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र्षा होती है तो बड़े-बड़े पहाड़ खाली के खाली रह जाते हैं; झील, गड्ढे, घाटियां पानी से भर जाती हैं, भरपूर हो जाती हैं। पहाड़ खाली रह जाते हैं, क्योंकि पहले से ही भरे हुए हैं, अपने से ही भरे हुए हैं; गड्ढे, घाटियां, झीलें भर जाती हैं, क्योंकि वे खाली हैं। वहां जगह है, अवकाश है, दूसरे को आत्मसात कर लेने की सुविधा है। परमात्मा भी प्रतिपल बरस रहा है। अगर तुम पहाड़ों की तरह हो—अपने ही अहंकार से भरे हुए - तो खाली रह जाओगे। अगर तुम झील, घाटियों की तरह हो – शून्य, रिक्त - तो तुम भर जाओगे। खाली रहना हो अगर तो अहंकार से भरे रहना। भरना हो अगर तो अहंकार से खाली हो जाना। जो शून्य की भांति हो जाता है वह पूर्ण से भर जाता है। और जो अपने को सोचता है कि मैं ही हूं वह खाली ही मर जाता है। यह बड़ा विरोधाभास है। लेकिन समझो तो सीधा-साफ है।
जीसस ने कहा है, अपने को बचाना चाहो तो मिट जाना, और अपने को मिटाने पर ही तुले हो तो फिर अपने को बचाए रखना । जो मिटेगा वह पा लेगा; और जो अपने को बचाएगा वह अपने बचाने की कोशिश में ही खो देता है।
इस राज को ठीक से समझ लो । यह व्यक्ति के संबंध में भी लागू है, समाज के संबंध में भी, राज्य के संबंध में भी देशों - राष्ट्रों के संबंध में भी नियम तो एक ही है। फिर उस नियम की अनेक अभिव्यक्तियां हैं। नियम यह है कि तुम खाली होना सीखो। पहली बात, इस सूत्र को समझने के पहले, खाली होने की कला।
गुरु के पास शिष्य बैठता है। अगर वह भरा हो, कुछ भी न सीख पाएगा। तुम अगर मेरे पास भरे हुए आए हो, अपने ही ज्ञान, अपने ही शास्त्र से, तो तुम खाली ही लौट जाओगे। मैं लाख उपाय करूं, मैं लाख तुम्हारे चारों तरफ हवा निर्मित करूं, कुछ भी न होगा। तुम अगर खाली ही नहीं हो तो तुममें द्वार कहां? जगह कहां है जहां से मैं प्रवेश कर सकूं ? तुम्हारे सिंहासन पर तुम स्वयं ही बैठे हो, वहां और किसी को बिठाने का अब कोई उपाय नहीं ।
गुरु के पास शिष्य अगर ज्ञान से भरा हुआ आए तो व्यर्थ ही समय गंवाता है। गुरु के पास शिष्य खाली होकर आए तो भरा हुआ लौटता है।
इसीलिए तो बहुत प्राचीन समय से शिष्य को गुरु के पास आने की कला सीखनी होती थी। कला का पहला सूत्र है कि तुम जो भी जानते हो वह द्वार के बाहर ही छोड़ आना। तुम ऐसे आना जैसे तुम अज्ञानी हो, जैसे तुम्हें कुछ भी पता नहीं है। क्योंकि अगर तुम्हें कुछ भी पता है तो वह पता ही तो दीवार बन जाएगा। अगर तुम कुछ भी जानते हो तो वह जानने की अकड़ रुकावट हो जाएगी। तुम्हारी लोच समाप्त हो जाएगी। तुम्हारे द्वार बंद हो जाएंगे। फिर तुम्हारे भीतर, मैं लाख उपाय करूं, तुम मुझे घुसने ही न दोगे। तुम अपनी रक्षा करते रहोगे ।