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________________ ताओ उपनिषद भाग ५ अपराधी में और न्यायाधीश में फर्क क्या है? अपराधी और न्यायाधीश में इतना ही फर्क है : अपराध तो दोनों करते हैं, एक समाज की सहमति से करता है और एक समाज की असहमति से करता है। बस इतना ही फर्क है। शासन से बड़ा अपराधी संसार में कोई भी नहीं। क्योंकि जब तुम अपराध को न्याय के नाम पर करते हो तब करने का मजा ही और हो जाता है। बड़े से बड़े अपराधी को भी पीड़ा अनुभव होती है। उसका भी अंतःकरण कभी उसे कहता है, चोट करता है; उसके अंतःकरण में भी कभी आवाज उठती है कि तू जो कर रहा है वह गलत है। लेकिन अदालतों के न्यायाधीशों के मन में यह कभी सवाल नहीं उठता। उनका गलत भी सही है; वे जो बुरा कर रहे हैं वह भी ठीक है। क्योंकि वे न्याय के नाम पर कर रहे हैं; सत्य, शासन, सुव्यवस्था के नाम पर कर रहे हैं। . एक बात ठीक से समझ लेना कि बुराई कभी इससे ज्यादा बुराई नहीं होती जब तुम उसे भलाई के नाम में करते हो। क्योंकि भलाई का आवरण उसे छिपा लेता है। भलाई के आवरण में बुराई जितनी जहरीली हो जाती है उतनी जहरीली कभी भी नहीं होती। क्योंकि तुम जहर के ऊपर शक्कर चढ़ा लेते हो। कंठ में उतर जाना बड़ा आसान हो जाता है। लेकिन जहर पर तुम शक्कर भी चढ़ा लो, इससे जहर अमृत नहीं हो जाता। दुनिया का इतिहास दो तरह के लुटेरों से भरा है। एक तो वे लुटेरे हैं जो समाज के विपरीत हैं; वे डाक हैं जो समाज के विपरीत हैं। और एक वे लुटेरे हैं जो समाज के अनुकूल हैं। वे लुटेरे शासन की सीढ़ियां चढ़ जाते हैं। वे अपराध भी करते हैं गहन, तो भी धर्म के नाम पर करते हैं। वे तुम्हें मारते भी हैं, तो तुम्हारे हित में और तुम्हारे मंगल में। वे तुम पर गोली भी चलाते हैं, तुम्हारी छाती भी बेध देते हैं, वे तुम्हारी आत्मा को भी कुचल डालते हैं जूतों के तले, तो भी तुम्हारे उत्कर्ष के लिए। इसलिए लाओत्से जो कहता है वह तुम्हें बहुत हैरानी का मालूम पड़ेगा। लेकिन वह सत्य है। लाओत्से कहता है, 'शासन जब आलसी और सुस्त होता है, तब उसकी प्रजा निष्कलुष होती है।' यह तुम भरोसा ही न करोगे कि कोई संत ऐसी बात कहेगा! 'व्हेन दि गवर्नमेंट इज़ लेजी एंड डल, इट्स पीपुल आर अनस्पॉइल्ड।' क्या मतलब है? शासन सुस्त, आलसी? तुम तो सभी चाहते हो कि शासन आलसी है, सुस्त है, उसे सजग होना चाहिए, चुस्त होना चाहिए, कर्मठ होना चाहिए। तुम तो सोचते हो कि समाज में इतनी बुराई है, क्योंकि शासन आलसी है। और लाओत्से तुमसे ठीक उलटा देखता है। और लाओत्से के पास तुमसे बहुत दूर देखने वाली आंखें हैं। वह तुमसे बहुत गहरे देखता है। लाओत्से कहता है, शासन जब आलसी और सुस्त होता है तब लोग निर्दोष होते हैं। क्या मतलब है? इसे बहुत गहरे में जाकर समझना पड़े। आलस्य भी कभी-कभी बड़ा गरिमावान होता है, और सुस्ती में भी गुण है। एक बात तो तुम ध्यान रख लो कि दुनिया में आलसी लोगों ने कभी भी कुछ बहुत बुरा नहीं किया है। तुम कितने ही आलसियों को गाली दो, लेकिन आलसियों के ऊपर कोई बड़ा अपराध नहीं है। क्योंकि अपराध करने के लिए भी आलस्य तो तोड़ना ही पड़ेगा। दुनिया में जितना उत्पात-उपद्रव है वह कर्मठ, जिनमें से कुछ को तुम कर्मयोगी भी कहते हो, उन्हीं के कारण है। आलसी तो उपद्रव करने की झंझट भी नहीं लेगा। उपद्रव करने में भी तो समद्ध होना पड़ेगा, कुछ करना पड़ेगा। कौन आलसी तैमूरलंग हुआ है? कौन आलसी सिकंदर हुआ है कभी? कौन आलसी कभी हिटलर हुआ है? नहीं, आलसी राजनीतिज्ञ हो ही नहीं सकता। आलसी बुराई करने जाएगा कैसे? उसे जाने और उठने की भी फुरसत नहीं है। आलसियों ने भला न किया हो, बुरा भी नहीं किया है। आलसी यहां इस समाज से निर्दोष गुजर गए हैं, बुरे-भले की कोई लकीर उनके ऊपर नहीं है। 224
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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