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हला प्रश्न : आप कहते हैं कि कुछ ठोने, बनने या बिकमिंग की चेष्टा मत को, बस जो हो वही हो रहो-जस्ट बीइंग। विस्तार से बताएं कि यह कॅसे साधा जाए?
साधने की बात ही पूछी कि समझने से चूक गए। क्योंकि साधने का अर्थ ही यह होता है कि कुछ होने की चेष्टा शुरू हो गई। जब मैं कहता हूं, जो हैं, जैसे हैं, वैसे ही रहें, तो साधने का सवाल नहीं उठता। साधने का तो मतलब ही यह है कि जो हम नहीं हैं वह होने की कोशिश शुरू हो गई। तो समझे नहीं। कुछ भी साधने का अर्थ है कि असंतोष है; जैसे हैं वैसे होने में तृप्ति नहीं
है। मन कह रहा है, कुछ और हो जाएं। थोड़ा धन है, ज्यादा धन इकट्ठा कर लें। थोड़ा ज्ञान है, ज्यादा ज्ञान इकट्ठा कर लें। थोड़ा त्याग है, और बड़े त्यागी हो जाएं। ध्यान का थोड़ा-थोड़ा रस आ रहा है, समाधि का रस बना लें। सभी एक सा है; कुछ फर्क नहीं। क्योंकि सवाल न धन का है और न ध्यान का, सवाल तो और ज्यादा की मांग का है।
तो चाहे धन मांगो तो भी सांसारिक, चाहे ध्यान मांगो तो भी सांसारिक। जहां और की मांग है वहां संसार है। और जब तुम और नहीं मांगते, तुम जैसे हो परम प्रफुल्लित हो, अनुगृहीत हो; जैसे हो-बुरे-भले, काले-गोरे, छोटे-बड़े-जैसे हो उस होने में ही तुमने परमात्मा को धन्यवाद दिया है, तत्क्षण क्रांति घटित हो जाएगी। कुछ साधना न पड़ेगा। क्योंकि जब तक तुम साधते हो, तुम्हारा अहंकार खड़ा रहेगा। तुम्हीं तो ध्यान करोगे। अहंकार ही तो. तुमसे कहेगा कि देखो कुंडलिनी जाग रही है, कि देखो प्रकाश दिखाई पड़ता है, कि नील-तारा प्रकट होने लगा, कि चक्र जागने लगे। कौन कहेगा तुमसे? कौन अकड़ेगा? कौन रस लेगा इसका? वह सब अहंकार है। वही अहंकार तो बाधा है।
परम संतुष्ट व्यक्ति का कोई अहंकार नहीं हो सकता, क्योंकि वह कुछ कर ही नहीं रहा है जिससे अहंकार भर जाए। वह ध्यान भी नहीं कर रहा है। ध्यान कभी कोई कर सकता है? ध्यान का अर्थ है परितोष, ए डीप कंटेंटमेंट, जहां कोई एक लहर भी असंतोष की नहीं उठती।
फिर तुम कहोगे, बड़ी मुश्किल है; असंतोष की लहर तो उठती है, कुछ और होने का मन होता है।
मन का स्वभाव यही है कि वह तुमसे कहता है, कुछ और हो जाओ। तुम मोक्ष में भी चले जाओगे तो मन कहेगा, और खोजो, कुछ और हो जाओ। तुम परमात्मा भी हो जाओगे तो मन कहेगा, इतने से कहीं कुछ होता है, कुछ और हो जाओ। मन और की मांग है। और जहां तक मन है वहां तक ध्यान नहीं। मन असंतोष है। जहां तक असंतोष है वहां तक कोई धन्यवाद नहीं, कोई अनुग्रह का भाव नहीं, वहां तक शिकायत है।
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