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ताओ उपनिषद भाग ५
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बार पहचान लें तो सभी सुगंधें दुर्गंध हो जाएंगी। उसके होने का ढंग, उसकी ऊर्जा, उसका वायुमंडल ऐसा है कि तुम पहली बार उसकी मौजूदगी में स्वस्थ, शांत और आनंदित अनुभव करोगे । उसकी मौजूदगी समाधि बन जाएगी। और जब स्वाद लग जाता है तब फिर तुम्हें कोई नहीं रोक सकता। तब तुम जीवन के अंतिम शिखर तक पहुंचे बिना न रुकोगे। स्वाद खींचेगा। स्वाद एक चुंबक हो जाएगा।
तो दो ढंग हैं दुनिया को चलाने के। एक शासक का ढंग है । अतीत पूरा कह रहा है कि वह हार गया ढंग, असफल हुआ। उससे दुनिया ठीक न हुई; बिगड़ी, बुरी हुई। एक संत का ढंग है। दुनिया को चलाने के दो ढंग हैं - एक राजनीति का, एक धर्म का । राजनीति का ढंग असफल हो गया है। लेकिन चलता क्यों जाता है ?
चलता इसलिए जाता है कि तुम सदा सोचते हो कि एक राजनीतिज्ञ असफल हो गया तो दूसरा सफल होगा। इंदिरा असफल हुई तो जयप्रकाश सफल हो सकते हैं। इस तरकीब से राजनीतिज्ञ जीते हैं। जब इंदिरा की हवा आती है तो लोग कहते हैं, बस अब बड़ी आशा आ गई, अब इंदिरा कुछ करके दिखाएगी। लोग पूछते नहीं कि राजनीतिज्ञों ने कभी कुछ करके दिखाया – कभी? पूरे मनुष्य जाति के इतिहास में उनसे कुछ हुआ है ? वे सिर्फ आश्वासन देते हैं, कभी पूरा नहीं करते। लेकिन तरकीब कहां है?
तरकीब यह है कि जब एक राजनीतिज्ञ हारता है, दूसरा खड़ा हो जाता है। और वह कहता है कि यह हार गया, यह गलत सिद्ध हुआ; इसकी नीति गलत थी, इसकी व्यवस्था गलत थी। हम नई व्यवस्था देते हैं, हम नई नीति देते हैं; इससे सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारी आशा फिर जग जाती है। तुम इसके पीछे हो लेते हो। तुम जैसा पागल आदमी खोजना मुश्किल है। तुम कितनों के पीछे हो लिए। इसकी बात तुम्हें भरोसे की लगती है। क्योंकि इसके हाथ में सत्ता नहीं है। यह सेवक मालूम पड़ता है। फिर तुम इसे सत्ता पर बिठा दोगे । चार-पांच साल लगेंगे तुम्हें फिर आशा को खोने में, फिर तुम निराश होओगे। तब तक कोई दूसरा राजनीतिज्ञ खड़ा हो जाएगा।
राजनीतिज्ञ एक-दूसरे के विरोधी हैं, यह तुम समझते हो। तुम्हें यह पता नहीं है कि नीचे दोनों मिले हैं; षड्यंत्र सम्मिलित है। एक हारता है तो दूसरा खड़ा हो जाता है। राजनीति को वे नहीं हारने देते।
और जिस दिन राजनीतिज्ञ नहीं, राजनीति हारेगी, उस दिन भाग्य उदय होगा। जिस दिन तुम यह सारा उपद्रव देख पाओगे कि ये सब हार जाते हैं और ये एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। इनमें जरा भी कोई फर्क नहीं है। हां, एक सत्ता में है, एक सत्ता के बाहर । सत्ता में जो है वह हार गया तो सत्ता के बाहर वाला खड़ा हो जाता है कि मुझसे गा, अब पूर्ण क्रांति मुझसे होने वाली है।
पूर्ण क्रांति कभी हुई नहीं; क्रांति ही कभी नहीं हुई। सिर्फ वे बदल जाते हैं। एक राजनीतिज्ञ दूसरे को बदल देता है। तुम्हारी आशा थोड़ी देर के लिए फिर लग जाती है। तुम्हारी आशा वैसी ही है जैसे लोग मरघट ले जाते हैं किसी को, अरथी को, तो एक कंधा थक जाता है तो अरथी को दूसरे कंधे पर रख लेते हैं। थोड़ी देर राहत मिलती है । फिर दूसरा थक जाता है, तब तक पहला आराम कर लेता है; फिर अरथी बदल लेते हैं। राजनीतिज्ञ तुम्हारे एक-दूसरे को राहत दे रहे हैं।
राजनीति असफल हो जाए तो तुम्हारे जीवन में पहली दफा धर्म का बोध आएगा । तब तुम समझोगे कि सफलता सिर्फ एक मार्ग से मिल सकती है, और वह है ऐसे लोगों का प्रादुर्भाव जो बिना कुछ किए करने की कला जानते हैं।
आज इतना ही।