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ताओ उपनिषद भाग ५
जब कोई साधारण हो जाता है तब श्वास-श्वास ऐसे आनंद से भर जाती है। संघर्ष खो जाता है, समर्पण फलित होता है, तब सारा जीवन एक ऐसे संतोष, एक ऐसी तृप्ति, एक ऐसी दीप्ति से भर जाता है कि उसी दीप्ति और तृप्ति में तुम पहचान पाते हो अपने भीतर के स्वभाव को, ताओ को।
अन्यथा तुम भ्रष्टाचार में ही जीओगे। और उस भ्रष्टाचार में तुम कुछ पाओगे न, सिर्फ अपने को खोओगे। खोने का रास्ता है पाने की दौड़; पाने का रास्ता है खोने की तैयारी।
आज इतना ही।