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ताओ उपनिषद भाग ५
बौद्धों ने अपने भिक्षुओं का जो समूह है उसको संघ कहा है; बुद्ध को शास्ता कहा है। शास्ता वह है जिससे शासन मिले, और संघ वह है जो शासन ले। थोड़े से लोगों ने बुद्ध से शासन लिया, और उनके जीवन रूपांतरित हो गए। जिसने भी कभी किसी संत से शासन लिया उसका जीवन रूपांतरित हो जाता है। वही तो दीक्षा है। इनीशिएशन का वही अर्थ है: संत से शासन लेने की कामना कि अब मैं तुमसे शासित होऊंगा। तुम मुझे चलाना, जिनकी अब किसी को चलाने की कोई आकांक्षा न रही।
इसे बहुत गौर से सोचना। क्योंकि लाओत्से जो भी कह रहा है एक-एक शब्द बहुमूल्य है। जिस दिन तुम तैयार हो जाते हो संत से शासन लेने को, उसी दिन संन्यास फलित होता है। उस दिन तुम इस पृथ्वी के हिस्से न रहे, उस दिन तुम राजनीति के बाहर हुए। उस दिन इस पार्थिव में जो उपद्रव चल रहा है उससे तुम्हारा कोई लेना-देना न रहा। तुमने एक और ही राह पकड़ ली। तुम्हें अब इस जगत में अंधे शासन नहीं देंगे। ____ कबीर कहते हैं, अंधे अंधे ठेलिया दोऊ कूप पड़त। अंधे अंधों को चलाते हैं, फिर दोनों कुएं में गिर जाते हैं।
एक तो है अंधों का शासन जो तुम्हें परतंत्र करेगा, जो तुम्हें जकड़ेगा, जो तुम्हें जंजीरें पहना देगा। और एक है संतों का शासन जो तुम्हें मुक्त करेगा। जो तुम्हें परतंत्र करते हैं उनसे तुम्हें शासन मांगना नहीं पड़ता, वे बिना मांगे देते हैं। तुम भागो भी तो तुम्हारा पीछा करेंगे। तुम न भी चाहो तो भी तुम्हें शासित करेंगे। संत तुम्हें पीछा नहीं करेंगे और न तुम्हें शासित करने की कोई चेष्टा करेंगे। तुम्हें मांगना पड़ेगा, तुम्हें अपनी झोली फैलानी पड़ेगी। और जिस दिन तुम्हारी झोली में किसी संत का शासन पड़ जाए, तुम्हें एक गर्भ मिला। अब तुम दूसरे ही हो गए। अब तुम्हारा पुनर्जन्म बहुत करीब है।
आज इतना ही।
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