलस्य का अर्थ है : न उधर के, न इधर के। इस संसार में जाने योग्य ऊर्जा ही नहीं है; उस संसार का सवाल ही कहां उठता है। आलस्य अकर्मण्यता है। वासना मन में पूरी दौड़ती है। इच्छाएं बड़े सपने बनती हैं। पाना सब है; लेकिन पाने की मेहनत करने की शक्ति नहीं, संकल्प नहीं, भरोसा नहीं। कमजोरी है। आलस्य नपुंसकता है, अभाव है। आलस्य नकारात्मक स्थिति है।
निष्क्रियता बड़ी भावात्मक स्थिति है, बहुत पाजिटिव। शक्ति है पूरी, वासना कोई न रही। इस दुनिया में कोई दौड़ आकर्षक न रही, कोई दरवाजा बुलाता नहीं; कहीं जाने को न बचा। सब इकट्ठा हुआ जा रहा है। और जब इस दुनिया में कोई भी द्वार नहीं है और सब द्वार बंद हो गए, सब छिद्र बंद हो गए और तुम्हारे घट में शक्ति भरी जा रही है, तभी तुम्हारे घट में शक्ति ऊपर उठती है। और एक ऐसी घड़ी आती है जहां तुम्हारे घट की बढ़ती हुई ऊर्जा ही तुम्हें इस संसार के पार ले जाती है। अगर ठीक से समझो तो वही कुंडलिनी का जागरण है।
मेरे पास आते हैं बिलकुल मरे, मुर्दा लोग। उन्होंने कहा, हम फलां बाबा के पास गए और उन्होंने कुंडलिनी जगा दी। उनकी शक्ल देख कर तुम कहोगे कि तुम्हें किसी अस्पताल में होना चाहिए। तुम्हारी कुंडलिनी जग कैसे सकती है? तुमने कोई कल्पना कर ली। तुम किसी भ्रम के शिकार हुए।
कुंडलिनी जगनी कोई आसान घटना नहीं है। वह तो इतनी भरपूर ऊर्जा का परिणाम है कि घट में नीचे कोई छिद्र नहीं है; ऊर्जा इकट्ठी होती है। कहां जाएगी? उठेगी ऊपर और एक घड़ी आएगी कि घट के मुंह से ऊर्जा बहने लगेगी; ओवरफ्लो होगा। तुम्हारी खोपड़ी ही वह मुंह है जहां से ऊर्जा का ओवरफ्लो होगा। इसलिए तो हमने उसको सहस्र-दल कमल का खिलना कहा है; जैसे फूल की पंखुड़ियां खिल जाती हैं।
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