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धर्म हुँ समय के स्वास्थ्य की खोज
बहुत से प्रयोग किए गए हैं वैज्ञानिक ढंग से, कि लोगों को तीन सप्ताह के लिए एकांत में रख दिया गया, बिलकुल एकांत, गहन अंधेरी कोठरी में। सब सुविधा जुटा दी गई है, कोई कमी नहीं है। तीन सप्ताह में लोग पागल हो जाते हैं। क्या हो जाता है? पागल? और यह आदमी स्वस्थ था, ठीक था, सब तरह से साधारण था। अचानक पागल क्यों हो गया?
... तीन सप्ताह बहुत ज्यादा है अपने साथ रहना। और तीन सप्ताह अंधेरे में अपने को ही देखना, अपने से ही मिलना, तो सब कचरा दिखाई पड़ने लगता है। सब घाव फिर से हरे हो जाते हैं, मवाद ही मवाद मालूम होती है। घबड़ाहट हो जाती है। उस घबड़ाहट में आदमी पागल हो जाता है।
कोई अपने साथ रहना नहीं चाहता। अकेलेपन से तुम बचते हो। मैंने ट्रेन में बहुत वर्षों तक सफर की, तो मैं देख कर हैरान हुआ कि लोग एक ही अखबार को चार-चार दफे पढ़ते हैं, लेकिन खाली नहीं बैठ सकते। उस अखबार को पहले पढ़ लेते हैं। ठीक शुरू से, जहां लिपटन की चाय का विज्ञापन कोने में है, आखिर तक कि कौन संपादक है, कौन प्रकाशक है, वहां तक पढ़ गए। फिर से शुरू कर देते हैं; थोड़ी देर रख देते हैं साइड में, फिर से शुरू कर देते हैं; उलझाए रखते हैं अपने को। खोलते हैं खिड़की, फिर बंद कर देते हैं; फिर थोड़ी देर में खोलते हैं। फिर सूटकेस खोलते हैं; फिर कुछ इधर-उधर सामान जमा कर फिर बंद कर देते हैं।
लंबी यात्रा में अगर तुम चुपचाप किसी आदमी को देखते रहो तो तुम बहुत हैरान होओगे कि यह कर क्या रहा है! क्यों कर रहा है! उसे भी पता हो जाए तो वह भी हैरान होगा। लेकिन करने का वह सब उपाय कर रहा है अपने से बचने के लिए इस अकेलेपन में। इसलिए अजनबी से लोग बातचीत शुरू कर देते हैं; व्यर्थ की बातचीत शुरू कर देते हैं। मौसम की चर्चा शुरू कर देते हैं। अब दोनों को दिखाई पड़ रहा है कि बाहर पानी गिर रहा है। इसमें कुछ कहने का नहीं है। लेकिन कुछ भी बात चाहिए।
अजनबियों से लोग मौसम की ही चर्चा शुरू करते हैं पहले कि कैसी सुंदर रात है। क्योंकि दूसरी कोई भी चर्चा खतरनाक हो सकती है। अभी पक्का पता नहीं है कि अजनबी कम्युनिस्ट है, कि हिंदू है, कि मुसलमान है। मौसम बिलकुल निष्पक्ष बात है। इसमें कोई ज्यादा मत का सवाल नहीं है, झगड़े का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जब चांद निकला है तो यह भी कहेगा कि हां, सुंदर है, इसमें एकमत हो जाएगा। और कोई दूसरी बात उठाना खतरे से खाली नहीं है; कहीं विरोध हो जाए। और यह मौका विरोध करने का नहीं है; यहां साथ चाहिए।
मुल्ला नसरुद्दीन से उसके लड़के ने एक दिन पूछा कि जब भी आप बाल बनवाने नाई के यहां जाते हैं तो आप हमेशा मौसम-मौसम की चर्चा क्यों करते हैं नाईसे? दूसरी बात क्यों नहीं करते? घर पर तो आप और कई बातें करते हैं। नसरुद्दीन ने कहा, तू समझता नहीं। जब एक आदमी के हाथ में उस्तरा हो तो कोई भी ऐसी बात करना, जिसमें विरोध हो जाए, उचित नहीं है। मौसम बिलकुल ठीक है। राजनीति में भेद हो सकता है, धर्म में विरोध हो सकता है, दर्शन-शास्त्र में अलग मत हो सकता है। और उस आदमी के हाथ में छुरा है! अपनी गर्दन कटवानी है? गुस्से में आ जाए, क्रोध हो जाए। ऐसी बात करनी उचित है जो बिलकुल तटस्थ है, जिसमें कोई झगड़े का उपाय नहीं। __आदमी अपने से भयभीत है। और भय का कारण है कि सब जो बुरा है भीतर दबा लिया।
ऐसे चरित्र की कितनी जड़ें हो सकती हैं? कोई जड़ ही नहीं है, बिना जड़ का चरित्र है। इसे हिलाने में कोई कठिनाई है? इसे कोई भी हिला दे सकता है। तुम बिलकुल अपनी पत्नी से मात्र प्रेम करते हो। अगर ऐसा ही प्रेम है तो कोई भी सुंदर स्त्री सड़क से निकलती हुई इसे हिला दे सकती है। हिलाने की जरूरत भी नहीं है। उस स्त्री को पता भी नहीं होगा कि आप हिल गए, कि आपके मन में विचार चल पड़ा, कि कामवासना जग गई। कोई भी छोटी सी . घटना आंदोलित कर देगी।
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