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सत्य कठ कर भी नहीं कहा जा सकता
यह रहस्यमयी एकता को सोचो, समझो, कुछ कदम उठाओ। थोड़ी-थोड़ी धारों को घिसो। थोड़ा-थोड़ा बुद्धि का प्रकाश धीमा करो। थोड़े-थोड़े शांति में विराजमान होओ। बचाओ अपनी इंद्रियों की ऊर्जा को, ताकि छिद्र बंद हो जाएं। सजग बनो, ताकि भीतर उठती वासनाएं पहले ही क्षण में काट दी जाएं, उनकी जड़ें न जम पाएं। और तुम जानोगे। तभी मेरे शब्द तुम्हें साफ होंगे। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं वह शब्दों में कहा नहीं जा सकता है। जो तुम सुन रहे हो वह सिर्फ सुनने से समझा नहीं जा सकता है।
इसलिए तो लाओत्से कहता है, 'जो जानता है वह बोलता नहीं; जो बोलता है वह जानता नहीं।'
आज इतना ही।
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