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श्वर को कहां खोजें? कहां उसका मंदिर है ? सत्य की कहां हो तलाश, किस दिशा में ?
हजारों वर्षों से आदमी पूछता रहा है, खोजता रहा है, सोचता रहा है। और बहुत सी दिशाएं भी तय की गईं; बहुत से स्थान भी तय किए गए; बहुत से मंदिर, बहुत से तीर्थ निर्मित हुए। उनमें संघर्ष भी रहा कि ईश्वर की खोज कहां हो, कैसे हो। लाओत्से का उत्तर बहुत अनूठा है।
लाओत्से कहता है, जो किसी दिशा में खोजता है सत्य को वह सत्य को कभी भी उपलब्ध न कर पाएगा। क्योंकि सत्य किसी भी दिशा में नहीं है; विपरीत, सभी दिशाएं सत्य में हैं।
तो सत्य को एक दिशा में खोजने वाला भटक जाएगा। और सत्य को जो
एक दिशा में खोजता है वह उस एक दिशा के कारण ही असत्य तक
पहुंचेगा, सत्य तक नहीं पहुंच सकता । परमात्मा को जो मंदिर में देखता है मस्जिद के विपरीत, मस्जिद में देखता है चर्च के विपरीत, उसका परमात्मा से कोई संबंध न हो सकेगा। क्योंकि परमात्मा किसी मंदिर, किसी मस्जिद और किसी चर्च में नहीं है; वरन सभी मंदिर, सभी चर्च, सभी गुरुद्वारे, सभी मस्जिदें परमात्मा में हैं।
इस भेद को ठीक से समझ लें तो इस सूत्र में प्रवेश आसान हो जाए।
यह पूछना ही कि परमात्मा कहां है, गलत है। यह प्रश्न ही गलत है कि परमात्मा कहां है। और जो इसका उत्तर देता है उसे कुछ पता नहीं। और जो भी उत्तर दिए जाएंगे वे गलत होंगे; क्योंकि गलत प्रश्न का उत्तर गलत ही हो सकता है। परमात्मा कहां है, यह बात व्यर्थ है पूछनी; क्योंकि सभी कुछ परमात्मा में है। कहां तो हम उसके लिए पूछ सकते हैं जो सभी कुछ को न घेरता हो । सभी कुछ का जो जोड़ है उसको हम इशारा करके बता नहीं सकते कि वह कहां है। परमात्मा को बताना हो तो मुट्ठी बांध कर बता सकते हैं; अंगुली के इशारे से नहीं बता सकते। क्योंकि वह सब जगह है। समग्र अस्तित्व का नाम ही परमात्मा है।
लाओत्से इसीलिए परमात्मा शब्द का प्रयोग भी नहीं करता। क्योंकि परमात्मा शब्द का प्रयोग करते ही मूर्ति निर्मित होती है, व्यक्तित्व निर्मित होता है, और परमात्मा एक व्यक्ति, एक पर्सन की भांति हमारे खयाल में उतरने लगता है । और व्यक्ति तो सब जगह नहीं हो सकता; व्यक्ति तो कहीं होगा, किसी जगह होगा, किसी स्थान में होगा । इसलिए लाओत्से परमात्मा शब्द का उपयोग पसंद नहीं करता। वह कहता है, ताओ या धर्म और धर्म लाओत्से की धारणा में वैसा ही है जैसा आकाश। आप नहीं पूछ सकते आकाश कहां है; या कि पूछ सकते हैं? अच्छा होगा पूछना कि हम पूछें कि आकाश कहां नहीं है? जहां भी आप देखेंगे वहां आकाश है। आप भी आकाश में खड़े हैं। आपकी श्वासें भी आकाश में चल रही हैं। इसलिए आकाश को कोई इशारा करके बताएगा तो गलती होगी। आकाश सब जगह है; सभी कुछ आकाश में है। और आकाश किसी में भी नहीं है।
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