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________________ न्म के साथ मृत्यु को देखना कठिन है। लेकिन दिखाई पड़े या न दिखाई पड़े, जन्म मृत्यु की शुरुआत है; वह मृत्यु का ही पहला कदम है। पर जन्म पर हम प्रसन्न होते हैं; मृत्यु में हम दुखी होते हैं। काश, हम देख पाएं कि जन्म ही मृत्यु का प्रारंभ है तो जन्म की खुशी भी समाप्त हो जाए और मृत्यु का दुख भी। क्योंकि मृत्यु इसीलिए दुखद मालूम होती है कि जन्म सुखद मालूम हुआ था। और भ्रांति इसलिए चलती चली जाती है कि जन्म और मृत्यु के बीच जो फासला है, उस फासले के कारण हम उनका एक होना नहीं देख पाते। एक ही चीज के दो छोर हैं; एक छोर को हम जन्म कहते हैं, दूसरे को मृत्यु; एक पर हम सुखी होते हैं, दूसरे पर हम दुखी। और दोनों के बीच एक का ही विस्तार है। असल में, जन्म का अर्थ है कि मृत्यु हो गई। कितनी ही देर लगे अब प्रकट होने में, कितना ही समय लगे हमें अनुभव करने में कि मृत्यु हुई, लेकिन जन्म के साथ मृत्यु हो गई। जीवन की लय कहता है लाओत्से इसे। लय जीवन की विपरीत से बनी है, द्वंद्व से बनी है। और लय के लिए जरूरी है कि विपरीतता हो। लय अकेले एक स्वर की नहीं हो पाएगी; विपरीत स्वर चाहिए उभारने के लिए। अगर हम जीवन के सत्य की तलाश करें तो पहला सत्य हमें यही अनुभव होगा कि जीवन विपरीत से निर्मित है। इसके बहुत गहरे परिणाम हैं। अगर जीवन विपरीत से निर्मित है तो एक को चाहना और दूसरे को न चाहना नासमझी है, अज्ञान है। एक को चुनना और दूसरे को छोड़ना नासमझी है। क्योंकि अगर जीवन विपरीत से ही बना है तो जब हम एक को चुनते हैं तब हमने दूसरे को भी चुन लिया। अन्यथा वह एक भी जीवन में न हो सकेगा। जब हम दिन को चुनते हैं तो हमने रात को चुन लिया, और जब हम प्रेम को चुनते हैं तो हमने घृणा को भी चुन लिया। और जब हमने मित्र बनाया तब हमने शत्रु बनाने की शुरुआत कर दी। और जब हम प्रसन्न हुए तो हमने उदासी के बीज बो दिए। अब दूसरी बात से बचना संभव न होगा। क्योंकि हमने लहर का एक छोर पैदा कर दिया, अब लहर का दूसरा छोर भी अनिवार्य है। जो हमें दिखाई पड़ रहा है वह प्रकट है; जो दूसरा छोर है वह अप्रकट है और नीचे ही छिपा है। यदि यह दिखाई पड़ जाए कि जीवन विपरीत से बना है तो चुनाव बंद हो जाए, च्वाइस बंद हो जाए। और जिस व्यक्ति के जीवन से चुनाव गिर जाता है उस व्यक्ति के जीवन से सब पीड़ाओं का अंत हो जाता है। उसकी फिर कोई चिंता न रही; उसके लिए फिर कोई दुख न रहा। यह बड़ी अदभुत बात है: हम दुख से बचना चाहते हैं, और दुख बढ़ता चला जाता है; हम सुख पाना चाहते हैं, और सुख मिलता नहीं, दुख मिलता है। क्योंकि सुख की चाह में हमने दुख को भी चुन लिया। जीवन विपरीत से बना है, और एक को अलग किया नहीं जा सकता। वह जो विपरीत है उससे अलग करने का कोई उपाय नहीं। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। तो जब आप सुख की मांग करते हैं तब आपको पता नहीं कि आपने दुख की भी 83
SR No.002374
Book TitleTao Upnishad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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