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________________ शिशुवत चरित्र ताओ का लक्ष्य है लाओत्से कहता है, जो स्वभाव में जीता है वह सतत शाश्वत जीवन को उपलब्ध हो जाता है। उसके भीतर फिर कभी कुछ मरता नहीं। भीतर कभी कुछ मरता ही नहीं। तुम बाहर इतने अटके हो, इसलिए तुम्हें मौत मालूम पड़ती है। और भीतर वही पहुंचता है जो दो से बच जाए-दुर्जन से और सज्जन से, जो भोग से और त्याग से बच जाए। जो अति से बच जाए, वही शाश्वत जीवन को उपलब्ध हो जाता है। अति से सावधान! और साक्षी-भाव में जितनी ज्यादा लीनता ला सको लाना। साक्षी-भाव से तुम्हारा पुनर्जन्म होगा, तुम नए हो जाओगे। और ऐसे नए कि वह नयापन फिर कभी बासा नहीं होता है। ऐसे नए कि वह कुंआरापन फिर सदा कुंआरा ही रहता है। ऐसे नए कि उस नएपन में शाश्वतता है। वह जराजीर्ण नहीं होता है। वह टिकता है, सदा टिकता है। और उसे पाए बिना कभी कोई परितोष को उपलब्ध नहीं हो सकता। जो खो जाएगा, उसे पाकर कोई कैसे परितोष पा सकता है। जो नहीं खोएगा, कभी नहीं खोएगा, वहीं घर बनाया जा सकता है। वही घर है। वह कुंआराम नहीं होता हा हो सकता आज इतना ही। 175
SR No.002375
Book TitleTao Upnishad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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