________________
ताओ उपनिषद भाग ५
4
पंडित हो गया। और कहानी का ठीक अर्थ यही है। क्योंकि ज्ञान के फल के खाने को पाप से क्या संबंध है? ज्ञान के फल को खाकर कोई पंडित होगा; पापी कैसे हो जाएगा? अदम पंडित हो गया।
जैसे ही पंडित हुआ, बहिश्त बाहर फेंक दिया गया। जानने वालों की, प्रकृति की निर्मलता में कोई भी जरूरत नहीं है। जानने वाले का अहंकार उस मुक्त आकाश में नहीं ठहर सकता। बहिश्त का अर्थ है, जहां आनंद का झरना सदा बह रहा है; जहां आनंद कभी चुकता नहीं, खंडित नहीं होता। जैसे ही पांडित्य हुआ, बादल घिर गए; आकाश से संबंध टूट गया। एक ही पाप है, और वह पांडित्य है । ईसाई भी ठीक ही कहते हैं कि उसने पाप किया। क्योंकि एक ही पाप है, वह अपने को भूल जाना है। इसे थोड़ा समझ लो । तब लाओत्से के वचन बहुत साफ हो जाएंगे, स्फटिक की तरह स्पष्ट और पारदर्शी हो जाएंगे।
एक ही पाप है, और वह पाप है अपने को भूल जाना। और अपने को भूलने का एक ही ढंग है और दूसरी चीजों को याद करने में लग जाना। फिर जगह ही नहीं बचती अपने को याद करने की । हजार चीजें याद हो जाती हैं; एक चीज भूल जाती है। और हजारों की भीड़ में कहां तुम्हारा पता चलता है! बाजार की भीड़ है; आंकड़ों का फैलाव है। चारों तरफ बादल ही बादल हो जाते हैं। जानते तुम बहुत हो, लेकिन भीतर तुम अंधेरे बने रहते हो।
जिस जानने से स्वयं न जाना जा सके उसे लाओत्से ज्ञान नहीं कहता। वह ज्ञान का भ्रम है, आभास है। जिस जाने से स्वयं को जाना जा सके उसे ही लाओत्से ज्ञान कहता है। वही ताओ है, वही ऋत है, वही धर्म है।
और इस जगत में या तो तुम स्वयं को जान सकते हो, और या फिर शेष सबको जान सकते हो। क्योंकि दोनों के आयाम अलग-अलग हैं। जो स्वयं को जानता है उसे भीतर की तरफ मुड़ना पड़ता है। जो और कुछ जानना चाहता है स्वयं को छोड़ कर, उसे भीतर की तरफ पीठ कर लेनी पड़ती है। स्वभावतः, अगर तुम्हें मुझे देखना है तो मैं स्वयं को कैसे देख सकूंगा ? तुम्हें देखना है तो मेरी आंखों में तुम भर जाओगे, तुम्हारा बादल मेरी आंखों में तैरेगा। और अगर मुझे स्वयं को देखना है तो मुझे तुम्हारी तरफ से आंख बंद कर लेनी पड़ेगी।
संन्यासी का अर्थ है, जिसने और को देखने से आंख बंद कर ली। संन्यासी का अर्थ है, जिसने और कुछ सीखने से आंख बंद कर ली। संन्यासी का अर्थ है कि जिसने संकल्प किया कि जब तक अपने को नहीं जान लेता तब तक और कुछ जानने का मूल्य भी क्या है? सब भी जान लूंगा, और मेरे भीतर अंधेरा होगा, तो उस प्रकाश का क्या सार है ? चारों तरफ जलते हुए दीए होंगे, दीवाली होगी चारों तरफ, और मेरे भीतर अंधेरा होगा, तो उस दीवाली से मुझे क्या लाभ होगा ?
जीसस ने पूछा है कि तुमने सारा संसार भी जीत लिया और अपने को गंवा बैठे तो इस जीत का क्या अर्थ है।
लेकिन जैसे ही बच्चा पैदा होता है वैसे ही हम उसे सिखाने में लग जाते हैं। उसके कोमल से मन पर, उसके अबोध मन पर, उसके खुले-नीले आकाश पर हम स्मृति की पर्तें रखने लगते हैं। संसार में उनकी उपादेयता है, उपयोगिता है। गणित है, भाषा है, भूगोल है, इतिहास है, यह सब उसे सीखना है। क्योंकि इनको सीख कर ही वह समाज का हिस्सा हो सकेगा। और उसे समाज का हिस्सा होने के लिए हमें तैयार करना है। इसलिए विद्यालय हैं, विश्वविद्यालय हैं, चारों तरफ शिक्षण की बड़ी दूकानें हैं, जहां सिखाया जा रहा है।
और सीखते- सीखते आदमी इतना सीख गया है, और इतना संग्रह ज्ञान का हो गया है कि एक आदमी सीखना भी चाहे अपने जीवन में तो सीख नहीं पा सकता; हमेशा अधूरा लगता है। क्योंकि सदियों से आदमी ज्ञान का संग्रह कर रहा है। सत्तर- अस्सी साल की जिंदगी में तुम उस पूरे संग्रह को कैसे आत्मसात कर पाओगे? इसलिए हमेशा कमी लगती है। और आगे, और आगे यात्रा करने के लिए जगह खुली रहती है। आदमी दौड़ता चला जाता है, दौड़ता चला जाता है। और धीरे-धीरे जितना बाहर के ज्ञान में जाता है उतना ही अपने से दूर निकल जाता है।