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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ उसकी महिमा कितनी ही ऊंची हो। जब तुम संत के करीब जाओ तो अपने पैरों के पास नीचे देखना। क्योंकि संत एक चमकती हुई कौंध है। अगर तुम समझदार हो तो तुम अपने रास्ते को खोज लोगे। और अगर नासमझ हो तो या तो तुम संत के पक्ष में हो जाओगे उसके चेहरे को देख कर, शब्दों को सुन कर, उसके व्यक्तित्व के प्रभाव में या विपक्ष में हो जाओगे। दोनों मूढ़ताएं हैं। ज्ञानी नीचे देख कर अपने रास्ते को समझ लेता है। संत के पास एक रोशनी है। और अगर तुम्हें दिखाई पड़ जाए रास्ता तो तुम कब तक उससे भटकोगे? भटकते हो, क्योंकि दिखाई नहीं पड़ता है। भटकते हो, क्योंकि आंखें अंधेरे से भरी हैं। और ध्यान रखना अपने जीवन में भी कि कभी किसी दूसरे को बदलने की चेष्टा मत करना। उलटे परिणाम आएंगे। तुम जो चाहोगे उससे उलटा हो जाएगा। अगर किसी को बदलना चाहते हो तो बदलने की कोशिश ही मत करना। सिर्फ अपने को वैसा बना लेना जैसा तुम चाहते हो कि दूसरा बने; बस। फिर अगर तुम्हारे माधुर्य से ही, तुम्हारी मौजूदगी से कुछ हो जाए हो जाए, न हो न हो। प्रत्यक्ष चेष्टा घातक है, हिंसात्मक है। परोक्ष इशारा बहुमूल्य है। 'और जब दोनों एक-दूसरे की हानि नहीं करते-न शुभ अशुभ की हानि करता है, न अशुभ शुभ की-तब मौलिक चरित्र स्थापित होता है। व्हेन बोथ डू नाट डू ईच अदर हार्म दि ओरिजिनल कैरेक्टर इज़ रिस्टोर्ड।' । वही चरित्र वास्तविक चरित्र है, जब तुम्हारे भीतर न शुभ को अशुभ हानि पहुंचाता है, न शुभ अशुभ को हानि पहुंचाता है। जब तुम्हारे भीतर क्रोध और करुणा में कोई संघर्ष नहीं, काम और ब्रह्मचर्य में कोई विरोध नहीं, बुरे और भले का संघर्ष बंद हो जाता है, जब तुम्हारे भीतर राम और रावण गले में हाथ डाल कर आलिंगनबद्ध खड़े होते हैं, तभी तुम्हारा मौलिक चरित्र, तुम्हारा स्वभाव जो द्वंद्व के अतीत है, जो दुई के बाहर है, जो द्वैत के पार है, जो अद्वैत है, उसकी पहली झलक, उसकी कली खिलनी शुरू होती है, उसका फूल बनना शुरू होता है। अकेले राम तुम अधूरे हो, अकेले रावण तुम अधूरे हो; कथा चलेगी, लेकिन तुम पूरे न हो पाओगे। हिंदू बहुत ही इस गणित में कुशल हैं। इसलिए राम को उन्होंने पूर्णावतार नहीं कहा; कृष्ण को कहा। क्योंकि कृष्ण में राम और रावण दोनों संयुक्त हो गए हैं। कृष्ण में बुराई भी है, भलाई भी है, और दोनों के बीच एक तालमेल है। कृष्ण से ज्यादा बेईमान आदमी न खोज सकोगे। ईमानदार भी खोजना मुश्किल है। वचन दे और तोड़ दे। कहा युद्ध में अस्त्र न उठाऊंगा और उठा लिया। यह कोई भरोसे का आदमी नहीं है। अगर तुम न समझो तो कृष्ण तुम्हें अवसरवादी मालूम पड़ेंगे। और अगर तुम समझो तो तुम्हें परम संत का दर्शन कृष्ण में हो जाएगा। क्योंकि कृष्ण क्षण-क्षण जीते हैं, और समग्रता से जीते हैं। क्षण का यथार्थ जो पैदा करवा देता है उसी को जी लेते हैं। कृष्ण में राम और रावण का मेल हो गया है। और इसीलिए कृष्ण को हिंदुओं ने पूर्णावतार कहा है। राम अधूरे हैं। दो दिन पहले ही कोई मुझसे पूछता था। जो पूछता था व्यक्ति वे रामचरित मानस के कथा-वाचक हैं। तो वे मुझसे पूछते थे कि आप राम पर क्यों नहीं बोलते? तो मैंने कहा कि मुझे राम में ज्यादा रस नहीं है। उनको बड़ी चोट लगी होगी। पूछने लगे, क्यों रस नहीं है? मैंने कहा, यह जरा लंबी बात है। रस इसीलिए नहीं है कि राम अधूरे हैं। और कृष्ण में मुझे रस है, क्योंकि कृष्ण पूरे हैं। और पूरा आदमी बेबूझ होगा। क्योंकि उसमें बुराई-भलाई दोनों का ऐसा सम्मिलन होगा कि तुम पहचान ही न पाओगे कि क्या बुरा है और क्या भला। पूरा आदमी अनूठा होगा; पकड़ मुश्किल हो जाएगी। राम को पकड़ना आसान है। इसलिए लोग राम के भक्त हैं। इसलिए राम का बड़ा व्यापी प्रभाव पड़ा। कृष्ण का अगर कोई भक्त भी है तो वह भी चुनाव करता है; पूरे कृष्ण को नहीं मानता वह। कुछ हैं जो गीता के कृष्ण को मानते हैं; उनको भागवत का कृष्ण पसंद नहीं पड़ता। कुछ हैं जो कृष्ण के बाल-चरित्र को मानते हैं; उनका युवा चरित्र पसंद नहीं पड़ता। 298
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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